‘तारीख पर तारीख’ के दिन अभी लदे नहीं
punjabkesari.in Thursday, Dec 05, 2024 - 05:13 AM (IST)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस सप्ताह 3 नए आपराधिक कानूनों के कार्यान्वयन और प्रभावशीलता की समीक्षा की। जिन कानूनों ने सदियों पुराने ब्रिटिश काल के भारतीय दंड संहिता और आपराधिक प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम को बदल दिया था, उन्हें भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम से बदल दिया गया। नए कानून इस साल 1 जुलाई से लागू हो गए और केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ ने नए कानूनों का 100 प्रतिशत कार्यान्वयन करने वाला देश का पहला राज्य होने का गौरव हासिल किया है। एक कार्यक्रम में बोलते हुए, प्रधानमंत्री ने दावा किया कि नए आपराधिक कानूनों के तहत त्वरित न्याय वितरण प्रणाली संभव हो गई है।
उन्होंने एक बॉलीवुड फिल्म की मशहूर पंक्तियां ‘तारीख पर तारीख’ उद्धृत करते हुए कहा कि ऐसे दिन अब लद गए हैं। उन्होंने बताया कि नए कानूनों के तहत अभियोजन की प्रक्रिया को पूरा करने के लिए समय सीमा निर्धारित की गई है। उन्होंने चंडीगढ़ में वाहन चोरी के एक मामले में एक अभियुक्त को केवल 2 महीने में सजा मिलने और एक अन्य अभियुक्त को एफ.आई.आर. दर्ज होने के 60 दिनों के भीतर 20 साल की सजा मिलने का उदाहरण दिया। यह एक स्वागतयोग्य परिदृश्य है और सच होने के लिए बहुत अच्छा लगता है। हम सभी जानते हैं कि विभिन्न अदालतों में मामले वर्षों तक लंबित रहते हैं और कुछ तो कई दशकों से लंबित थे।
इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि देश की अदालतों में लंबित मामलों की कुल संख्या 5 करोड़ से अधिक हो गई है! जाहिर तौर पर लंबित मामलों की संख्या को कम करने के लिए कई कदम उठाए जाने की आवश्यकता है और यदि ये लंबित मामलों के शीघ्र समाधान की दिशा में एक कदम है तो हर किसी को नए कानूनों का स्वागत करना चाहिए। हालांकि सरकार को बैकलॉग निपटाने के लिए कई और कदम उठाने की जरूरत है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि सरकारें, अब तक, सबसे बड़ी वादी हैं और लगभग 70 प्रतिशत मामलों में ‘स्टेट’ एक पक्ष के रूप में होती है। जबकि ‘स्टेट’ अपराध और कानून-व्यवस्था के मामलों में स्वचालित रूप से एक पक्ष बन जाती है।
अनावश्यक अपील दायर करने की प्रवृत्ति अदालतों पर बोझ बढ़ाती है और अन्य मामलों में प्रक्रियाओं को धीमा कर देती है। यदि सरकारी वकील कोई वैध कारण बताए बिना स्थगन चाहता है तो पहले कदम के रूप में स्पष्टीकरण मांगा जाना चाहिए। केंद्र में सॉलिसिटर जनरल और उच्च न्यायालयों में एडवोकेट जनरलों के अलावा अधीनस्थ न्यायपालिका में लोक अभियोजकों सहित सरकारी अधिवक्ताओं के बीच समीक्षा अपील दायर करके किसी भी जिम्मेदारी को पारित करने की प्रवृत्ति होती है, चाहे उसमें योग्यता हो या नहीं। इसे ‘रक्षात्मक मुकद्दमेबाजी’ कहा जाता है जहां सरकारी वकील मामले को बंद करने और बाद में अधिकारियों द्वारा दोषी ठहराए जाने की कोई जिम्मेदारी लेने से बचते हैं। सरकार को केवल ऊपरी अदालतों में अपील करने से बचने के लिए प्रभावी कदम उठाने चाहिएं।
न्यायाधीशों की गंभीर कमी, जिसके लिए सरकार के साथ-साथ न्यायपालिका को भी जिम्मेदारी निभानी चाहिए, न्याय मिलने में देरी का कारण बनती है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, वर्तमान में देश के उच्च न्यायालयों में 45 प्रतिशत से अधिक रिक्तियां हैं। एक दशक पहले विधि आयोग ने न्यायाधीशों की संख्या प्रति 10 लाख लोगों पर 10 न्यायाधीशों से बढ़ाकर 50 न्यायाधीशों तक करने की सिफारिश की थी, लेकिन इस बारे में बहुत कम काम किया गया है। कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने पिछले हफ्ते राज्यसभा को सूचित किया था कि अधीनस्थ और जिला अदालतों में 5,000 से अधिक न्यायाधीशों की कमी है, जबकि 25 उच्च न्यायालयों में सामूहिक रूप से 360 से अधिक रिक्तियां हैं। जबकि नए कानूनों में निर्धारित समय सीमा का स्वागत है, सरकार को न्याय वितरण प्रणाली में बाधाओं की व्यापक समीक्षा करनी चाहिए और शीघ्र न्याय चाहने वाले लाखों लोगों को राहत प्रदान करनी चाहिए।-विपिन पब्बी