आजादी प्राप्त करने का श्रेय किसी एक आंदोलन को नहीं

punjabkesari.in Saturday, Nov 27, 2021 - 04:48 AM (IST)

भारत विश्व का एेसा दुर्भाग्यशाली देश है जिसकी महान संस्कृति और अध्यात्म होने के बाद भी हजारों साल तक विदेशों का गुलाम रहा। परन्तु भारत का इतिहास केवल गुलामी का इतिहास ही नहीं है। वह हमेशा गुलामी के विरुद्ध संघर्ष करते रहने का भी इतिहास है। लम्बे गुलामी के इतिहास में कभी न कभी कहीं न कहीं कोई न कोई आजादी की चिंगारी सुलगती रही। भारत के तन ने गुलामी को भले ही स्वीकार किया परन्तु मन ने पूरी तरह गुलामी को कभी स्वीकार नहीं किया। 

‘1857’ आजादी प्राप्त करने का पहला स्वतंत्रता संग्राम था। अंग्रेजों ने उसे बड़ी बेरहमी से कुचल दिया और उसे सिपाही विद्रोह के रूप में प्रचारित किया। उस समय के इतिहास में उसे सिपाही विद्रोह कहा गया। वीर सावरकर जब लंदन में गए तो उन्होंने इंडिया हाऊस के पुस्तकालय में चुपचाप शोध किया और 1857 की सच्चाई को उजागर करने का ऐतिहासिक काम किया। 

उन्होंने उस समय के अंग्रेजों के लिखे दस्तावेजों के आधार पर ही यह सिद्ध किया कि 1857 स्वतन्त्रता का पहला संग्राम था। अंग्रेजों को पुस्तक की भनक पड़ गई। शायद विश्व इतिहास का यह पहला उदाहरण है कि पुस्तक पर छपने से पहले ही पाबंदी लगा दी गई। वीर सावरकर ने बड़ी कठिनाई से पुस्तक का लेखन पूरा किया। कुछ देश भक्तों की मदद से पुस्तक के कुछ अंश भारत भेजे। पुस्तक को विदेशों में छपाने की कोशिश की। पाबंदी लगने के कारण इस पुस्तक का और अधिक प्रचार हुआ। 

1857 के बाद अंग्रेजों ने बड़ी बेरहमी से देश भक्तों को मारा व दंडित किया। जेलों में डाला। प्रमुख देश भक्तों को काले पानी भेज दिया। वह समय इतनी भयंकर निराशा का था कि एेसा लगा कि अब भारत में पूरी तरह से गुलामी को मन से स्वीकार कर लिया। उस समय के कुछ विद्वान व्यक्तियों ने यहां तक कहना शुरू कर दिया कि अंग्रेज तो भारत को ईश्वरीय वरदान है। वे भारत को सभ्य बना रहे हैं और एक अच्छी सरकार दे रहे है। 

परन्तु आजादी की चिंगारी कहीं न कहीं सुलगती रही। कुछ स्थानों पर क्रांतिकारी आन्दोलन शुरू हुए। जलियांवाला बाग संहार का बदला लेने देशभक्त लंदन तक पहुंंचे।  दिन-दहाड़े गोलियां चला कर बदला लिया। क्रांतिकारी आंदोलन कई संगठनों में सारे देश में फैलता गया। 

महात्मा गांधी जी ने कांग्रेस के नेतृत्व में अहिंसा के तरीके से आजादी का आंदोलन शुरू किया। दिन प्रति दिन सभी आंदोलन उग्र होते गए। क्रांतिकारी देश भक्तों को फांसी के फंदों पर लटकाया जाने लगा। उससे आजादी की चिंगारी और अधिक भड़कने लगी। आम व्यक्ति आतंक और डर के कारण क्रान्तिकारी आंदोलन में शामिल नहीं हो सकता था परन्तु महात्मा गांधी जी का अहिंसा का आंदोलन एेसा था जिस में भारत का आम नागरिक शामिल होने लगा।

कांग्रेस और गांधी जी के आंदोलन का सबसे बड़ा परिणाम यह हुआ कि आजादी का आंदोलन आम लोगों का आंदोलन एक जन आंदोलन बन गया। काले पानी की जेलें भर गईं। फांसी के फंदों पर देश भक्तों को लटकाया गया। गांधी जी के नेतृत्व में सड़कों पर आकाादी की लड़ाई लड़ी जाने लगी। स्वामी विवेकानंद का शिकागो धर्म सभा में ऐतिहासिक भाषण हुआ। पूरे विश्व में भारतीय संस्कृति गूंजने लगी। भारत के मन में हीन भावना समाप्त होने लगी और देश के स्वाभिमान का ज्वार निरंतर बढऩे लगा। उसी समय गुलामी पर अंतिम चोट मारने का ऐतिहासिक प्रयास शुरू हुआ। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस चुपचाप अंग्रेजों की नजरों से बच कर विदेश चले गए। अपनी योग्यता और प्रखर देश भक्ति के कारण कुछ देशों से सहायता ली। विदेशों में पहले से ही इस दिशा में काम कर रहे रास बिहारी बोस जैसे कुछ देश भक्त उन से मिले। 

विश्व के इतिहास में पहली बार देश की आजादी के लिए विदेशों में युद्ध प्रारंभ करने के लिए नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने आकााद हिंद फौज बनाई। महिला रानी झांसी रैजिमैंट भी बनाई। अंग्रेजों को ललकारा और युद्ध आरम्भ किया। और भारत की धरती पर पहुंच कर सबसे पहले आजादी का झंडा लहराया। प्रयत्न पूरी तरह सफल नहीं हुआ। आजाद हिन्द फौज के सैनिकों को पकड़ कर उन पर मुकद्दमे चलाए जाने लगे। इस प्रयत्न से पूरे भारत में आजादी की लड़ाई अपनी चरम सीमा पर पहुंची। 

1942 में आजाद हिंद फौज के आन्दोलनों के बाद 15 अगस्त 1947 तक देश में कांग्रेस की तरफ से कोई बड़ा आंदोलन नहीं हुआ। भारत छोड़ो आंदोलन कुछ दिन चला पर सफल न हुआ। परन्तु सुभाष चन्द्र बोस की आजाद हिन्द फौज का प्रयास इतना प्रभावशाली था कि पूरे देश में आजादी की चिंगारी सुलगती रही। जब लाल किले में आजाद हिन्द सेना के सैनिकों पर मुकद्दमें चलने लगे तो पूरे देश में और भारतीय सेना में आजादी की चिंगारी प्रबल होने लगी। 

भारत में आजादी की लड़ाई 1857 से लेकर 1947 तक पूरे 90 वर्ष तक चलती रही। हजारों नहीं लाखों देश भक्तों ने बलिदान दिया। सैंकड़ों काले पानी में जाकर कभी घर वापस नहीं आए। इन 90 वर्षों में कोई एेसा समय नहीं था जब देश के किसी कोने में आजादी की चिंगारी सुलगती नहीं रही। आजादी प्राप्त करने का श्रेय किसी एक प्रकार के आंदोलन को नहीं दिया जा सकता। यह श्रेय सभी का है। अहिंसा और हिंसा सभी तरीकों से देश भक्तों ने काम किया तब भारत आजाद हुआ। सभी प्रयत्नों के सामूहिक प्रयास से देश आकााद हुआ। 

मैंने 1970 में इस विषय पर गहरा अध्ययन किया था। क्रान्तिकारी आंदोलन को गहराई से पढ़ा था। उन्हीं दिनों मैंने अपनी दूसरी पुस्तक ‘धरती है बलिदान की’ लिखी थी। पुस्तक के लिए संदेश लेने मैं मुम्बई गया। वीर सावरकर जी को मिला वे अस्वस्थ थे परन्तु मुझे उनसे बातचीत करने और दर्शन करने का सौभाग्य मिला। उन्होंने पुस्तक के लिए संदेश में लिखा है कि भारत को आजाद कराने का श्रेय किसी एक प्रकार के आंदोलन को नहीं दिया जा सकता। उन्होंने यहां तक लिखा है कि बहुत से लोग कुछ कर नहीं सके परन्तु अपने घर में ही भगवान से देश को आजाद कराने की प्रार्थना करते थे। उनको भी यह श्रेय है। 

भारत आजाद होने पर कांग्रेस ने आजादी प्राप्त करने का पूरा श्रेय कांग्रेस और गांधी जी को देकर इतिहास का ही नहीं बलिदानों का भी अपमान किया है। मैंने अपनी पुस्तक में लिखा था कि यह इतिहास का बलात्कार है। 90 वर्ष के लाखों लोगों के बलिदानों के बाद यह कहना कि खून का कतरा बहाए बिना आजादी प्राप्त की- एक बहुत बड़ा झूठ, अन्याय और पाखंड है। लंदन की पार्लियामैंट में जब भारत को आजादी देने का कानून लाया गया तो श्री विंस्टन चर्चिल ने तब के प्रधानमंत्री श्री एटली से यह पूछा था-हमने लम्बा समय 1857 जैसे आंदोलनों को भी सहन किया। भारत पर राज किया। आज एेसी क्या स्थिति आई कि भारत को आजाद कर रहे हैं। 

इस पर प्रधानमंत्री श्री एटली ने उत्तर दिया था-ब्रिटिश सरकार के भारत को आजाद करने के दो कारण हैं। पहला यह कि जिस सेना के सहारे हम ने आज तक भारत को गुलाम रखा वह सेना अब अंग्रेजों की वफादार नहीं रही। दूसरा यह कि इतने बड़े देश को गुलाम रखने के लिए इतनी विशाल अंग्रेज सेना भारत में नहीं रखी जा सकती। इसलिए हमें भारत छोडऩा पड़ रहा है।-शांता कुमार(पूर्व मुख्यमंत्री हि.प्र. और पूर्व केन्द्रीय मंत्री)


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