‘सोशल मीडिया’ पर वार करने से देश को नुक्सान ही है

punjabkesari.in Thursday, Jul 09, 2020 - 04:01 AM (IST)

मुश्किल से एक हफ्ता ऐसा गुजरता है जब मीडिया कर्मियों के खिलाफ एफ.आई.आर. और आपराधिक मामले दर्ज होने की कोई रिपोर्ट न आती हो। यह रुझान  पिछले 5 वर्षों से बढ़ा है मगर यह अब एक महत्वपूर्ण और खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है। वास्तव में देश भर में सरकारों द्वारा दायर किए गए ऐसे मामलों पर नजर रखना मुश्किल हो गया है। राष्ट्रीय मीडिया कुछ मामलों की रिपोर्ट करता है। 

हालिया मामलों में से कुछ वरिष्ठ और सम्मानित पत्रकार से संबंधित हैं जिसने पूर्व में टैलीविजन पर अपना नाम कमाया था। विनोद दुआ के खिलाफ दायर किए गए मामले केवल दिल्ली में ही नहीं, जहां पर वह रहते हैं, बल्कि यह देश के दूर-दराज इलाकों में भी देशद्रोह को लेकर या फिर राष्ट्र के खिलाफ युद्ध घोषित करने के लिए दर्ज किए गए हैं। आरोप यह है कि उन्होंने अपने ब्लॉग में एक संदर्भ दिया था जो पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के प्रमुख नेता पी. चिदम्बरम द्वारा प्रकाशित एक लेख पर आधारित था। एक अन्य मामले में जोकि पिछले सप्ताह पता चला वह शिलोंग टाइम्स की संपादक पैट्रिशिया मुखीम के खिलाफ दर्ज हुआ है। उन्होंने अपने फेसबुक पेज पर टिप्पणी की थी कि जन-जातीय  समुदाय अन्यों के खिलाफ भेदभाव करना बंद कर दे। 

एक अन्य उदाहरण के तहत उत्तर प्रदेश की पुलिस ने सकराल की कार्यकारी संपादक सुप्रिया शर्मा के खिलाफ एफ.आई.आर. दर्ज की क्योंकि उन्होंने यह रिपोर्ट की थी कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी के निवासियों को लॉकडाऊन के शुरूआती दौर में भूखे रहना पड़ा। विडम्बना देखिए उनके खिलाफ अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) एक्ट 1989 के तहत आरोप लगाए गए। यह भी सत्य है कि ऐसे कई मामलों को गैर-भाजपा शासित सरकारों द्वारा दायर किया गया है। लेकिन तथ्य यह है कि इस तरह की प्रवृत्ति ऊपर से नीचे तक है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वतंत्र मीडिया के लिए अपने तिरस्कार को कभी नहीं छिपाया। वह मीडिया से किसी भी सवाल का जवाब नहीं देने की अपनी प्रतिज्ञा में दृढ़ हैं। हालांकि कोई भी शासक अपनी आलोचना सुनना पसंद नहीं करता लेकिन प्रवृत्ति अब आरोपों को दर्ज करने और स्वतंत्र मीडिया  के व्यक्तियों को परेशान करने की है। 

जाहिर है कि पार्टी प्रवक्ताओं सहित उन्हें रिपोॢटंग करने वालों को भी लगता है कि मीडिया का अपमान करना और उनकी ड्यूटी करने के लिए परेशान करना सही है। हम भारतीयों को अपने लोकतंत्र और इसकी स्वतंत्र संस्थाओं पर गर्व है। सरकार के भक्तों को लगता है कि वह स्वतंत्र विचारों को सक्रिय रूप से दबाने की कोशिश करके देश के लिए एक महान कार्य कर रहे हैं। प्रधानमंत्री ऐसे लोगों से घिरे हुए हैं जिनके पास साहस या बुद्धि नहीं है कि वह उन्हें बताए कि क्या गलत है। हर बार सरकार कुछ गलत या सही करती है और उनके चीयर लीडर्ज मेज थपथपा कर उन्हें सम्मान देने की कोशिश करते हैं। 

इस बीच भद्दे हास्यास्पद तर्क सामने आते हैं कि मीडिया का एक वर्ग सरकार के लिए आलोचनात्मक है क्योंकि अतीत में उनके द्वारा भोगी गई मुफ्त चीजें उनके महान नेता ने छीन ली थीं। यह तर्क आलोचकों के बौद्धिक दिवालियापन को दर्शाता है। ऐसा तर्क स्वतंत्र पत्रकारों की अखंडता का अपमान है जिनमें से कइयों ने अपना जीवन इसी पेशे में बिताया है और ईमानदारी और उच्च मूल्यों के लिए अपना बलिदान दिया है। 

एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया जिसमें प्रख्यात संपादक शामिल हैं, उनका हाल ही में एक बयान सामने आया कि पत्रकारों के खिलाफ कानून के आपराधिक प्रावधानों का उपयोग अब एक घृणित प्रवृत्ति बन गई है जिसका किसी भी जीवंत लोकतंत्र में कोई स्थान नहीं है। इसे समाप्त करने के साथ-साथ इसका विरोध करने की भी आवश्यकता है। अधिकारियों द्वारा कानूनों के ऐसे बढ़ते दुरुपयोग से संदेशवाहक को खत्म किया जा रहा है जोकि लोकतंत्र के प्रमुख स्तम्भ को नष्ट करने के समान है।-विपिन पब्बी    


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