विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान है भारत का संविधान

punjabkesari.in Friday, Nov 26, 2021 - 05:27 AM (IST)

देश में प्रतिवर्ष 26 नवम्बर को संविधान दिवस मनाया जाता है। वैसे तो भारतीय संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ था लेकिन इसे स्वीकृत 26 नवम्बर, 1949 को ही कर लिया गया था। डा. भीमराव अम्बेडकर के अथक प्रयासों के कारण ही भारत का संविधान ऐसे रूप में सामने आया, जिसे दुनिया के कई अन्य देशों ने भी अपनाया। वर्ष 2015 में डा. अम्बेडकर के 125वें जयंती वर्ष में पहली बार देश में 26 नवम्बर को संविधान दिवस मनाए जाने का निर्णय लिया गया था। भारत का संविधान दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है। 

संविधान प्रारूप समिति की बैठकें 114 दिनों तक चली थीं और संविधान के निर्माण में करीब 3 वर्ष का समय लगा, जिस पर करीब 64 लाख रुपए खर्च हुए थे और कुल 7635 सूचनाओं पर चर्चा की गई थी।

मूल संविधान में 7 मौलिक अधिकार थे लेकिन 44वें संविधान संशोधन के जरिए सम्पत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों की सूची से हटा कर संविधान के अनुच्छेद 300 (ए) के अंतर्गत कानूनी अधिकार के रूप में रखा गया, जिसके बाद भारतीय नागरिकों को 6 मूल अधिकार प्राप्त हैं, जिनमें समता या समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14 से अनुच्छेद 18), स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19 से 22), शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23 से 24), धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25 से 28), संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार (अनुच्छेद 29 से 30) तथा संवैधानिक अधिकार (अनुच्छेद 32) शामिल हैं।

संविधान में यह व्यवस्था भी की गई है कि इनमें संशोधन भी हो सकता है तथा राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को छोड़ कर अन्य मौलिक अधिकारों को स्थगित किया जा सकता है। सबसे बड़ा लिखित संविधान होने के अतिरिक्त, भारतीय संविधान से जुड़े रोचक तथ्यों पर नजर डालें तो सर्वप्रथम सन् 1895 में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने मांग की थी कि अंग्रेजों के अधीनस्थ भारत का संविधान स्वयं भारतीयों द्वारा बनाया जाना चाहिए लेकिन भारत के लिए स्वतंत्र संविधान सभा के गठन की मांग को ब्रिटिश सरकार द्वारा ठुकरा दिया गया था। 

1922 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने मांग की कि भारत का राजनीतिक भाग्य भारतीय स्वयं बनाएंगे लेकिन अंग्रेजों द्वारा संविधान सभा के गठन की लगातार उठती मांग को ठुकराया जाता रहा। आखिरकार 1939 में कांग्रेस अधिवेशन में पारित प्रस्ताव में कहा गया कि स्वतंत्र भारत के संविधान के निर्माण के लिए संविधान सभा ही एकमात्र उपाय है और सन् 1940 में ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत का संविधान भारत के लोगों द्वारा ही बनाए जाने की मांग को स्वीकार कर लिया गया। 1942 में क्रिप्स कमीशन द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट में कहा गया कि भारत में निर्वाचित संविधान सभा का गठन किया जाएगा, जो भारत का संविधान तैयार करेगी। 

सच्चिदानंद सिन्हा की अध्यक्षता में 9 दिसम्बर, 1946 को संविधान सभा पहली बार समवेत हुई किन्तु अलग पाकिस्तान बनाने की मांग को लेकर मुस्लिम लीग द्वारा बैठक का बहिष्कार किया गया। दो दिन बाद संविधान सभा की बैठक में डा. राजेन्द्र प्रसाद को संविधान सभा का अध्यक्ष चुना गया और वह संविधान बनाने का कार्य पूरा होने तक इस पद पर आसीन रहे। 15 अगस्त, 1947 को भारत अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हुआ और संविधान सभा द्वारा 29 अगस्त, 1947 को संविधान का मसौदा तैयार करने वाली ‘संविधान निर्मात्री समिति’ का गठन किया गया, सर्वसम्मति से जिसके अध्यक्ष बने भारतीय संविधान के जनक कहलाते डा. भीमराव अम्बेडकर। संविधान के उद्देश्यों को दर्शाने के लिए पहले एक प्रस्तावना प्रस्तुत की गई है, जिससे भारतीय संविधान का सार, उसकी अपेक्षाएं, उसका उद्देश्य, उसका लक्ष्य तथा दर्शन प्रकट होता है।

प्रस्तावना के अनुसार :
‘‘हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए तथा उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवम्बर, 1949 ई. को एतद द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्माॢपत करते हैं।’’-श्वेता गोयल
 


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