सब का धंधा मंदा और ‘महंगाई’ आसमान पर

Wednesday, Feb 19, 2020 - 04:03 AM (IST)

महंगाई आसमान पर है। सरकार का थालीनॉमिक्स बिगड़ गया है। वित्त मंत्री ने कहा कि इकोनॉमी में सुधार के संकेत दिख रहे हैं तो उधर औद्योगिक उत्पादन के आंकड़े में तेज गिरावट ने खेल खराब कर दिया है। बाकी तो आंकड़ों का खेल है लेकिन गैस सिलैंडर का दाम एक साथ लगभग 150 रुपए बढ़ा दिया गया। यह भी ध्यान रहे कि यह दाम पिछले 6 महीनों से लगातार बढ़ ही रहा है। इससे पहले गैस का दाम एक ही बार इससे ज्यादा बढ़ा था, 2014 में लेकिन तब कच्चे तेल का दाम आज से करीब-करीब दोगुना था। 

इस सबके बीच सरकार को उम्मीद है कि अर्थव्यवस्था वापस पटरी पर आ जाएगी। उम्मीद करना तो गलत बात नहीं है, उम्मीद पर दुनिया कायम है लेकिन यह उम्मीद किस जमीन पर खड़ी है यह समझना बहुत मुश्किल है। समस्या कितनी भी विकट हो, उसका हल निकाला जा सकता है। बशर्ते आप पहले तो मान लें कि समस्या है और फिर खुले दिल से उस पर चर्चा करने और सुझाव सुनने को तैयार हों। अभी तक की सबसे बड़ी परेशानी यही दिख रही थी। ज्यादातर लोग शिकायत कर रहे थे कि इस सरकार में कोई सुनने को तैयार नहीं है। 

यह बात तो हम सभी ने देखी है कि सरकार और सरकार के समर्थन का झंडा उठाए घूम रहे तमाम तथाकथित अर्थशास्त्री और बुद्धिजीवी भी कितने लंबे समय तक यह साबित करने में जुटे रहे कि सब कुछ सही है और अर्थव्यवस्था बहुत शानदार चल रही है। ऐसा तब तक चलता रहा जब तक एकदम नंगी सच्चाई सामने नहीं आ गई। जब विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ही नहीं खुद अपना रिजर्व बैंक भी चिंता जताने लगा और भारत सरकार की एजैंसियां भी एक के बाद एक ऐसे आंकड़े जारी करने लगीं, जिनसे साफ था कि अर्थव्यवस्था न सिर्फ पटरी पर नहीं है बल्कि उसके रसातल में जाने का खतरा बढ़ रहा है। अभी बजट के ठीक पहले हमने देखा कि आर्थिक सर्वेक्षण ने फिर थालीनॉमिक्स का नाम लिया और साबित करने की कोशिश की कि आम आदमी पर महंगाई का बोझ बढ़ा नहीं कम हुआ है। ऐसा मजाक करेंगे तो हंसी तो उड़ेगी ही। अब और उड़ रही है। 

लोकसभा में बजट पर बहस का जवाब देते हुए वित्त मंत्री ने कहा कि अर्थव्यवस्था में हरियाली के संकेत दिख रहे हैं और इसके 6 संकेत गिनाए। इनमें एक महत्वपूर्ण संकेत था औद्योगिक उत्पादन में सुधार। जब तक लोग इस बयान का विश्लेषण करते उससे पहले ही 2 झटके एक साथ आ गए। औद्योगिक उत्पादन में बढ़त की दर कम होना तो दूर वहां गिरावट का आंकड़ा सामने आ गया। यानी नवम्बर महीने में देश भर के उद्योगों में जितना उत्पादन हुआ था, दिसम्बर में वह उससे 0.3 प्रतिशत कम हो गया। इसे आर्थिक शब्दावली में संकुचन या कांट्रैक्शन कहते हैं। मगर आसानी से समझना हो तो मान लीजिए कि किसी पकौड़े वाले के पास हजार रुपए के पकौड़े बिके थे नवम्बर में, तो दिसम्बर में वह 997 रुपए के ही पकौड़े बेच पाया। अब हालत का अंदाजा आप खुद लगा लें। 

इसका मतलब क्या?
मतलब यह कि धंधा मंदा और महंगाई ज्यादा। अपने लिए समझें तो महीने में कमाई घटी और खर्च बढ़ा। अब क्या करेंगे,सोचिए। यही इस वक्त सरकार की सबसे बड़ी सोच है। ऐसे में कोई परिवार क्या करेगा। खर्च कम करेगा, कमाई बढ़ाने के तरीके तलाशेगा, मास्टर जी 2 ट्यूशन पढ़ाएंगे, क्लर्क या तो पार्ट टाइम काम देखेंगे या रिश्वत लेने का रास्ता। और सबसे ज्यादा क्या होगा, जो कुछ बचाकर रखा है, वह खर्च होना शुरू हो जाएगा। लेकिन कब तक? 

अपनी कहानी में यह बात मामूली-सी लगती है, लेकिन जरा पूरे देश पर नजर डालिए तो ऐसा लगता है कि देश भर में अपनी बचत निकाल कर इस्तेमाल करने वालों की गिनती बहुत बढ़ गई है या फिर नए लोग बचा नहीं रहे हैं और पुराने लोग निकाल रहे हैं। 2011-12 में देश की जी.डी.पी. का एक-तिहाई से ज्यादा हिस्सा सिर्फ बचत से आता था। देश भर में बचत की कुल रकम देश की जी.डी.पी. का 34.6 प्रतिशत हिस्सा था। पिछले साल यानी 2018-19 में यह रह गया है सिर्फ 30.1 प्रतिशत यानी पूरे 4.5 प्रतिशत की गिरावट। जी.डी.पी. का आज का आकार देखें तो इस साढ़े 4 प्रतिशत का अर्थ है, लगभग 96 हजार करोड़ रुपए और सरकार जिस रफ्तार से तरक्की का दावा कर रही है उसे मान लें तो यह रकम एक लाख से सवा लाख करोड़ रुपए के बीच पहुंचते वक्त नहीं लगेगा। अर्थव्यवस्था में तेजी वापस लाई जाए। सरकार से लेकर आम आदमी तक का काम-धंधा सुधरे, ताकि लोग कमाएं ज्यादा, खर्च ज्यादा करें, अपनी बचत में से खाने की बजाय उसमें कुछ पैसा डालना शुरू करें और विकास की रफ्तार वापस वहां पहुंचे जहां का सपना देखा गया था। यानी 10 प्रतिशत से ऊपर। 

लेकिन अर्थव्यवस्था में सुधार तो तब ही होगा जब देश भर में उद्योग-धंधे, खेती, रोजगार सब कुछ ठीक चले,  फले-फूले और लोगों को कमाई बढऩे की उम्मीद हो। तभी वे निकलेंगे कुछ खर्च करेंगे, कुछ कर्ज लेंगे, कुछ आगे की योजनाएं बनाएंगे लेकिन अगर आपके घर के आस-पास माहौल खराब हो जाए, कहीं दंगा होने लगे, कहीं प्रदर्शन हो, कहीं लाठीचार्ज हो, कहीं पुलिस घरों में घुसकर मारपीट करे, लोग सरकार पर और सरकार लोगों पर सवाल उठाते हुए ही दिखें तो कौन व्यापारी कितने आगे की योजना बना पाएगा? 

खास बात यह है कि लोगों के दिल में भरोसा पैदा हो और यह भरोसा सिर्फ  इस बात का नहीं कि उनकी नौकरी बची रहेगी, उनका कारोबार आगे बढ़ेगा, बैंक में पैसा सुरक्षित रहेगा और शेयर बाजार में तेजी आएगी। भरोसा दरअसल इस बात का चाहिए कि हमारे देश में, हमारे प्रदेश में, हमारे समाज में अमन-चैन बना रहेगा। लोग एक-दूसरे पर भरोसा करते हुए गुजारा कर पाएंगे।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी मान लिया है कि अगर बजट में कहीं कोई गलती दिखती है तो वह उसे सुधारने को तैयार हैं। यही नहीं उन्होंने यह भी कहा है कि अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए बजट के बाहर भी कुछ करने की जरूरत हो तो वह किया जाएगा। ये दो लक्षण हैं कि सरकार लोगों की सुनने को तैयार है। यही अच्छा संकेत है। कैफ भोपाली ने जो कहा है वह इस सरकार पर ही नहीं किसी भी सरकार पर बराबर से लागू होता है। कबीले वालों के दिल जोडि़ए मेरे सरदार सरों को काट के सरदारियां नहीं चलतीं।-आलोक जोशी

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