टैक्स दरें तय करने में दिमाग का प्रयोग नहीं किया गया

Monday, Nov 13, 2017 - 03:24 AM (IST)

इस सप्ताह एक बार फिर कुछ वस्तुओं पर अप्रत्यक्ष करों में कटौती की गई है। ऐसा आम तौर पर तीन कारणों से होता है। पहला कारण यह है कि कुछ बातें राजनीतिक दृष्टि से संवेदनशील होती हैं, जैसे कि गुजरात का खाकड़ा जो अखबारों में नकारात्मक सुर्खियों का विषय बन सकता है। दूसरा कारण: सरकार महसूस करती है कि अधिक महंगी हो जाने के कारण इन वस्तुओं की बिक्री में गिरावट आ रही है जिससे अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। तीसरा कारण यह है कि सरकार महसूस करती है कि प्रथम दृष्टतया इन वस्तुओं का वर्गीकरण ही गलत हुआ था। 

सभी अप्रत्यक्ष कर बुरे ही होते हैं क्योंकि वे गरीबों और अमीरों दोनों से एक जैसा व्यवहार करते हैं। मेरा ड्राइवर और मैं कोकाकोला के लिए एक समान कर अदा करते हैं। आयकर जैसे अप्रत्यक्ष करों के मुद्दों पर सरकार को अवश्य ही प्रभावी होना चाहिए। वस्तु एवं सेवा कर (जी.एस.टी.) की 7 स्लैब्स बनाई गई हैं : 0 प्रतिशत, 0.25 प्रतिशत, 3 प्रतिशत, 5 प्रतिशत, 12 प्रतिशत, 18 प्रतिशत और 28 प्रतिशत। किस वस्तु पर कितना कर लगना है इसका फैसला जी.एस.टी. परिषद करती है जिसमें केन्द्र और राज्य सरकार दोनों के प्रतिनिधि शामिल होते हैं। सामान्यत: राज्यों की ओर से वित्त मंत्री इसका सदस्य होता है लेकिन हमेशा ऐसा नहीं होता। उदाहरण के तौर पर कर्नाटक का जी.एस.टी. में प्रतिनिधित्व वहां के कृषि मंत्री कृष्ण बीरे गौड़ा करते हैं। 

मेरे लिए यह देखना दिलचस्प बात यह है कि किन वस्तुओं पर जी.एस.टी. की दर 0 प्रतिशत है और किन पर 28 प्रतिशत और ऐसा क्यों है? शुक्रवार तक 28 प्रतिशत जी.एस.टी. की स्लैब में 227 वस्तुएं शामिल थीं। इस सूची का प्रारम्भ च्यूइंगम से होता था और समाप्ति वैक्यूम फ्लास्क (थर्मस) तथा रैडीमेड कपड़ों के दुकानदारों द्वारा प्रयुक्त किए जाने वाले प्लास्टिक पुतलों से होता था। जी.एस.टी. परिषद की मीटिंग के बाद अब इस सूची में 50 वस्तुएं ही रह गई हैं। जी.एस.टी. परिषद यह फैसला किस आधार पर करती है कि किस वस्तु के लिए खपतकारों को सबसे अधिक टैक्स देना चाहिए। सरकार ऐसे फैसले अंतर्मुखी तर्कशीलता के आधार पर करती है। यह वस्तुओं की पहचान या तो पापी लोगों के माल के रूप में करती है या अवगुण भरी चीजों के रूप में। 

इस सूची में शामिल उत्पादों पर टैक्स दर में कमी की घोषणा करते हुए बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने कहा कि च्यूइंगम, चाकलेट, हजामत का सामान और कपड़े धोने का पाऊडर उन वस्तुओं में शामिल होंगे जो 28 प्रतिशत की बजाय 18 प्रतिशत टैक्स वाली श्रेणी में शामिल की जाएंगी। उन्होंने कहा कि परिषद में इस बात को लेकर सर्वसम्मति थी कि 28 प्रतिशत जी.एस.टी. वाली श्रेणी में केवल पापी लोगों द्वारा प्रयुक्त वस्तुएं या अवगुणों से भरी हुई वस्तुएं भी शामिल की जानी चाहिएं।

दिलचस्प सवाल यह है कि शुरूआत इस स्वीकारोक्ति के साथ क्यों की जाए कि ईसाई परम्परा में ‘पाप’ के बारे में जो अवधारणा है वह हिन्दू धर्म में देखने को नहीं मिलती। अंजील में (बाइबल) पाप ऐसा कृत्य होता है जो भगवान के विरुद्ध अपराध होता है। उदाहरण के तौर पर ईसाईयत का मूल गुनाह आदम और हव्वा द्वारा किया गया यह फैसला है कि वे भगवान की आज्ञा-पालन नहीं करेंगे और उस फल को खाकर रहेंगे जिसने उन्हें अपनी लैंगिकता के बारे में जागरूक करवाया है। 

ईसाईयत के गुनाहों में आलस्य और काम वासना दोनों ही शामिल हैं, जोकि प्राकृतिक भावनाएं हैं। फिर भी इन्हीं भावनाओं के आधार पर भगवान ईसाइयों के पाप-पुण्य का फैसला करेंगे। हमारी धर्म परम्परा में ऐसी कोई अवधारणा नहीं है, फिर भी हमें पाप को इसके सामान्य अर्थों के आधार पर समझना होगा, जिसके अंतर्गत यह अनैतिक, व्यभिचार को प्रोत्साहित करने वाला है, जैसे कि शराबनोशी। लेकिन जी.एस.टी. की किसी भी सूची में शराब यानी कि अल्कोहल शामिल नहीं है क्योंकि इस पर राज्य सरकारों द्वारा अपने स्तर पर टैक्स लगाया जाता है और इसकी दरें भी खुद तय करनी होती हैं। गुजरात जैसे कुछ राज्य इस पर बिल्कुल ही कोई टैक्स नहीं लगाते क्योंकि सरकारी दृष्टिकोण के अनुसार आम लोगों को गुजरात में कोई शराब बेची ही नहीं जाती। फिर भी गैर-सरकारी स्तर पर कहानी कुछ अलग ही है। 

अजीब बात यह है कि कोई टैक्स न होने के कारण गुजरात में शराब अपेक्षाकृत सस्ती हो सकती है। कोई व्यक्ति मुम्बई के किसी होटल में खाना खाता और पैग लगाता तथा भोजन के लिए 18 प्रतिशत टैक्स भी अदा करता है जबकि शराब पर उसे केवल 10 प्रतिशत वैट अदा करना पड़ता है। इस बात पर बहुत अधिक वावेला तो खड़ा नहीं करना चाहिए लेकिन फिर भी यह इस तथ्य की ओर अवश्य ही इंगित करता है कि हमारी व्यवस्था कितनी त्रुटिपूर्ण है। अवगुण भरी वस्तुओं का मुद्दा तो और भी जटिल है। इस श्रेणी में ऐसी वस्तुएं या सेवाएं आती हैं जिनकी खपत को सामाजिक दृष्टि से श्रेष्ठ नहीं समझा जाता। शराब स्वाभाविक तौर पर इसमें शामिल है लेकिन तम्बाकू के बारे में भी ऐसा ही कहा जा सकता है। खास तौर पर हाल ही के समय में कबाड़ भोजन (जंक फूड) भी इसी श्रेणी में शामिल हो गए हैं। यही कारण है कि हमें अपवित्र और अवगुणों भरी तथा पाप को बढ़ावा देने वाली वस्तुओं की श्रेणी पर दृष्टिपात करना चाहिए।

इस श्रेणी में वे रंगरोगन भी शामिल हैं जिनसे आप अपने घरों और दफ्तरों को सजाते हैं, यहां तक कि सड़कों के किनारे बैठकर काम करने वाले सबसे गरीब श्रमिकों द्वारा खरीदा जाने वाला बूट पालिश और कलाकारों द्वारा प्रयुक्त किए जाने वाले रंग भी इसी श्रेणी में शुमार हैं। इन लोगों को किस गुनाह का दंड दिया जा रहा है? यह कल्पना से परे है कि किस आधार पर बूट पालिश व कलाकारों एवं स्कूली बच्चों द्वारा प्रयुक्त रंगों को ‘पापी’ और अपवित्र वस्तुओं में शामिल किया गया है। जब देश पहले ही सुरक्षा की दृष्टि से दुनिया के न्यूनतम मानकों वाली श्रेणी में शामिल है तो कानून का अनुपालन महंगा क्यों किया जा रहा है? 

हैरानी की बात है कि टैक्स की जो दर अमीर लोगों की समुद्री नौकाओं और निजी विमानों पर लागू होती है वही 28 प्रतिशत जी.एस.टी. दर मोटरसाइकिलों और कारों पर थोपी गई है। मैं यह परिकल्पना कर सकता हूं कि एक गरीब देश में कारों को एक विलासिता की सवारी के रूप में देखा जाता है परन्तु मोटरसाइकिलों के बारे में क्या कहा जाए? दोपहिया वाहन का स्वामी होने का कौन-सा आयाम पाप या अवगुण से संबंधित है? टायरों पर भी जी.एस.टी. की उच्च दर लागू है जिसका तात्पर्य यह है कि अपनी एस.यू.वी. को नए टायर चढ़ाने वाले व्यक्ति को जो टैक्स अदा करना पड़ता है उसी दर से साइकिल मालिक को नए टायर पर अदा करना पड़ता है। 

एयर कंडीशनर, फ्रिज, कपड़े धोने की मशीनें और वाटर हीटर इत्यादि भी इसी श्रेणी में आते हैं। एक बार फिर यह दलील दी जा सकती है कि हमारे जैसे देश में यह विलासिता की वस्तुएं हैं लेकिन व्यापक रूप में मुझे ऐसा आभास होता है कि यह टैक्स दरें तय करने के लिए किसी ने दिमाग नामक अंग का प्रयोग किया ही नहीं। पान मसाले पर 28 प्रतिशत जी.एस.टी. लगता है जबकि इसका प्रयोग जिस पान पत्ते पर किया जाता है उस पर जी.एस.टी. दर शून्य है। यह तो पक्की बात है कि दोनों चीजें मिलकर ही पान चबाने की आदत का कारण बनती हैं। ऐसी में एक वस्तु पाप और अपवित्रता की श्रेणी में शामिल क्यों है जबकि दूसरी क्यों नहीं? 

मैं पाठकों को इन टैक्स स्लैबों पर स्वयं पूरी तरह दृष्टिपात करने के लिए प्रोत्साहित करता हूं। (यह सभी स्लैब्ज सरकार की सीबीईसी.जीओवी.इन जैसी वैबसाइटों पर ऑनलाइन उपलब्ध है) यह सूची पढ़कर पाठक स्वयं निर्णय कर सकते हैं कि जी.एस.टी. की टैक्स श्रेणियां कहां तक न्याय संगत हैं। मेरा मुद्दा सरकार पर दोषारोपण करना नहीं। सभी राज्य सरकारें (जिनमें विपक्षी दलों की सरकारें भी शामिल हैं) जी.एस.टी. परिषद का हिस्सा हैं। मेरा मुद्दा तो यह है कि ‘पाप’ और ‘अवगुण’ को जब बिना किसी चर्चा के परिभाषित किया जाता है तो क्या देश के आम नागरिक को कोई महत्व दिया जाता है। मैं यह कहकर अपनी बात समाप्त करना चाहूंगा कि स्वतंत्र पत्रकारों और स्तंभकारों द्वारा अपने आलेखों के लिए जो पैसा लिया जाता है उस पर कोई जी.एस.टी. नहीं।-आकार पटेल

Advertising