एक कीमती सुनहरे पल दे गए गुमनाम फरिश्ते

punjabkesari.in Friday, Jun 09, 2023 - 06:23 AM (IST)

राजनीति और साम्प्रदायिकता एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। दुख की बात यह है कि यह अब हमारी सबसे मजबूत मुद्रा बन गई है। ट्रिपल ट्रेन की टक्कर के दौरान यह एक बार फिर अवैध टैंडर बन गई है। हमेशा की तरह लोग खून निकालने के लिए तत्पर होते हैं। मगर योग्य पुलिस को यह श्रेय जाता है कि उसने नफरत को रोकने के लिए सोशल मीडिया को तैनात किया। 

जिस तरह से स्थानीय लोगों ने घायलों को बचाने के लिए दौड़ लगाई, उसमें धर्म की कोई भूमिका नहीं थी। जहां एक ओर दिग्गज नेता फोटो खिंचवाने और अवसरवादिता के बीच अकड़ते हैं, वहीं सबसे निचले पायदान पर रहने वाले अपनी दैनिक कमाई की चिन्ता किए बिना नरसंहार स्थलों की ओर दौड़ लगाने लग जाते हैं। नंगे हाथों और मानवता से ज्यादा कुछ नहीं के साथ यह लोग पीड़ितों को कीमती ‘सुनहरा पल’ दे जाते हैं। 

अपनी पहली प्रतिक्रिया के रूप में सरकार देश की सबसे खराब रेल दुर्घटनाओं में से एक के गुप्त कारणों को जांचने के लिए सामने आई। लेकिन 11 जुलाई 2006 को घर जाने के पीक आवर के दौरान मुंबई के ‘यात्रियों की जीवन रेखा’ को मौत के जाल में बदलने वाले कारण के बारे में कुछ स्पष्ट नहीं था। आतंकियों ने प्रैशर कुकरों में बम को रखकर 11 मिनटों में 7 लोकल ट्रेनों में विस्फोट किए, जो अपने पीछे मौत और तबाही का मंजर छोड़ गए। मुंबई के निकटतम झुग्गी-झोंपडिय़ों में रहने वाले लोग सहज रूप से घटनास्थल पर पहुंच गए थे। कई लोगों ने खून से लथपथ लोगों को उठाने के लिए अपनी एकमात्र बैडशीट का उपयोग किया और घायलों की मदद की। 

12 मार्च 1993 को याद करते हुए जब 12 मिनटों में शहर में आर.डी.एक्स. से सीरियल बम धमाके हुए। उस सुन्न पड़ी राख से ‘मुंबई की आत्मा’ का उदय हुआ। मैंने नागरिकों के एक वर्ग को अनायास बी.एस.ई. को घेरते देखा। उस उदारकर्ता घंटे के भीतर घायलों को निकालने के लिए वाहनों का प्रयोग किया गया और ब्लड बैंकों को भर दिया गया। अभी 2 दिन पहले मैंने महाराष्ट्र हाईवे पुलिस के मृत्युंजय दूतों के बारे में पढ़ा। फस्र्ट एड देने में प्रशिक्षित गैराज और ढाबों में काम करने वाले छोटे-छोटे कर्मचारियों ने व्हाट्सएप ग्रुप को अलर्ट किया। इन 3,483 ‘मृत्युंजय दूतों’ ने 2 वर्षों में 1,528 जिंदगियों को बचाया है। डेढ़ से 2 घंटे की तुलना में उन्होंने 10 मिनट के भीतर दुर्घटना पीड़ितों को ट्रोमा सैंटरों तक पहुंचाया है। यह छोटे लोग एक बड़ा अंतर पैदा करते हैं और हमारे लिए बहुमूल्य हैं।-बाची काकडिय़ा


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