महत्वपूर्ण मुद्दों पर अस्पष्टता ही कांग्रेस की सबसे बड़ी ‘खूबी’

Sunday, Dec 10, 2017 - 01:00 AM (IST)

कितनी आश्चर्यजनक बात है कि कपिल सिब्बल मंदिर-मस्जिद विवाद का अदालती समाधान तो चाहते हैं लेकिन केवल 2019 के चुनाव के बाद। यह सचमुच ही चकरा देने वाली बात है। 

और अब कांग्रेस के नवनिर्वाचित अध्यक्ष यानी कि अध्यक्ष और ‘महान नेता’ राहुल गांधी पर केसरिया रंग कुछ ऐसे चढ़ा है कि उन्होंने जनेऊ भी धारण कर लिया है और खुद को शिवभक्त घोषित कर दिया है। वैसे हमें इस बात की समझ नहीं आती कि वह किसी भी ऐसी स्पर्धा में दूसरे नम्बर पर कैसे आ पाएंगे जिसमें अपने भाजपा जैसे प्रतिद्वंद्वियों से अधिक श्रेष्ठ श्रद्धावान हिंदू होने के प्रमाण से अधिक किसी बात की जरूरत ही नहीं पड़ती। 

सच्चाई यह है कि 18 दिसम्बर को जब हिमाचल प्रदेश और गुजरात में वोटों की गिनती के परिणाम चाहे कुछ भी हों, नेहरू-गांधी परिवार का युवराज यदि गुजरात चुनावी अभियान की तर्ज पर अगले चुनाव से काफी पहले ही मंदिरों के दर्शनों का सिलसिला जारी रखता है तो उसे बहुत अधिक लाभ मिलने की सम्भावना है। लेकिन ऐसा करने की बजाय वह गणतंत्र के पवित्र तीर्थ यानी संसद को वरीयता दे रहा है। उसे चाहिए कि अभी से श्रेष्ठ और श्रद्धावान हिंदू होने के अपने प्रमाणों को और अधिक सुदृढ़ करने में जुट जाए और भविष्य के लाभ की गारंटी करे। 

जैसे कि इसी स्तंभ में पहले भी कहा जा चुका है कि उन्हें मुस्लिमों के बारे में चिंतित होने की जरूरत नहीं है। जहां-जहां भी मुस्लिमों के पास कोई विश्वनीय तीसरा विकल्प है, वह निश्चय ही गैर भाजपा और गैर कांग्रेस दल की ओर जाएंगे, जैसा कि पश्चिम बंगाल, बिहार और उत्तर प्रदेश में हम देख चुके हैं। परंतु जिन राज्यों में भाजपा और कांग्रेस के बीच ही केवल दोकोणी मुकाबला होता है वहां मुस्लिमों को कांग्रेस का ही पक्ष लेना पड़ेगा। यानी कि मुस्लिमों के लिए ‘‘मजबूरी का नाम ही कांग्रेस पार्टी’’ है। दूसरे शब्दों में यदि राहुल गांधी योगी आदित्यनाथ और बाबा राम देव की तर्ज पर ढीला-ढाला भगवा धोती-कुर्ता भी पहन लें तो भी मुस्लिमों के सामने कांग्रेस के पक्ष में मतदान करने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा। ऐसे में राहुल का जनेऊ और चोटीधारी सम्पूर्ण हिंदू बनने का प्रयास बेतुका नहीं है। 

लेकिन सचमुच सदमे की बात यह है कि सोशल मीडिया विभाग मेंयदा-कदा थोड़ा बहुत ध्यान खींचने वाले लोगों को तैनात करने के बावजूद उनके ट्वीटों में कोई चुस्ती चालाकी नहीं आ सकी। यह भी सचमुच सदमे वाली बात है कि कांग्रेस पार्टी में किसी ने भी राहुल गांधी को यह नहीं चेताया कि भाजपा की अंधी नकल करने से उन्हें कौन-कौन से नुक्सान हो सकते हैं। इस मामले में प्रकाशन उद्योग का एक उदाहरण लेते हैं कि किस तरह प्रसिद्ध ‘टाइम’ पत्रिका की नकल करने के चक्कर में ‘न्यूज वीक’ डूब गया। कांग्रेस चाहे कुछ भी कर ले यह भाजपा से अधिक हिंदू बनने की उम्मीद नहीं कर सकती। भाजपा ने अपना हिंदू स्वरूप अनेक वर्षों के कठोर परिश्रम और सचेत प्रयासों के बूते प्रमाणित किया है। 

कांग्रेस किसी भी कीमत पर 2019 से पहले राम मंदिर के बारे में फैसला नहीं होने देना चाहती और ऐसा करने व इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए वह सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील कपिल सिब्बल के माध्यम से छल-कपट का सहारा ले रही है। उसे शायद यह ज्ञात नहीं कि राम मंदिर परियोजना पूरी तरह भाजपा से जुड़ी हुई है। ऐसी कोई भी सम्भावना नहीं है कि कांग्रेस कभी भी इस भावनात्मक तथा वोट लाभ से भरे हुए मुद्दे को हथिया सकेगी। अधीर होने और खुद को भाजपा से भी अधिक हिंदू सिद्ध करने का पैंतरा प्रयुक्त करने की बजाय कांग्रेस के नए अध्यक्ष को अधिक समझदारी और स्पष्ट रणनीति का प्रदर्शन करना चाहिए था।

ऐसा तभी हो सकता था यदि वह कांग्रेस को पूरी तरह भाजपा की विपरीत छवि में प्रस्तुत करते। लेकिन उन्होंने तो खुद को भाजपा वाला अक्स प्रदान करने का प्रयास किया है, ऐसे में लोग असली को छोड़कर भला नकली माल की ओर क्यों जाएंगे? यदि कांग्रेस का यह मानना है कि गुजराती वोटर हिंदुत्व से प्रभावित होते हैं तो वह वहां का विधानसभा चुनाव जीतने के बारे में भूल जाए क्योंकि जनभावनाओं में भाजपा ही अनेक धाराओं वाले हिंदू जीवन दर्शन की प्रतीक है। जैसा कि होना ही था, श्रद्धावान हिंदू होने के राहुल गांधी के फिसलन भरे दावों पर भाजपा के अनेक नेताओं ने बहुत परेशान करने वाले सवाल पूछे हैं।

‘नव-अवतरित शिवभक्त’ को पूछे गए सवाल तो कुछ इस तरह के हैं जैसे पुलिस किसी अपराधी की तफ्तीश करती है। अयोध्या मुद्दे पर उन्हें पूछा गया है: क्या वह उसी स्थान पर राम मंदिर का निर्माण चाहते हैं जहां रामभक्त पसंद करते हैं अथवा वह मस्जिद का पुनर्निर्माण उसी स्थल पर चाहते हैं जहां यह 6 दिसम्बर 1992 को हुए विध्वंस से पहले मौजूद थी? स्पष्ट है कि राहुल गांधी के पास ऐसे सवालों का कोई उत्तर नहीं है। वैसे यदि उनके पास कोई उत्तर होता भी तो सदा से चली आ रही कांग्रेस की नीति के अनुसार वह इसका गोलमोल सा जवाब देते जिससे यह पता ही न चलता कि अधिकतर मुद्दों पर कांग्रेस का क्या स्टैंड है।

नीतिगत दिशा तथा कुंजीवत मुद्दों पर अस्पष्टता ही कांग्रेस की सबसे बड़ी खूबी है। जरा देखिए आज भी यह कैसे समाजवाद की कसमें खा रही है लेकिन जब सत्ता में थी तो इसने कार्पोरेट अमीरशाही की सबसे घटिया बानगी चला रखी थी। कार्पोरेट जगत में जितने भी लोग थोड़े से समय में अरबपति बने हैं उनमें से कौन-सा है जिस पर कांग्रेस पार्टी की कृपा दृष्टि नहीं हुई? जहां तक कांग्रेस के सैकुलर होने की बात है, इस दावे की तो उसी दिन हवा निकल गई थी जब राहुल ने कांग्रेस के लिए समर्थन जुटाने हेतु ऐसे तीन अनाड़ी बंदूकचियों का सहारा लिया जो अपने-अपने जाति समूह के लिए ही बोलते हैं।

राहुल के पिता ने हिंदू वोट आकर्षित करने की मंशा से अयोध्या में शिलान्यास की अनुमति दी थी, जबकि मिजोरम में चुनावी अभियान में उन्होंने वायदा किया था कि जीतने के बाद वहां ‘ईसाई राज’ का बोलबाला होगा। बेटा भी पिता से बेहतर नहीं है। फर्क केवल इतना है कि जहां विपक्ष के बहुत कमजोर होने तथा 24&7 मीडिया और इंटरनैट की अनुपस्थिति के कारण राजीव गांधी ‘चम्म दीयां’ चलाने में सफल हो गए थे, वहीं राहुल एक सशक्त और स्पष्ट लक्ष्य रखने वाली पार्टी से पंगा ले रहे हैं। भाजपा पूरी तरह जानती है कि उसने अपने लक्ष्य की साधना कैसे करनी है लेकिन राहुल तो दूसरों से पूछ-पूछ कर कदम उठाते हैं और यही कामना कर रहे हैं कि हे भगवान भाजपा किसी तरह चुनाव केले के छिलके पर फिसल जाए!-वीरेन्द्र कपूर

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