सहयोगियों को ‘भाजपा’ की जरूरत न कि उसे सहयोगियों की

Wednesday, Dec 04, 2019 - 01:00 AM (IST)

भाजपा का सहयोगी दलों से सब कुछ ठीक नहीं चल रहा। हाल ही में राजग से शिवसेना के नाता तोडऩे के बाद सहयोगी दलों के भीतर फुसफुसाहट-सी चल रही है मगर भाजपा इससे चिंतित नहीं है क्योंकि लोकसभा में उसके पास पूर्ण बहुमत है। हालांकि 2014 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी कैबिनेट में सहयोगी दलों के प्रतिनिधियों को सम्मिलित किया था और 2019 में भी उन्होंने इसी बात को दोहराया है। उनका मानना है कि भारतीय लोकतंत्र के लिए गठबंधन अनिवार्य है तथा उनकी सरकार राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा तथा क्षेत्रीय आकांक्षाओं को मिलाकर चलेगी। 

राजग में सहयोगियों की स्थिति कमजोर पड़ी है। पिछले 5 वर्षों के दौरान कई पाॢटयों ने भाजपा से नाता तोड़ा है, अकाली दल तथा जद (यू) जिन्होंने भाजपा के संग साथ चलनेे की घोषणा की है वह भी पार्टी के व्यवहार से असंतुष्ट दिखाई दे रहे हैं। भाजपा के पास 5 प्रमुख सहयोगी दल जिसमें अकाली दल, तेलगु देशम, शिवसेना, पी.डी.पी. तथा जद (यू)थे। इनमें से दो दल तेलगु देशम ने 2018 तथा शिवसेना ने हाल ही में राजग को अलविदा कहा है। पी.डी.पी. को भाजपा पहले ही अलग कर चुकी है। शिवसेना ही भाजपा की विचारधारा वाली सहयोगी पार्टी है, जबकि अकाली दल का साथ भाजपा के साथ है। राजग के सहयोगी दल अपने-अपने राज्यों में अपने अधिकारों के प्रति गम्भीर रूप से चिंतित हैं। क्या भाजपा को सहयोगियों की जरूरत है? 

राजग में चेयरमैन तथा कन्वीनर होने चाहिएं 
लोकसभा की 543 सीटें हैं। भाजपा को 331 सीटों में सहयोगियों (उत्तर प्रदेश में छोटे सहयोगियों को छोड़ कर) की जरूरत ही नहीं। 212 सीटों में जहां भाजपा सहयोगियों पर निर्भर है वह है बिहार तथा महाराष्ट्र। यहां पर सहयोगी या तो भ्रष्ट हैं या फिर बराबरी के सहभागी हैं। सहयोगियों पर भाजपा इसलिए निर्भर है क्योंकि पार्टी को राज्यसभा में अभी बहुमत चाहिए। 2014 में जब भाजपा सत्ता में आई तब 245 की क्षमता में से इसके पास 43 राज्यसभा सदस्य थे। आज यह गिनती करीब डबल होकर 78 हो चुकी है। सहयोगियों संग भाजपा के पास 115 सदस्य हैं। सदन में अपने एजैंडे को आगे बढ़ाने के लिए इसे कुछ छोटे दलों का सहयोग चाहिए। अटल बिहारी वाजपेयी के समय के मुकाबले राजग के सहयोगी दल स्पष्ट तौर पर वर्तमान व्यवस्था से संतुष्ट हैं। अब शायद ही सहयोगियों के बीच कोई विचार-विमर्श किया जाता है। 

उनका मानना है कि राजग में चेयरमैन तथा कन्वीनर होने चाहिएं जैसे कि पहले हुआ करते थे। पहले जहां भाजपा नेता चेयरमैन तथा कन्वीनर सहयोगी दलों का हुआ करता था। मोदी युग में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं देखी गई। इस मांग को लेकर कई बार आवाज उठाई गई। हालांकि लोकसभा के वर्तमान शीत सत्र से पहले लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) प्रमुख चिराग पासवान ने यह मांग की थी कि समन्वय समिति का संविधान अथवा कन्वीनर को यकीनी बनाया जाए, जिससे सहयोगी दलों के बीच विचारों का आदान-प्रदान किया जा सकेगा।

अकाली दल नेता तथा राज्यसभा सदस्य नरेश गुजराल ने भी कहा, ‘‘ऐसा भी समय था जब भाजपा के साथ कोई भी सहयोगी दल न था उस समय शिवसेना तथा शिअद उसके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े थे। इसका यह मतलब नहीं कि जब आपके पास पूर्ण बहुमत आ जाए तब आप अपने सहयोगियों को छोटा समझना शुरू कर दें।’’ अपना दल, जद (यू) तथा कुछ अन्य दलों ने भी इसी प्रकार की मांग रखी। राजग के पास 16 सहयोगी दल हैं जिसमें से मात्र भाजपा ही राष्ट्रीय पार्टी है। 

यहां पर वोटों के लिए कशमकश
मोदी युग में सहयोगियों संग गठजोड़ इतना आसान नहीं क्योंकि यहां पर वोटों के लिए कशमकश रहती है। भाजपा महत्वाकांक्षी है और अपने आपको विस्तृत करना चाहती है जबकि उसके सहयोगी दल अपने वर्चस्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। यही कारण है कि शिवसेना ने पिछले माह राजग को अलविदा कह दिया। मोदी ने भी उनकी ब्लैकमेलिंग के आगे घुटने नहीं टेके। भाजपा राजग के निर्माण के लिए नई रणनीति अपना रही है। मोदी ने तो पहले ही कह रखा है कि भाजपा के द्वार पुरानी तथा नई सहयोगी पार्टियों के लिए हमेशा खुले हैं। मिसाल के तौर पर तेदेपा का एक बार फिर भाजपा की ओर झुकाव बढ़ रहा है। शिवसेना किसी भी समय वापसी का रुख कर सकती है। भाजपा के पास पूर्वोत्तर के जैसे कई नए सहयोगी दल हैं। इसके साथ-साथ अन्नाद्रमुक, टी.आर.एस., वाई.एस.आर.सी.पी. तथा अन्य छोटे दलों का भी सहयोग है। भाजपा ने अपने आधार को बढ़ाया है और वह सबसे अमीर तथा बड़ी पार्टी बन चुकी है। 

राज्यसभा में भी कांग्रेस को पीछे छोड़ रही है। बड़े राज्यों में इसकी उपस्थिति प्रमुख तौर पर बनी है। भाजपा अब दक्षिण की ओर चढ़ाई कर रही है और उत्तर-पूर्व में अपने-आपको और मजबूत कर रही है। भगवा पार्टी त्रिपुरा में वाम दलों का स्थान ले चुकी है तथा पश्चिम बंगाल में यह कांग्रेस को पछाड़ कर आगे की ओर अग्रसर है। ओडिशा में तो सत्ताधारी पार्टी के लिए यह चुनौती बन चुकी है। इसका विजय रथ बढ़ता जा रहा है तथा राजग 17 राज्यों में अपनी सरकार कायम किए हुए है। मोदी अब शक्तिशाली स्थान ग्रहण कर चुके हैं। अब सहयोगियों को भाजपा की जरूरत है न कि भाजपा को सहयोगियों की। यह पहले हुआ करता था मगर अब नहीं। कोई ऐसा समय भी था जब भाजपा अछूत थी मगर अब ऐसा कतई नहीं। हर पार्टी उससे जुडऩा चाहती है।-कल्याणी शंकर

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