हमारे मूल्यों तथा पहचान का संरक्षक है ‘युवा वर्ग’

punjabkesari.in Sunday, Dec 29, 2019 - 12:33 AM (IST)

क्योंकि यह वर्ष समाप्ति की ओर है, यहां पर मैं आपसे कुछ बांटना चाहता हूं और मेरी बात से आप सब लोग सहमत भी होंगे। हमें भारत के युवाओं का असाधारण तरीके से आभार प्रकट करना होगा। हमारे मूल्यों तथा पहचान का युवा वर्ग सही मायनों में संरक्षक है। मैं जानता हूं कि ये बातें एक बूढ़े व्यक्ति के शेखी बघारने जैसी होंगी और मैं इससे इंकार नहीं कर सकता। मैं शिखर पर हूं और आहिस्ता-आहिस्ता ढलान की ओर बढ़ रहा हूं। मगर यह वास्तविकता है कि इसकी चमक दिल्ली, बेंगलूर, अहमदाबाद या कोलकाता, गुवाहाटी या कोच्चि की गलियों में दिखाई दे रही है। एक स्वर में युवाओं ने खौफनाक नागरिकता संशोधन कानून तथा नैशनल रजिस्टर आफ सिटीजन्स का राष्ट्रव्यापी विरोध किया। 

युवाओं ने लोकतंत्र को बचाया
वास्तव में भारत के युवा ने सभी आंदोलनों जिन्होंने हमारे लोकतंत्र को बचाया तथा उसकी भरपाई की है, की सुरक्षा की है। आपातकाल को पलटने वाले जे.पी. आंदोलन का जन्म गुजरात में छात्र नवनिर्माण आंदोलन से हुआ था। अब वह वृद्ध हो चुके हैं। मगर उस समय के लालू यादव, नीतीश कुमार तथा शरद यादव निष्ठावान युवा नेता थे। यही बात 1980 में इंदिरा गांधी की वापसी के दौरान भी घटी। यूथ कांग्रेस तथा एन.एस.यू.आई. का नेतृत्व गुलाम नबी आजाद, अहमद पटेल, आनंद शर्मा, कमलनाथ तथा दिग्विजय सिंह जैसे युवा चेहरों ने किया था जिनकी बदौलत इंदिरा फिर से सत्ता में आई थीं। हर समय कहानी ने अपने आपको दोहराया जब-जब हमारे लोकतंत्र में ठोस तथा रचनात्मक बदलाव आया। युवाओं ने ही वी.पी. सिंह को सत्ता, अन्ना हजारे की प्रधानता को यकीनी बनाया तथा अरविंद केजरीवाल को 2015 में अविश्वसनीय जीत दिलाई। 

वर्तमान दौर में युवा वर्ग एक उच्च स्तरीय लड़ाई लड़ रहा
इस समय आलोचनात्मक भेद रखने के लिए मैं गलत हो सकता हूं। मिसाल के तौर पर आपातकाल को बदलने के आंदोलन के दौरान। लोकतंत्र तथा स्वाधीनता के लिए उन्होंने लड़ाई लड़ी। वर्तमान दौर में युवा वर्ग एक उच्च स्तरीय लड़ाई लड़ रहा है। यह लड़ाई भारत के विचारों की रक्षा करने के लिए लड़ी जा रही है या फिर दूसरे शब्दों में कहें तो यह लोगों की पहचान के लिए है। जैसा हम अपने आपके बारे में सोचते हैं वैसा ही लोग बनना चाहते हैं। हमारे लोकतंत्र से ज्यादा यह बात आवश्यक है क्योंकि यह इसे मजबूती प्रदान कर रहा है। यदि भारत का विचार नरम पड़ा तब सब कुछ बिखर जाएगा। 

हमें धर्म के आधार पर मत बांटो
यही कारण है कि भारत के युवा का संदेश बहुत ज्यादा महत्ता रखता है। युवाओं का कहना है कि हम सब भारतीय हैं। हमें धर्म के आधार पर मत बांटो। हमारी नागरिकता का व्याख्यान करने वाले सिद्धांत हमारी पहचान की व्याख्या भी करते हैं। हम बैठने वाले नहीं। हम आपको बदल कर रख देंगे क्योंकि आपकी राजनीति को यही सही लगता है। बराबर की हिस्सेदारी तथा मूल्यों की पहचान रखने वाले ङ्क्षहदू, सिख, मुस्लिम, ईसाई, बौद्ध, जैन तथा नास्तिक सभी सर्द हवाओं के झोंकों के सामने एक साथ खड़े हैं। जब सरकार की उग्र शक्ति तथा दमनकारी नीति से उनका सामना होता है तो वे उन्हें लाल गुलाब पेश करते हैं। जब उनकी गिरफ्तारी होती है तब युवा राष्ट्रगान गाते हैं। 

यदि यह एक समझदार सरकार है तथा इसके पास विवेक है तो इसे सब कुछ स्वीकार करना चाहिए कि इससे कुछ गलतियां हुईं। इसे माफी मांगनी चाहिए परंतु मुझे शंका है कि ऐसा कुछ नहीं होगा। मगर देखना यह है कि भारतीय युवाओं के दिलों के रोने तथा उनके गुस्से को लेकर सरकार किस तरह अपनी प्रतिक्रिया देती है। शायद गृह मंत्री अमित शाह के नासमझी भरे बयानों ने रोष भड़काया। शाह भी विश्वसनीयता की कमी रखते हैं। मगर जब हम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की बात करें तो वह अपने आपको प्रधान सेवक बुलाते हैं। उनका दावा है कि भारतीय संविधान उनकी पवित्र किताब है। मगर वह चुप क्यों हैं। क्या वह कुछ बोलने के लिए नहीं सोचते। या फिर यह कहें कि वह अनिवार्य ही नहीं समझते? 

मोदी को यह याद रखना चाहिए कि भारत का प्रधानमंत्री एक राजनीतिक कार्यालय से बढ़कर है। उनकी जिम्मेदारियां आर्थिक नीतियों, विदेशी नीतियों की पहल करना तथा लोक कल्याण के उपायों को लागू करने से ज्यादा हैं। जब राष्ट्र आग में जल रहा है तब हम प्रधानमंत्री की ओर देखते हैं कि वह कोई निर्णय लेंगे। हम उनमें भरोसा जताते हैं। जख्मों को भरने तथा सबको इकट्ठा करने की जिम्मेदारी उन पर है। वह विश्व भर में महानतम प्रधानमंत्री हुए हैं, जिन्होंने नाम कमाया है। मगर अफसोस कि नरेन्द्र मोदी ने नहीं। रो-रो कर चिल्ला रहे राष्ट्र की तरफ उन्होंने अपनी पीठ कर रखी है और हमें अपने आंसुओं को सुखाने के लिए छोड़ रखा है। 

अव्यवस्थित मेज अव्यवस्थित बुद्धि का प्रतीक होता है। आइंस्टीन ने एक बार कहा था कि क्या हो यदि एक गंदा मेज हो। मुझे डर है कि इस सवाल ने मेरे मन में बसेरा कर लिया है। मेरा तो पूर्वकालीन, स्वच्छ, कागजों से स्वतंत्र, सुंदरता से सजा हुआ और हमेशा भयभीत करने वाला मेज है। मुझे आशा है कि यह गुण, अनुशासन, बुना हुआ विचार तथा ऊंची उदारता का प्रमाण था मगर अब मैं आश्वस्त हूं। इसलिए मुझे खुलकर दखल देना चाहिए। मैं एक ऐसे व्यक्ति जैसा हूं जो अपनी जायदाद को सूक्ष्म तरीके से रखता है। सभी वस्तुओं को ठीक  ढंग से रखा गया है। सभी को एक उचित कोण से रखा गया है। यदि घर में कोई मेहमान आता है तो मेरी वस्तुओं को थोड़ा सा इधर-उधर हिलाता है तो फिर मैं साहस से बिना सोचे उन्हें फिर उसी स्थिति में रख देता हूं। 25 वर्षों के बाद भी मेरे नौकरों ने मुझे समझना शुरू कर दिया है। प्रत्येक किताब, चित्र, ऐश-ट्रे, मूर्ति या फिर बोल सभी कुछ अपने स्थान पर सजे हुए हैं। 

कुछ लोगों का धुंधला विचार
दूसरी तरफ यहां कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जिनको एक धुंधला-सा भी विचार नहीं होता कि उनकी वस्तुएं कहां रखी गई हैं। उन्हें नहीं पता होता कि ये कप बोर्ड, डाइनिंग टेबल, सीढिय़ों के नीचे या फिर कार में पड़ी हैं। उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। अव्यवस्था तथा उलझन उनके धैर्य पर कोई असर नहीं छोड़ती।-करण थापर
 


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