घायल हुई भारत की ‘आत्मा’

Monday, Dec 16, 2019 - 01:54 AM (IST)

प्रोजैक्ट हिन्दू राष्ट्र तेजी से आगे बढ़ रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इसके इंजन हैं, स्टीयरिंग पर गृहमंत्री, अमित शाह बैठे हैं। डिजाइनर/ इंजीनियर आर.एस.एस. इसको उत्सुकता से देख रहा है। 

मुसलमानों को स्पष्ट संदेश
हैरानी इस बात की है कि चुनाव में प्रचंड जीत हासिल करने के बाद भाजपा बड़ी तेजी के साथ अपने एजैंडे पर आगे बढ़ रही है : तीन तलाक का अपराधीकरण, असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एन.आर.सी.) का इस्तेमाल, अनुच्छेद 370 को समाप्त करना और, अब, नागरिकता संशोधन विधेयक (कैब) को पारित करना प्रोजैक्ट हिन्दू राष्ट्र को बढ़ाने की योजना का हिस्सा है। इन कदमों के पीछे का सांझा मकसद भारत के मुसलमानों को यह साफ और स्पष्ट संदेश देना कि वे इस देश के समान नागरिक नहीं हैं और गोलवलकर-सावरकर की ‘भारत एक हिन्दू राष्ट्र है’ की थ्यूरी पर जोर देना है। 

नागरिकता अधिनियम 1955 जन्म से नागरिकता, आनुवांशिक तौर पर नागरिकता, पंजीकरण द्वारा नागरिकता, प्राकृतिक तौर पर नागरिकता और किसी क्षेत्र को अपने में शामिल करने पर नागरिकता को मान्यता प्रदान करता है। इसके अलावा भारत में रह रहे अन्य सभी लोग ‘अवैध  प्रवासी’ होंगे। उन पर फॉरनर्स एक्ट 1946 और पासपोर्ट (एंट्री इनटू इंडिया) एक्ट, 1920 लागू होंगे और उन्हें दश से निकाला जा सकता है। भारतीय नागरिकता से किसी नागरिक या अवैध प्रवासी के धर्म का कोई संबंध नहीं था। नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2019 के पास होने से उक्त सभी चीजें बदल गई हैं। यह विधेयक संदिग्ध है। वास्तव में, बहुत से विद्वानों और पूर्व जजों का मानना है कि यह असंवैधानिक है। 

सवाल एक जवाब कोई नहीं
यह विधेयक क्या करता है? यह तीन देशों का चयन करता है-अफगानिस्तान, बंगलादेश और पाकिस्तान। यह 6 अल्पसंख्यक, समुदायों को चुनता है-हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई। बिल यह मांग कर चलता है कि इन तीन देशों में से किसी भी देश के तथा इन 6 समुदायों से किसी भी समुदाय से संबंधित व्यक्ति जिसने 31 दिसम्बर, 2014 से पहले भारत में प्रवेश किया है, वह अपने देश में प्रताडि़त हुआ है और इसलिए उसे एक एग्जीक्यूटिव आर्डर के सहायक से फॉरनर्स एक्ट एंड द पासपोर्ट (एंट्री इनटू इंडिया) एक्ट के प्रावधानों से छूट दी जा सकती है। ऐसा व्यक्ति ‘अवैध प्रवासी’ नहीं होगा। संक्षेप में संशोधन विधेयक ने नागरिकता हासिल करने का एक नया रास्ता तैयार कर दिया है-कार्यकारी आदेश द्वारा नागरिकता। कई प्रश्र पैदा होते हैं, वे पूछे  गए थे, लेकिन सरकार के पास कोई जवाब नहीं थे : 

1. स्पैशल ट्रीटमैंट के लिए पड़ोसी देशों जैसे कि श्रीलंका, म्यांमार, भूटान और नेपाल को छोड़ कर केवल 3 ही देशों को क्यों चुना गया। 
2. स्पैशल ट्रीटमैंट के लिए केवल 6 समुदायों को ही क्यों चुना गया तथा अन्य समुदायों को छोड़ दिया गया-जिन से अपने देश में बहुसंख्यक समुदाय से जुड़े न होने के कारण भेदभाव होता था-जैसे कि अहमदिया, हजारा, ब्लोची, रोहिंग्या, यहूदी?
3. अब्राहिमक धर्म तीन हैं : यहूदियों और इस्लाम को छोड़ कर केवल ईसाइयत को ही क्यों चुना गया?
4. हिन्दुओं को क्यों शामिल किया गया, लेेकिन श्रीलंका के हिन्दुओं को बाहर रखा गया। ईसाइयों को क्यों शामिल किया गया, लेकिन भूटान के ईसाइयों को बाहर रखा गया। 
5. कानून का आधार धार्मिक उत्पीडऩ है ऐसे में अन्य प्रकार के उत्पीडऩ का शिकार हुए लोगों का क्या होगा जैसे कि भाषायी, राजनीतिक, सांस्कृतिक, जाति के आधार पर आधारित। गृह युद्ध से पीड़ित लोगों के लिए क्या प्रावधान है?
6. कट ऑफ डेट 31 दिसम्बर 2014 क्यों रखी गई। असम समझौते में वॢणत 25 मार्च 1971 की कट ऑफ डेट पर इसका क्या असर पड़ेगा? क्या वे कट ऑफ डेट छोड़ दी गई है?
7. संशोधित विधेयक के प्रावधानों से ‘‘ संविधान के छठे शैड्यूल में शामिल असम, मेघालय, मिजोरम अथवा त्रिपुरा के जनजातीय क्षेत्रों तथा ‘द इनर लाइन’ जो बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रैगुलेशन, 1773 के तहत कवर्ड है उस क्षेत्र को’’ छूट देने के पीछे क्या मकसद है? इस तरह की छूट के क्या परिणाम होंगे? 

8. क्या कैब और एन.आर.सी. जुड़वां की तरह नहीं हैं? इनमें से पहले कौन-सा लागू होगा, कैब या एन.आर.सी.। 
9. क्या उन लोगों, जो यह दावा करते रहे हैं कि वे भारत में पैदा हुए थे अथवा 25 मार्च 1971 से पहले भारत आए थे, अब अपनी कहानी बदलनी होगी और यह दावा करना होगा कि वे अपने गृह देश में धार्मिक उत्पीडऩ का शिकार हुए थे? उनका कौन-सा दावा झूठा होगा और कौन-सा दावा सच्चा होगा। 

मुसलमानों को बाहर रखने के परिणाम
यदि कैब और एन.आर.सी. दोनों  को लागू किया जाएगा, एन.आर.सी. के तहत बाहर रखे गए गैर मुसलमानों को कैब के अंतर्गत शामिल कर लिया जाएगा। इसका परिणाम यह होगा कि केवल मुसलमानों को अवैध प्रवासियों के तौर पर चिन्हित किया जाएगा और सूची से बाहर रखा जाएगा। इसके गंभीर परिणाम होंगे। एक बार नागरिकता से सूची से बाहर होने पर सरकार को बाहर रखे गए लोगों को अलग करके तब तक शिविरों में रखना होगा जब तक कोई देश उन्हें स्वीकार करने के लिए राजी नहीं हो जाता। ये शिविर कहां बनाए जाएंगे और कितने शिविरों की जरूरत होगी? क्या ‘अवैध प्रवासी’ अपनी शेष जिंदगी तक शिविर में रहेंगे? और उनके बच्चों की क्या स्थिति होगी। इसके अलावा, इसके सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिणाम होंगे, भारत और विदेश में लाखों मुसलमानों को अनिश्चित समय के लिए शिविरों में कैद करके रखा जाएगा। भारत में  इस तरह की कार्रवाई की प्रतिक्रिया के तौर पर श्रीलंका, म्यांमार और पाकिस्तान में रह रहे हिन्दुओं पर भारत जाने के लिए दबाव बढ़ेगा। 

सरकार ने नहीं किया ठोस विचार 
यह स्पष्ट है कि यदि कैब को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 यूनिवर्सल डिक्लारेशन ऑफ हयूमन राइट्स की कसौटी पर आंकने पर यह पता चलता है कि सरकार ने कैब की संवैधानिक वैधता पर ठीक तरह से विचार नहीं किया है। इसके खिलाफ असम और उत्तर-पूर्वी राज्यों में हिंसक प्रदर्शन शुरू हो चुके हैं। देश भर में बहुत से वर्गों के लोग, जिनमें से अधिकतर हिन्दू हैं, इन प्रदर्शनों में शामिल हो रहे हैं। कैब के बारे में गंभीर सवाल होने के बावजूद तथा सब जगह अशांति का माहौल होने के बावजूद संसद और कार्य पालिका ने मिल कर इस असंवैधानिक विधेयक को पास कर दिया। अब समानता और संवैधानिक नैतिकता को बहाल करने की जिम्मेदारी न्यायपालिका पर होगी।-पी. चिदम्बरम

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