भाजपा के लिए तेलंगाना है दूर की कौड़ी
punjabkesari.in Tuesday, Nov 28, 2023 - 03:57 AM (IST)

भारत का सबसे युवा राज्य तेलंगाना त्रिकोणीय मुकाबले के लिए तैयार है। चुनावी मुकाबला सत्तारूढ़ भारत राष्ट्र समिति (बी.आर.एस.), कांग्रेस और भाजपा के बीच है। 2014 में अपनी स्थापना के बाद से बी.आर.एस. प्रमुख के.चंद्रशेखर राव (के.सी.आर.) शीर्ष पर रहे हैं। वह हैट्रिक लगाने के लिए बेताब हैं। हालांकि सत्ता विरोधी लहर उनके लिए एक बड़ी चुनौती है।
अलग तेलंगाना आंदोलन सफलतापूर्वक चलाने के बाद उन्हें विभिन्न कारणों से लोकप्रियता में गिरावट का सामना करना पड़ा। 2018 में आश्चर्यजनक रूप से चुनावों को समय से पहले रखते हुए टी.आर.एस. ने 119 सदस्यीय विधानसभा में 88 सीटें जीतीं। वहीं कांग्रेस ने 19 और ए.आई.एम.आई.एम. ने 7 सीटें जीतीं। वर्तमान में बी.आर.एस. अन्य दलों को तोड़ कर अपने पास 99 सीटें रखती है जबकि कांग्रेस के पास 8 विधायक हैं। ए.आई.एम.आई.एम. तथा भाजपा के पास क्रमश: 7 और 6 विधायक हैं। के.सी.आर. एक शक्तिशाली तानाशाह हैं और उन्होंने अपने बेटे और बेटी सहित परिवार के सदस्यों को प्रमुख पदों पर बिठाया है। उनके बेटे उपमुख्यमंत्री हैं और उनकी बेटी कविता एक सांसद हैं जबकि उनका भतीजा एक मंत्री है।
के.सी.आर. के पास अपने और अपने परिवार के लिए बड़ी योजनाएं हैं। जीतने के बाद वह अपने बेटे को राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में स्थापित करने की योजना बना रहे हैं। वह राज्य स्तर के राजनेता होने से संतुष्ट दिखाई नहीं देते। उन्होंने राष्ट्रीय राजनीति पर अपनी नजरें जमा ली हैं। पहले कदम के रूप में के.सी.आर. ने पार्टी का नाम तेलंगाना राष्ट्र समिति (टी.आर.एस.) से बदल कर भारत राष्ट्र समिति (बी.आर.एस.) कर दिया, जो अधिक राष्ट्रीय दृष्टिकोण की ओर बदलाव का संकेत है। राव ने पिछले दशक में तीसरा मोर्चा, राष्ट्रीय मोर्चा और जिंजर ग्रुप बनाने का प्रयास किया था। नवगठित विपक्षी समूह आई.एन.डी.आई.ए. ने भाजपा को चुनौती देने के अपने उद्देश्य के बावजूद अभी तक के.सी.आर. को अपने साथ शामिल होने के लिए आमंत्रित नहीं किया है। उनका आरोप है कि के.सी.आर. भाजपा की बी टीम है।
यह चुनाव तीन प्राथमिक राजनीतिक खिलाडिय़ों के लिए एक सफल क्षण है क्योंकि भाजपा तेलंगाना को दक्षिणी राजनीति में लाभ पाने के एक अवसर के रूप में देखती है। राज्य के नतीजे नि:संदेह अगले वर्ष के लोकसभा के चुनाव की दिशा तय करेंगे। तेलगुदेशम (तेदेपा) पार्टी एक समय एक महत्वपूर्ण राजनीतिक पार्टी थी लेकिन पिछले दशक में कमजोर हो गई। इसके नेता चंद्रबाबू नायडू भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे हैं और उन्होंने घोषणा की है कि पार्टी आगामी चुनावों में भाग नहीं लेगी। इस बीच कांग्रेस पार्टी ने अपनी स्थिति फिर से हासिल कर ली है और बी.आर.एस. के लिए एक गंभीर चुनौती खड़ी कर दी है।
भाजपा का राज्य में मुख्य विपक्षी दल बनने का लक्ष्य दूर की कौड़ी है। नगर निगम चुनाव में सुधार के बावजूद अब वह तीसरे स्थान पर खिसक गई है। कर्नाटक में 2 बार जीतने के अलावा भाजपा एन.आर. के साथ गठबंधन को छोड़ कर दक्षिण भारत में इसकी कोई महत्वपूर्ण उपस्थिति नहीं है। पुड्डुचेरी में कांग्रेस और उत्तर में भाजपा किसी भी संभावित नुक्सान को संतुलित करने के लिए दक्षिण में अधिक सीटें हासिल करने का इरादा रखती हैं। जहां उनका विस्तार पहले से ही अपने चरम पर है। कांग्रेस को 2014 में दबाव में आकर आंध्र प्रदेश को बांटने का अफसोस है। हैरानी की बात यह है कि यह कदम उलटा पड़ गया क्योंकि लोगों ने कांग्रेस को खारिज कर दिया और बी.आर.एस. का समर्थन किया।
के.सी.आर. ने 2 निर्वाचन क्षेत्रों से अपनी उम्मीदवारी की घोषणा की है। गजवेल में उनका मुकाबला बी.आर.एस. के ही एक बागी से है जबकि कामारेड्डी में उनका मुकाबला कांग्रेसी नेता से होगा। उन्होंने जोखिम लेने के बावजूद पार्टी में किसी भी विद्रोह से बचने के लिए सभी मंत्रियों और वरिष्ठ विधायकों को बरकरार रखा है। हालिया जनमत सर्वेक्षणों के अनुसार कांग्रेस पार्टी चुनावी प्रतियोगिता में सबसे आगे है। उसके बाद बी.आर.एस. और फिर भाजपा का नम्बर आता है। बी.आर.एस. के पिछली बार की तुलना में कम सीटें जीतने की उम्मीद है जबकि कांग्रेस को ज्यादा सीटें मिलने का अनुमान है। ए.आई.एम.आई.एम. जिसकी सीमित उपस्थिति है, वहीं सीटें बरकरार रख सकती है। कुछ स्वतंत्र उम्मीदवार एक या दो सीटें जीत सकते हैं। भाजपा के चौथे स्थान पर रहने की उम्मीद है।
के.सी.आर. का मानना है कि उनके काम से उन्हें वोट मिलेंगे। उन्होंने सिंचाई के साथ-साथ सूचना, प्रौद्योगिकी पर भी ध्यान केन्द्रित किया है। गूगल जैसी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने 2014 से पहले भी हैदराबाद में निवेश किया है। तेलंगाना की जी.डी.पी. दोगुने से भी ज्यादा हो गई है लेकिन नकदी से समृद्ध राज्य पर भारी कर्ज का बोझ है। भाजपा कांग्रेस के अलावा तेलंगाना पर शासन करने वाली किसी अन्य पार्टी के साथ-साथ सामंजस्य स्थापित करेगी। अफवाहों के मुताबिक भाजपा एक गुप्त सौदे में के.सी.आर. की मदद कर रही है। बदले में भाजपा के.सी.आर. की बेटी पर नर्म रुख अपनाएगी, जिसे एजैंसियां परेशान करती थीं। रेवंत रैड्डी के नेतृत्व की बदौलत कांग्रेस तेजी से बढ़त हासिल कर रही है। सोनिया गांधी ने मतदाताओं का दिल जीतने के लिए 6 लोकलुभावन योजनाओं की घोषणा की है जिसमें महिलाओं के लिए 2500 और किसानों के लिए 15000 रुपए की पेशकश की गई है। उन्होंने भीड़ को यह भी याद दिलाया कि कांग्रेस ने 2014 में तेलंगाना बनाया था।
के.सी.आर. की सफलता उनकी राजनीतिक रणनीति पर निर्भर है। इसके विपरीत उनके विरोधी उनके परिवार की आलोचना करते हैं और उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हैं। के.सी.आर. 2014 में तेलंगाना मुद्दे पर विजयी हुए और 2018 के चुनाव में उन्होंने किसानों का समर्थन किया। हालांकि वर्तमान में उन्हें सत्ता विरोधी लहर, पुनर्जीवित कांग्रेस और उनकी बेटी की प्रतिष्ठा को धूमिल करने के केन्द्र के प्रयासों का सामना करना पड़ रहा है। कांग्रेस को ‘गेम ऑफ थ्रोन्स’ में सत्ता हासिल करने के लिए इस अवसर का लाभ उठाना चाहिए। राज्य में बदलाव का मूड है और लोग परिवर्तन लाने के लिए दृढ़ संकल्पित होते हैं तो वे किसी भी चुनौती या बाधा के बावजूद ऐसा करेंगे।-कल्याणी शंकर