तेलंगाना विधानसभा चुनाव में विरोधियों को हराने हेतु कर्नाटक से गायब किए जा रहे उल्लू

Tuesday, Dec 04, 2018 - 04:42 AM (IST)

कलबुर्गी जिले में पुलिसकर्मियों ने तेलंगाना की सीमा से सटे सेदाम तालुके से 6 लोगों को इंडियन ईगल आऊल की तस्करी के आरोप में गिरफ्तार किया। पूछताछ के दौरान तस्करों ने जो कारण बताया उसे सुनकर पुलिसकर्मी भी हैरान रह गए।

अवैध रूप से जंगली जानवरों को पकडऩे वालों ने बताया कि पड़ोसी राज्य तेलंगाना में चुनाव लड़ रहे राजनेताओं ने रात में जगने वाले पक्षियों का ऑर्डर दिया था। दरअसल, वे इनकी मदद से अपने प्रतिद्वंद्वी के गुडलक को बैडलक में तबदील करना चाहते हैं। बता दें कि तेलंगाना में 7 दिसम्बर को विधानसभा चुनाव होने हैं। जहां इंगलैंड और दूसरे देशों में वे (रात में जागने वाले पक्षी) बुद्धिमता के प्रतीक हैं, वहीं भारत में माना जाता है कि वे अपने साथ बुरी किस्मत लेकर आते हैं... और खासतौर पर तब जब उल्लू घर में दाखिल हो जाए। इनका इस्तेमाल विशेष तौर पर अंधविश्वासपूर्ण प्रथाओं और काले जादू के लिए किया जाता है। 

3 से 4 लाख रुपए में प्रति उल्लू 
वन विभाग के सूत्रों का कहना है कि शरारती तत्वों की योजना थी कि वे प्रत्येक उल्लू को 3 लाख से 4 लाख रुपए के बीच बेचेंगे। एक अधिकारी ने बताया, ‘‘इंडियन ईगल आऊल को कन्नड़ में कोम्बिना गूबे कहा जाता है।’’ उन्होंने बताया, ‘‘इसके पीछे एक अंधविश्वास यह भी जुड़ा हुआ है कि इनके जरिए लोगों को अपने वश में किया जा सकता है क्योंकि इन पक्षियों के पास बड़ी-बड़ी आंखें होती हैं, जो झपकती नहीं हैं।’’ कई बार काला जादू करते वक्त उल्लुओं को मार दिया जाता है और उनके शरीर के अंग जैसे कि सिर, पंख, आंखें, पैर आदि सामने वाले प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार के घर के सामने फैंक दिए जाते हैं ताकि वह वश में आ जाए या फिर उसे चुनाव में पराजय का सामना करना पड़े। सूत्रों का कहना है कि अक्सर विपक्षी पार्टियों के उम्मीदवार ये तमाम चीजें इसलिए करते हैं क्योंकि वे सोचते हैं कि इससे उन्हें जीत हासिल होगी। 

जंगल में रहने वाले लोगों का कहना है कि बेंगलूर से 3, मैसूर से 3 और बेलागवी से 2 ऐसे ही मामले पहले भी सामने आ चुके हैं। हालांकि वाइल्ड लाइफ एक्टिविस्ट बताते हैं कि दीवाली और लक्ष्मी पूजा जैसे त्यौहारों के वक्त भी उल्लुओं की भारी डिमांड होती है। कर्नाटक के पक्षी प्रेमियों का मानना है कि तेलंगाना में विधानसभा चुनाव हैं जिसकी वजह से कई उल्लू खतरे में हैं। कलबुर्गी सब-डिवीजन में असिस्टैंट कन्जर्वेटर ऑफ फॉरैस्ट्स आर.आर. यादव, जिन्होंने 2 उल्लुओं को अपने ठिकाने पर लौटने में मदद की थी, बताते हैं कि ऐसा लगता है कि कर्नाटक में उल्लू व्यापार का एक बड़ा नैटवर्क चलता है। यादव कहते हैं, ‘‘हमें पता चला कि कर्नाटक के जमाखंडी, बागलकोट जिलों से उल्लुओं को लाया गया और उन्हें सेदाम में एक मध्यस्थ के जरिए हैदराबाद भेजा जा रहा था। वह बताते हैं कि प्रत्येक का वजन तकरीबन 5 किलोग्राम था। ये उल्लू अक्सर पहाड़ी क्षेत्रों में पाए जाते हैं। 

तंत्र साधना के लिए इस्तेमाल 
क्विक एनिमल रैस्क्यू टीम के संस्थापक मोहन के. कहते हैं कि कर्नाटक अन्य राज्यों में काले जादू के लिए उल्लू के स्रोत के रूप में तेजी से उभर रहा है। मोहन के मुताबिक कर्नाटक में काले जादू के लिए उल्लुओं के इस्तेमाल के बहुत कम मामले हैं। वह कहते हैं कि तांत्रिक अपनी क्रियाओं में स्लैंडर लॉरिस और ईगल्स का इस्तेमाल करते हैं लेकिन कई मामले उल्लुओं को पकडऩे और उनकी तस्करी अन्य राज्यों में करने के भी सामने आए हैं। स्लैंडर लॉरिस को पकडऩा मुश्किल होता है, जिसकी वजह तांत्रिक अपनी तंत्र साधना के लिए उल्लुओं का इस्तेमाल कर्नाटक में भी कर सकते हैं। 

उल्लुओं में अपनी गर्दन 270 डिग्री तक घुमा लेने की क्षमता होती है। इनके साथ एक अंधविश्वास यह भी जुड़ा हुआ है कि इन्हें छिपे हुए खजाने को तलाशने में महारत हासिल होती है। अंधविश्वास की कड़ी में मान्यता है कि उल्लू खजाने वाली संदिग्ध जगह के चारों ओर चक्कर काटता है। जहां पर उल्लू अपनी गर्दन 270 डिग्री पर घुमा दे, ऐसा कहा जाता है कि वहीं पर खजाना छिपा होता है। एनिमल एक्टिविस्ट और वन्य जीव प्रेमी कहते हैं कि उल्लुओं को सुरक्षित रखने का सबसे अच्छा तरीका तो यह है कि अंधविश्वास का भंडाफोड़ कर लोगों के बीच जागरूकता फैलाई जाए।-रोहित बी.आर.

Pardeep

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