प्रायोगिक तथा तार्किक शिक्षा को प्रसारित करें शिक्षक

punjabkesari.in Friday, Sep 17, 2021 - 04:42 AM (IST)

योगी मनुष्य ने वैज्ञानिक शक्तियों से बहुत पहले ही साक्षात्कार कर लिया था। विज्ञान को समझने तथा उसके तत्वों का मूल्यांकन करना ही वैज्ञानिक चेतना का परिभाषित रूप है। आसपास के वातावरण पर विज्ञान का प्रभाव मनुष्य को व्यवहार कुशल बनाता है। यातायात के आधुनिक साधन, प्रौद्योगिकी का विकास, उद्योग-धंधे, उत्पादन, बिजली और प्रचार माध्यम, रसायन एवं औषधि विज्ञान हमारे दैनंदिन जीवन का अंग बन चुके हैं। खाद्य पदार्थों से लेकर तकनीकी संसाधनों, चिकित्सा क्षेत्र से लेकर स्वच्छता तथा स्वास्थ्य के क्षेत्र को विज्ञान की सहायता से सुगम तथा सुलभ बनाया जा सका है। वैज्ञानिक चेतना हमें प्रश्न करने तथा उस प्रश्न का हल ढूंढनेे के लिए प्रेरित करती है।

हम वेदों और पुराणों की ओर जाएं तो पाएंगे कि प्रत्येक बात का प्रारंभ ही प्रश्न से होता है और उस प्रश्न का उत्तर ढूंढना मानव मन में चेतना के संचार को बढ़ावा देता है। शिक्षा के क्षेत्र में वैज्ञानिक चेतना का संचार बाल मन को जिज्ञासु बनाता है तथा उस जिज्ञासा को शांत करने का कार्य शिक्षक करते हैं। शिक्षक को मात्र अनुसरण करने वाली शिक्षा को बढ़ावा न देते हुए प्रायोगिक तथा तार्किक शिक्षा को प्रसारित करना चाहिए, ताकि प्रारंभ से ही छात्र खुले मन से प्रश्न पूछ सकें तथा उनके संभावित उत्तरों की खोज में स्वयं भी संलिप्त हो सकें, जो सहज रूप से ही छात्र को विज्ञान से जोडऩे का कार्य करेगा।

स्वयं को तथा अपनी शक्तियों को जानना भी एक विशेष प्रकार का विज्ञान है जो छात्र के मन को उद्वेलित करता है। यदि शिक्षक के रूप में हम केवल अनुसरण करने वाले छात्र बनाते हैं तो उनकी वैज्ञानिक चेतना नष्ट हो जाएगी, जोकि एक मानसिक प्रवृत्ति है तथा जीवन जीने के लिए एक प्रमुख आवश्यकता भी। प्रत्येक शिक्षक को अपने ज्ञान का स्तर बढ़ाना ही होगा क्योंकि ज्ञान के लुप्त होने की दर अब बहुत तेज हो चुकी है जिसके लिए उसे समय की मांग के अनुसार स्वयं को तकनीकी रूप से सुदृढ़ तथा सशक्त बनाना होगा। इसे यदि आज के संदर्भ में देखें तो पाएंगे कि कोविड-19 जैसी महामारी में भी विश्व के सभी लोग आपस में जुड़े हुए हैं, जबकि आवागमन पूरी तरह या आंशिक रूप से आज भी बाधित है।

इस स्थिति में भी विद्यार्थियों को शिक्षा मिल रही है तथा सभी प्रकार के कार्य पूर्ण किए जा रहे हैं। इसका श्रेय भी विज्ञान तथा उसके सदुपयोग को ही जाता है। तकनीकी रूप से स्वयं को समृद्ध करना तथा शिक्षक के रूप में अपने छात्रों को अनवरत रूप से शिक्षा देने के लिए प्रेरित करना प्रत्येक शिक्षक को आत्मविश्वास तथा गर्व से भर देता है। यदि भारत के गौरवान्वित इतिहास की ओर देखा जाए तो हम पाएंगे कि हमारे पूर्वजों ने भी जीवन की विभिन्न चुनौतियों को स्वीकार करते हुए उनका वैज्ञानिक हल निकाला। ऋषि-मुनियों ने विभिन्न प्रकार के सिद्धांतों तथा नियमों का निर्माण किया। जल शक्ति, वायु शक्ति, अग्नि शक्ति यहां तक कि पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति को पहचाना तथा उससे होने वाले लाभ से अवगत कराने वाले ग्रंथ भी लिखे ताकि यह ज्ञान आने वाली पीढिय़ों में संचारित हो सके और इसका लाभ मानवता को प्राप्त हो।

युवा मस्तिष्क को नए विचारों से सीखना होगा तथा विज्ञान से होने वाले लाभों के प्रतिशत को बढ़ाना होगा, ताकि किसी भी प्रकार के संतुलन को सहेजा जा सके, तकनीक तथा प्रकृति में सामंजस्य बिठाया जा सके। भारतीय संविधान में उल्लेखित नागरिकों के 10 मूल कत्र्तव्यों में से एक कहता है कि भारत का प्रत्येक नागरिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करे। इस सामान्य से लगते क्रांतिकारी प्रावधान पर यदि हर नागरिक अमल कर ले तो हमारे समाज का मन वैज्ञानिक मन हो जाएगा।


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