पैट्रोल-डीजल पर वसूल किया जा रहा टैक्स एक तरह से ‘मुफ्त का माल’

punjabkesari.in Sunday, Sep 24, 2017 - 01:39 AM (IST)

मुझे जुलाई 2008 का वह दिन याद है जिस दिन कच्चे तेल की कीमतें 147 डालर प्रति बैरल पर पहुंच गई थीं। मुझे वह दिन भी याद है जब सऊदी अरब के शाह ने कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों से पैदा हुए संकट पर चर्चा करने के लिए तेल उत्पादक तथा तेल उपभोक्ता देशों के सम्मेलन का आयोजन किया था। मैं भारतीय शिष्टमंडल का नेतृत्व कर रहा था जिसमें तत्कालीन पैट्रोलियम मंत्री मुरली देवड़ा भी शामिल थे। 

सम्मेलन में हमने एक कीमत पट्टी (प्राइस बैंड) का सुझाव दिया। यानी कि एक ऐसी ऊपरी सीमा जो तेल उत्पादक देशों द्वारा पार नहीं की जाएगी तथा एक ऐसी न्यूनतम सीमा जिसका उल्लंघन तेल खपतकार देशों द्वारा नहीं किया जाएगा। यह दोनों ओर से एक प्रकार की परस्पर गारंटी थी। हर किसी ने समझदारी भरी सहमति में सिर हिलाया लेकिन फिर भी इस पर समझौता न हो सका। यू.पी.ए. शासन की पूरी अवधि (2004-2014) दौरान एक संक्षिप्त से काल खंड को छोड़कर कच्चे तेल की कीमतें सदैव ऊंचे स्तर पर बनी रहीं। ऐसे में पैट्रोलियम उत्पादों, खास तौर पर पैट्रोल और डीजल पर टैक्स लगाने के सिवा कोई चारा ही नहीं था क्योंकि एक ओर तो हमें राजस्व जुटाना था तथा दूसरी ओर खपत पर अंकुश लगाने की जरूरत थी। 

कुछ पैट्रोलियम उत्पादों, खास तौर पर मिट्टी के तेल और एल.पी.जी. पर सबसिडी देना भी अपरिहार्य था क्योंकि हम गरीबों पर तेल की ऊंची कीमतों के दुष्प्रभाव को कम करना चाहते थे और साथ ही हमें जंगलों की रक्षा भी करनी थी। यह तलवार की धार पर चलने जैसा काम था और हमने इसे बहुत तनाव और दबाव की स्थितियों में अंजाम दिया। फिर भी जब कभी कीमतें बढ़तीं, विपक्ष (खास तौर पर भाजपा) द्वारा यू.पी.ए. सरकार को हाल-बेहाल कर दिया जाता था। 

जिन्स व तेल कीमतें धराशायी
2014 से तेल जगत की स्थिति उलटी घूम गई है। पैट्रोलियम तेलों सहित सभी जिन्सों की मांग धराशायी हो गई है। शेल ऑयल दोहन के लिए नए और सस्ते तरीकों का आविष्कार कर दिया गया है। कच्चे तेल की कीमतें बहुत तेजी से नीचे गिर गई हैं। रूस में तो तेल की मांग बहुत ही घट गई है। सऊदी अरब को अपने नागरिकों के एक वर्ग को आयकर लगाने के लिए मजबूर होना पड़ा है। एक अन्य तेल उत्पादक देश वेनेजुएला का तो दिवाला ही निकल गया है। भारत के लिए तो यह छप्पर-फाड़ देव कृपा जैसी स्थिति थी। लेकिन इसके बावजूद भारतीय उपभोक्ता को पहले जैसी कीमतें ही अदा करनी पड़ रही हैं। जरा नीचे दी गई तालिका पर दृष्टिपात करें: (देखें तालिका)

यदि हम यह मान लें कि देश में खपत होने वाले पैट्रोल और डीजल की गुणवत्ता पहले जैसी ही है तो सरकारें टैक्स राजस्व के रूप में मई 2014 की तुलना में दोगुनी अधिक कमाई बटोर रही हैं। सबसे बड़ी अपराधी तो केन्द्र सरकार है जो पैट्रोल के प्रत्येक लीटर पर 21.48 रुपए की कमाई कर रही है जबकि मई 2014 में पैट्रोल कीमत में सरकार की हिस्सेदारी केवल 9.48 रुपए प्रति लीटर थी। इसी प्रकार डीजल के मामले में भी मई 2014 के  3.56 रुपए प्रति लीटर की तुलना में प्रति लीटर 17.33 रुपए सरकार की जेब में जा रहे हैं। वास्तव में गत 3 वर्षों दौरान पैट्रोलियम तेलों की खपत 17 प्रतिशत बढ़ गई है इसलिए ऊंची टैक्स दरों के चलते सरकार की कुल कमाई कहीं अधिक है। 

मुफ्त का माल 
इस प्रकार इकट्ठा किया जा रहा टैक्स एक प्रकार से मुफ्त का माल है। ऐसे माल की कमाई धीरे-धीरे एक आदत बन जाती है। यही कारण है कि मई 2014 से अब तक राजग सरकार ने पैट्रोल और डीजल पर राजस्व शुल्क में 11 बार वृद्धि की है। केवल इन दो उत्पादों के बूते ही केन्द्र सरकार ने 2016-17 में 3,27,550 करोड़ रुपए की कमाई की है। ब्रेंट क्रूड ऑयल की औसत कीमतें मई 2014 से अब तक 49 प्रतिशत नीचे गिरी हैं। यदि इस गिरावट को भी गणना में शामिल किया जाए तो पैट्रोलियम उत्पादों पर केन्द्रीय टैक्स की हिस्सेदारी उसी स्तर पर टिकी हुई है जहां पर मई 2014 में थी जबकि न्यायपूर्ण ढंग से पैट्रोल और डीजल की खुदरा कीमतों में क्रमश: 19 और 21 प्रतिशत की गिरावट आनी चाहिए थी। ऐसा नहीं हुआ है और फलस्वरूप इन दोनों उत्पादों की कीमतें या तो मई 2014 वाले स्तर पर बनी हुई हैं या उससे भी ऊपर चढ़ गई हैं। 

हम ऐसी स्थिति में इसलिए हैं क्योंकि हम पर एक लालची सरकार का शासन है जिसका ध्येय वाक्य यह है: ‘‘टैक्स लगाओ और मौज से खर्च करो।’’ इसे ‘सरकारी खर्च’ के लिए धन के स्रोत ढूंढने होते हैं क्योंकि आर्थिक वृद्धि का यही एक इंजन है जोकि अभी भी काम कर रहा है। इस संबंध में इंडियन एक्सपै्रस ने 17.9.2017 को काफी विस्तार से लिखा था। वर्तमान सरकार की आस्था है कि मध्य वर्ग और निम्न मध्य वर्ग के खपतकार जो खुद के वाहन रखते हैं उन्हें भारी-भरकम टैक्स अदा करने चाहिएं। नए पर्यटन मंत्री के अनुसार ‘‘ये लोग कोई भूखे नहीं मर रहे हैं।’’ यदि पैट्रोलियम उत्पादों की कीमतें वर्तमान आर्थिक परिदृश्य के अनुरूप घटा दी जाती हैं तो भी सरकार को अनेक ढंगों से लाभ ही होगा-यथा मिट्टी के तेल और एल.पी.जी. पर सबसिडी का खर्च कम हो जाएगा एवं रेलवे, सुरक्षा तथा अन्य विभागों के ईंधन खर्च की लागतें भी कम हो जाएंगी। 

उपभोक्ता विरोधी 
सरकार की लुटेरों जैसी टैक्स नीति के कारण कच्चे तेल की औसत कीमतों में गिरावट के बावजूद महंगाई टस से मस नहीं हो रही। परिवहन लागतें ऊंचे स्तर पर बनी हुई हैं और प्राइवेट खपत भी 2017-18 की प्रथम तिमाही में केवल 6.66 प्रतिशत ही बढ़ पाई है। इसके अलावा भारतीय उत्पादकों और सेवा प्रदाताओं की प्रतिस्पर्धात्मकता में भी विदेशी प्रतिद्वंद्वियों की तुलना में बहुत अधिक क्षरण हुआ है। केवल एक ही जिन्स पर अत्यधिक टैक्स लगाने की नीति समझदारी भरी नहीं है क्योंकि यदि कच्चे तेल की कीमतों में बहुत तेजी से वृद्धि होती है तो सरकार अपने राजस्व से हाथ धो बैठेगी या फिर लोगों पर एकदम बहुत अधिक बोझ लाद देगी। इस दृष्टिकोण से देखा जाए तो पैट्रोल और डीजल की खुदरा कीमतों को मई 2014 वाले स्तर पर बनाए रखना जहां उपभोक्ता विरोधी है वहीं प्रतिस्पर्धात्मकता तथा आर्थिक सिद्धांतों के लिए भी घातक है। 

जनता में आक्रोश फैलता जा रहा है। देश के कई भागों में रोष प्रदर्शन हुए हैं। सरकार टैक्सों में कमी की गुहार के प्रति बहरी बनी हुई है और कच्चे तेल की कीमतों में आई गिरावट का लाभ उपभोक्ता को देने को तैयार नहीं। जी.एस.टी. के परिपे्रक्ष्य में डा. मनमोहन सिंह ने कहा था कि यह ‘‘संगठित लूट और कानूनी डकैती है।’’ मेरे विचार में उनके ये शब्द ही राजग सरकार की पैट्रोल व डीजल पर टैक्स नीति की सम्पूर्ण व्याख्या करते हैं। 

तालिका                                                    मई 2014                            सितम्बर 2017
बै्रंट क्रूड की औसत कीमत                          109.68                                55.68
(अमरीकी डालर प्रति बैरल)
विनिमय दर                                              69.31                                 63.99
कच्चे तेल का प्रति लीटर औसत मूल्य           40.90                                 22.40
(भारतीय रुपए में )
दिल्ली में प्रति लीटर पैट्रोल की कीमत             71.41                                70.52
दिल्ली में प्रति लीटर डीजल की कीमत             56.71                               58.79
पैट्रोल कीमत में केन्द्र और राज्य सरकारों        21.41                                36.37
की प्रति लीटर टैक्स हिस्सेदारी (रुपए में)    
डीजल कीमत में केन्द्र और राज्य सरकारों        9.97                                  26.01
की प्रति लीटर टैक्स हिस्सेदारी (रुपए में)


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