समाज कल्याण के सूत्रधार ताऊ देवीलाल
punjabkesari.in Thursday, Apr 06, 2023 - 04:36 AM (IST)

6 अप्रैल 2023, जगत ताऊ देवीलाल समाज कल्याण योद्धा की 23वीं पुण्यतिथि है। इसी दिन वर्ष 2001 में इस महान धरती पुत्र की आत्मा पवित्र मातृभूमि में विलीन हो गई और समस्त जनमानस के ऊपर ‘ताऊवाद’ की गहरी अमिट छाप छोड़ गई। वर्ष 1977 से 1979, वर्ष 1987 से 1989 तथा 1990-91 में इस महान नेता के राज्य के मुख्यमंत्री व देश के उप प्रधान मंत्री शासन काल के दौरान बतौर हरियाणा पुलिस (गुप्तचर विभाग) के प्रमुख व वर्ष 2000-2001 में बतौर राज्य के पुलिस प्रमुख होने के नाते और उनसे नजदीकी संबंध होने से लेखक स्वयं को सौभाग्यशाली मानते हैं। चौ. देवीलाल एक महान त्यागी व तपस्वी व्यक्तित्व के धनी थे।
इसका जीता जागता उदाहरण यह है कि पूर्व प्रधानमंत्री स्व. श्री चंद्रशेखर जी ने भारतीय संसद के केन्द्रीय हाल में खड़े होकर सार्वजनिक तौर से ताऊ के नाम को प्रधानमंत्री पद के लिए प्रस्तावित किया था लेकिन जननायक चौ. देवीलाल ने तुरंत अपने स्थान पर खड़े होकर पूर्ण विनम्रता के साथ इस प्रस्ताव को उसी समय ठुकरा दिया और स्वयं प्रधानमंत्री पद के ताज को श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के सिर पर रख दिया। ऐसा उदाहरण भारतवर्ष के इतिहास में शायद ही देखने को मिलेगा।
जननायक चौ. देवीलाल भलीभांति जानते थे कि भारतवर्ष एक कृषि प्रधान देश है और ग्रामीण समाज अज्ञानता व बेरोजगारी से जूझ रहा है। उन्हें यह भी पता था कि किसानों, कामगारों, छोटे काश्तकारों एवं दुकानदारों, हरिजन व गरीब तबकेे के बच्चे न तो अच्छी शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं और न ही उनके लिए अच्छी शिक्षा के लिए स्वतंत्र भारत में कोई साधन जुटाए गए हैं। अत: इस क्षेत्र में वे अमीरों, धनाढ्य वर्ग एवं साधन सम्पन्न लोगों के बच्चों से काफी पीछे रह जाते हैं। लेकिन यदि उनका सरकारी नौकरियों में निष्पक्षता व योग्यता के आधार पर चयन किया जाए तो वे आगे आ सकते हैं। इसलिए उन्होंने अपने मुख्यमंत्री शासन काल में बेरोजगार युवक एवं युवतियों के परीक्षा व साक्षात्कार के लिए जाने हेतु नि:शुल्क बस यात्रा सुविधा प्रदान की थी।
चौ. साहब इस बात से परिचित थे कि ग्रामीण समाज के अधिकतर बच्चे गरीबी के कारण अधर में ही पढ़ाई छोड़ देते हैं और 25 से 30 प्रतिशत बच्चे ही केवल बड़ी मुश्किल से दसवीं या इससेे ऊपर की शिक्षा हासिल कर पाते हैं। उन्हें यह भी पता था कि ग्रामीण बच्चों में खेलकूद की प्रतिभा की कोई कमी नहीं है इसलिए उनके शासनकाल में लगभग 1050 स्कूल खोले गए जिनकी संख्या 1966-1977 व 1979-1987 में खोले गए स्कूलों के मुकाबले 25 प्रतिशत अधिक थी। इसी प्रकार उन्होंने खेल प्रशिक्षकों की पर्याप्त नियुक्तियां कीं और नए खेल स्टेडियमों की स्थापना की।
कृषि विकास में उनकी भरपूर रूचि न केवल जगजाहिर है बल्कि इस बात से भी स्पष्ट होती है कि वर्ष 1989 में वी.पी. सिंह ने ताऊ द्वारा प्रधानमंत्री पद का ताज पहनाने के बाद जब उनको (ताऊ जी) केंद्र सरकार में अपना दायित्व निभाने के लिए आमंत्रित किया तो लेखक को मुख्यमंत्री निवास पर उसी दिन उनसे मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। बातचीत के दौरान उन्होंने अपनी मंशा जाहिर की कि किसान-खेतिहर मजदूर के कल्याण के लिए तो इस देश के कृषि मंत्री पद की इच्छा रखता हूं और ऐसा ही हुआ। इसी प्रकार से सिंचाई के क्षेत्र में भी 17.2 फीसदी से भी अधिक सिंचित क्षेत्र की वृद्धि हुई और लगभग 120000 से अधिक नलकूप लगाए गए जिनकी संख्या 29 वर्ष के दूसरे शासनकालों की अवधि से 30 प्रतिशत अधिक है।
सहकारिता के क्षेत्र में भी जननायक चौ. देवीलाल का विशेष योगदान रहा। 29 वर्ष की कुल अवधि में 8 नई चीनी मिल लगाई गईं और इस अवधि के 6 वर्ष यानी कि चौ. देवीलाल के कार्यकाल में 2 नई चीनी मिल लगाई गईं जो कि कुल वृद्धि का 25 प्रतिशत है। इसके अलावा चौधरी साहब जन कल्याण योजनाओं को प्रशासन द्वारा व्यावहारिक तौर पर लागू करने की भी व्यक्तिगत रूप से पड़ताल करते थे। चौ. साहब के स्नेहपूर्ण व्यवहार से समाज के हर वर्ग का किसान-मजदूर विशेषकर बुजुर्ग तबका बहुत प्रभावित था।
एक बार बी.बी.सी. के संपादक/ प्रवक्ता सर मार्क टली ने कहा था कि मुझे गर्व है कि जन नायक चौ. देवीलाल मेरे मित्र थे। सर मार्क टली, बी.बी.सी. समाचार सेवा के 1970 व 80 के दशक में प्रतिनिधि रहे और एक वरिष्ठ पत्रकार से भेंटवार्ता में उन्होंने स्वयं कहा ‘‘यह स्पष्ट दिखाई देता था कि चौ. साहब बहुत से लोगों को व्यक्तिगत रूप से जानते थे और ‘ग्रास रूट’ कार्यकत्र्ताओं से हमेशा संबंध बनाए रखते थे। यकीनन, उनके व्यक्तित्व के इस पहलू से मैं बहुत प्रभावित था। किसानों का हित तो हमेशा ही उनके लिए सर्वोपरि रहा है।’’
सर मार्क टली के उपरोक्त कथन को स्पष्ट करता है तथा चौ. देवीलाल के व्यक्तित्व की गहराई को दर्शाता है: वे सदैव कहते थे-‘‘गरीब को न सताना वो रो देगा। सुनेगा उसकी परमात्मा जड़-मूल से खो देगा’’। इसीलिए उन्होंने अपनी 2000 एकड़ से अधिक भूमि मुजारों को दान करके समस्त राष्ट्र में एक मिसाल कायम की जिस कारण आज भी उनको ‘गरीबों के मसीहा’ के तौर पर याद किया जाता है।-डा. महेन्द्र सिंह मलिक,आई.पी.एस. (सेवानिवृत)