बुरे का साथ निभाते समय उचित ‘सावधानी’ बरतें

punjabkesari.in Wednesday, Sep 23, 2020 - 02:37 AM (IST)

‘बुरे का साथ निभाते समय आपको उचित सावधानी बरतनी होगी’ यह पुरानी कहावत मोदी के नेतृत्व वाली राजग सरकार को परेशान कर रही है क्योंकि वह तीन विवादास्पद कृषि सुधार विधेयकों के राजनीतिक परिणामों से जूझ रही है। इन विवादास्पद कृषि सुधार विधेयकों को लेकर भाजपा के सबसे पुराने सहयोगी शिरोमणि अकाली दल की मंत्री ने मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया है। 

भारत के अनाज के कटोरे पंजाब और हरियाणा के किसानों ने अपने आंदोलन को उग्र कर दिया है। वे राजमार्गों पर बाधा पैदा कर रहे हैं और किसान आत्महत्या कर रहे हैं। इससे विपक्ष को भाजपा सरकार को किसान विरोधी कहने का एक मौका मिला है तथा राजग में भी दरार देखने को मिल रही है। 

मोदी सरकार की समस्याएं बढ़ती जा रही हैं हालांकि प्रधानमंत्री ने कहा है कि यह एेतिहासिक कृषि सुधार किसानों को सुरक्षा कवच प्रदान करेगा और उन्हें बंधन से मुक्त करेगा। शिरोमणि अकाली दल की मंत्री के मंत्रिमंडल से त्यागपत्र से मोदी सरकार भौंचक्की रह गई। राजनीतिक दृष्टि से इससे मोदी सरकार को कोई परेशानी नहीं होगी किंतु यह बताता है कि भाजपा के अपने सहयोगियों की अगली पीढ़ी के नेतृत्व के साथ सहानुभूतिपूर्ण संबंध नहीं हैं और पंजाब में शिरोमणि अकाली दल का प्रभाव कम हो रहा है। 

भाजपा नेता निजी तौर पर कहते हैं कि जूनियर बादल ढीठ हैं और वे तत्काल परिणाम चाहते हैं और उन्हें अपने पिता, जो पांच बार पंजाब के मुख्यमंत्री रह चुके हैं, उनसे सबक लेना चाहिए। वे अपने शब्दों के पक्के थे और उन्होंने 1996 से भाजपा के साथ अपने गठबंधन को हर भले-बुरे वक्त में बनाए रखा। इस अविश्वास की शुरूआत हरियाणा, दिल्ली अैर राजस्थान में सिख समुदाय पर अकालियों को अवसर देने से भाजपा का इंकार करना है। सौ वर्ष पुरानी शिरोमणि अकाली दल के लोक सभा में केवल दो और राज्यसभा में तीन सदस्य हैं । 2017 के विधानसभा चुनावों में उसका सबसे खराब प्रदर्शन रहा जहां पर वह 15 सीट ही जीत पाई जबकि उसने 94 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए थे। 

भाजपा और शिरोमणि अकाली दल के संबंध तब खराब होने लगे जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने यह मत प्रकट किया कि सिख हिन्दू धर्म के अंग थे जिसके चलते अकाल तख्त के मुख्य जत्थेदार ने संघ पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने इसके प्रतिकार में मालवा क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाने पर ध्यान दिया जहां पर राज्य विधानसभा की 117 सीटों में से 69 सीटें हैं जिसके चलते दोनों सहयोगियों के बीच पारस्परिक विश्वास कम होता गया। भगवा संघ इस बात से बिल्कुल चिंतित नहीं है कि अकाली मंत्री के त्यागपत्र से विपक्ष को आगामी बिहार विधानसभा चुनावों में भाजपा के विरुद्ध शक्तियों को एकजुट करने का एक और औजार मिल जाएगा कि भाजपा का रवैया तानाशाहपूर्ण है, वह सहयोगी दलों का सम्मान नहीं करती है और मनमर्जी से कानून पास करवाकर राज्यों के अधिकार छीन रही है। 

यदि भाजपा पर दबाव डाला गया तो वह पंजाब में अकालियों के बिना भी चुनाव लड़ सकती है। पहले से इस बात की खबरें मिल रही हैं कि वह शिरोमणि अकाली दल से अलग हुए राज्यसभा सांसद ढींडसा के गुट के साथ मेलजोल बढ़ा रही है। ढींडसा को मोदी सरकार ने पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित भी किया। पंजाब में अगले 18 महीने में विधानसभा चुनाव होने हैं। मोदी मंत्रिमंडल से अकाली मंत्री का त्यागपत्र शिरोमणि अकाली दल के लिए राजनीतिक दृष्टि से आवश्यक था।

पार्टी को किसानों के पक्ष में खड़ा होना पड़ा क्योंकि वह किसानों को नाराज नहीं कर सकती क्योंकि पंजाब में किसान उसका प्रमुख वोट बैंक है। शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष बादल के अनुसार प्रत्येक अकाली किसान है और प्रत्येक किसान अकाली। केवल 15 प्रतिशत सीट प्राप्त कर शिरोमणि अकाली दल अपने मुख्य वोट बैंक से अलग-थलग नहीं हो सकता है क्योंकि यह पार्टी के लिए अस्तित्व का प्रश्न बन चुका है। 

वस्तुत: किसानों का आंदोलन अकालियों के लिए एक अच्छे अवसर के रूप में आया और उन्हें आशा की एक नई किरण दिखी। अकाली-भाजपा शासन के दौरान 2015 की घटना के कारण उनके विरुद्ध जनता का गुस्सा कम करने में भी मदद मिलेगी। इसके अलावा अकाली दल के केन्द्र में भाजपा के साथ गठबंधन में भी अड़चनें आने लगी थीं क्योंकि हाल के समय में अनेक मुद्दों पर अकाली दल और भगवा संघ के बीच मतभेद सामने आने लगेे थे। बिहार में राजग के सहयोगी जनता दल (यू) की तरह पंजाब में शिरोमणि अकाली दल ने नागरिकता संशोधन कानून के विरुद्ध प्रस्ताव को समर्थन दिया। 

इसके अलावा भाजपा के साथ मतभेद के चलते उसने दिल्ली विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा। अभी कुछ दिन पूर्व बादल जूनियर ने जम्मू-कश्मीर संघ राज्य क्षेत्र के नए भाषा विधेयक में पंजाबी को शामिल न करने पर आपत्ति व्यक्त की। यह अलग बात है कि एक माह पूर्व अकाली दल इन तीन विवादास्पद विधेयकों के संबंध में लाए गए अध्यादेशों का समर्थन कर रहा था। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के अध्ययन के अनुसार पंजाब में लगभग 12 लाख किसान परिवार हैं और राज्य में 28 हजार से अधिक पंजीकृत कमीशन एजैंट हैं। राज्य की अर्थव्यवस्था मुख्यतया केन्द्रीय खरीद एजैंसियों जैसे भारतीय खाद्य निगम द्वारा लगाई गई पूंजी पर निर्भर करती है और किसानों को आशंका है कि भारतीय खाद्य निगम अब राज्य की मंडियों में खरीद नहीं कर पाएगी और इससे कमीशन एजैंट, आढ़तियों का 2$5 प्रतिशत कमीशन भी मारा जाएगा। 

आलोचकों का मानना है कि इन विधेयकों के माध्यम से किसानों को खुले बाजार में अपने उत्पाद बेचने की अनुमति दी गई है जिससे देश की सार्वजनिक खरीद प्रणाली समाप्त होगी और निजी कंपनियों द्वारा किसानों का शोषण किया जाएगा और इससे किसान, जो मुख्य रूप से जाट हैं और कमीशन एजैंट, जो मुख्यतया शहरी हिन्दू हैं तथा भूमिहीन श्रमिक प्रभावित होंगे और भुगतान की अनिश्चितता बनी रहेगी। विपक्ष सरकार को घेरना चाहती है किंतु आशा की जाती है कि कृषि सुधार से भारत विश्व का अनाज का कटोरा बनेगा और लाइसैंस राज तथा भ्रष्टाचार को समाप्त करेगा।-पूनम आई. कौशिश


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