एस.वाई.एल. के मुद्दे पर केन्द्र चुप क्यों

Saturday, Mar 19, 2016 - 01:22 AM (IST)

(निरुपमा सुब्रामण्यन): आप लोग शायद इस बात पर गौर करने में व्यस्त होंगे कि इन दिनों पंजाब तथा हरियाणा में क्या घटनाक्रम चल रहा है? 

 
शिरोमणि अकाली दल (शिअद) इस बात को लेकर खुश है कि एस.वाई.एल. नहर के लिए लोगों से अधिगृहीत की गई जमीन उनके मालिकों को अथवा उनके उत्तराधिकारियों को लौटाने के लिए पंजाब सतलुज-यमुना लिंक कैनाल भूमि (सम्पत्ति अधिकार हस्तांतरण) विधेयक 2016 पारित करके उसने कांग्रेस से राजनीतिक मुद्दा छीन लिया है। कांग्रेस ने इस पर लाल-पीली होते हुए दावा किया है कि पंजाब विधानसभा में 2004 के समझौते के खारिज होते ही नहर में मिट्टी की पहली मुठ्ठी उसी ने डाली। 
 
सतलुज-यमुना लिंक कैनाल का उद्देश्य रावी तथा ब्यास के पानियों का हरियाणा का हिस्सा उसे देना था। पंजाब का कहना है कि उसके पास किसी अन्य राज्य को देने के लिए पानी की एक बूंद भी नहीं है। पंजाब में शिअद तथा कांग्रेस और बाद में आम आदमी पार्टी के बीच हरियाणा को पानी न देने के मामले में प्रतिस्पर्धी राजनीति राष्ट्र निर्माण की भावना के विरुद्ध है। यदि भारत पाकिस्तान के साथ पानी सांझा कर सकता है तो हरियाणा के साथ क्यों नहीं? 
 
सुप्रीम कोर्ट ने एस.वाई.एल. नहर पर पंजाब के स्टैंड को लेकर 2004 में टिप्पणी की थी कि संविधान की धारा 131 के अन्तर्गत अदालत द्वारा दिए गए आदेश का पालन न करना अवमानना का मामला है, बल्कि यह संविधान की मूलभूत भावना के भी विरुद्ध है। 
 
अदालत ने कर्नाटक सरकार द्वारा एक संवैधानिक पीठ के कावेरी जल विवाद संबंधी आदेश पर अमल न करने पर टिप्पणी करते हुए भी कहा था कि इस तरह की कार्रवाई से अराजकता पैदा होगी। यदि सरकार के इस तरह के अधिनियम को जारी करने की शक्ति को बरकरार रखा जाता है तो इससे संवैधानिक मशीनरी विफल हो जाएगी और देश की एकता तथा अखंडता पर इसका प्रभाव पड़ेगा। 
 
मगर आप उन लोगों को नहीं देख पाएंगे जिन्होंने सारे देश को यह झटका दिया है। इसका कोई वीडियो भी नहीं बनाया गया। सब कुछ पंजाब विधानसभा के रिकाड्र्स में है। ‘‘न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी’’ ये ठीक वही शब्द हैं जो मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने मालिकों को उनकी भूमि लौटाने के लिए विधेयक पेश करते हुए कहे थे। 
 
2002 में सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दिया था कि 700 करोड़ रुपए, जिनमें से अधिकांश केन्द्र ने दिए थे, पहले ही नहर के निर्माण पर खर्च किए जा चुके हैं और देश के खजाने से निकाली गई इतनी बड़ी राशि को बेकार नहीं होने दिया जा सकता। मगर विधेयक पर राज्यपाल की स्वीकृति की प्रतीक्षा किए बिना अकाली दल तथा कांग्रेस के राजनीतिज्ञ पंजाब में नहर के दोनों तरफ जुट गए और नहर को भरना शुरू कर दिया। काम पर लगे अर्थमूवर्स ने नहर में मिट्टी डालने के लिए उसके किनारों पर लगे सैंकड़ों पेड़ों को उखाड़ दिया जिसमें कभी भी एक बूंद पानी बहते नहीं देखा गया। 
 
इस तरह की कार्रवाइयां देश के लिए सम्मानित नहीं कही जा सकतीं। एस.वाई.एल. पर पंजाब का डावांडोल रवैया अन्तर्राज्यीय संबंधों के लिए एक बड़ा परीक्षण है और इसकी गूंज देश के अन्य राज्यों में भी अवश्य सुनाई देगी, जहां पड़ोसियों के साथ इसी तरह के झगड़े हैं। मगर जो लोग राष्ट्रवाद को लेकर चिल्लाते हैं और भारत के सर्वोच्च पदों पर बैठे हैं, वे अब चुप हैं। 
 
यह उनकी प्रवृत्ति नहीं है कि राष्ट्रवाद की बात करो और लोगों को एकजुट करो। सबसे आसान तथा अधिक लाभकारी राष्ट्रवाद वह है जो लोगों को एक-दूसरे से अलग कर दे। पंजाब में चुनाव होने वाले हैं। सब कुछ योजनाबद्ध तरीके से चल रहा है। अन्यथा कड़ा रवैया अपनाने वाला तथा माफ न करने वाला गृह मंत्रालय इतना समझौतापूर्ण दिखाई दे रहा है कि शिअद की सेहत ठीक रखने के लिए कभी-कभार एक-दो खालिस्तान समर्थक आतंकवादियों को छोडऩे में भी राजी दिखाई देता है। 
 
एस.वाई.एल. नहर को लेकर शिरोमणि अकाली दल के मास्टरस्ट्रोक पर पंजाब में भाजपा इतनी खुश है कि हरियाणा की ओर से मदद के लिए चीत्कारों की भी उपेक्षा कर रही है जहां पार्टी की सरकार है। कोई हैरानी की बात नहीं है कि मनोहर लाल खट्टर सरकार की ओर से किए जाने वाले प्रदर्शनों को चुप करा दिया गया है। पंजाब में भाजपा के एक नेता का कहना था, ‘‘वहां के लोगों की आवाज उठाना उनका काम है, पंजाब के लोगों की आवाज उठाना हमाराकाम है।’’ केन्द्र की तरफ से राजग समॢथत पंजाब में इस मुद्दे को लेकर अभी तक कोई प्रयास नहीं किया गया है। 
 
जनवरी 2002 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह इस अदालत के लिए बड़ी चिन्ता का विषय है कि केन्द्र सरकार इस मामले में उदासीन रवैया अपनाए हुए है और केवल समय बिता रही है, जबकि पंजाब को नहर के रख-रखाव के लिए धनराशि देना जारी रखे हुए है जो पहले ही खोदी जा चुकी है। अदालत ने कहा था कि यदि पंजाब नहर पर कार्य करने और एक वर्ष में इसे चालू करने में असफल रहता है तो यह केन्द्र की जिम्मेदारी बन जाती है कि वह इस मामले में दखल दे और अपनी खुद की एजैंसियों के द्वारा इसका निर्माण जितनी जल्दी हो सके, पूरा करे। 
 
मगर केन्द्र इस तरह से व्यवहार कर रहा है, जैसे इस विवाद का उससे कोई लेना-देना नहीं है। मंत्री स्मृति ईरानी, यह कोई कालेज कैम्पस तथा विश्वविद्यालय नहीं है केवल जिन्हें तिरंगे की जरूरत है। इससे पहले कि एस.वाई.एल. नहर को जल्दबाजी में पूरी तरह से भरकर हमेशा के लिए  दफन कर दिया जाए, इसे भी इसकी उतनी ही जरूरत है।   
 
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