कृषि क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने वाले थे स्वामीनाथन

punjabkesari.in Saturday, Oct 07, 2023 - 05:23 AM (IST)

एम.एस. स्वामीनाथन अब हमारे बीच नहीं हैं। हमारे देश ने एक ऐसे दूरदर्शी एवं महान व्यक्ति को खोया है, जिन्होंने भारत के कृषि क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन किए। उनका भारत के लिए योगदान हमेशा स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाएगा। प्रोफैसर एम.एस. स्वामीनाथन भारत से प्रेम करते थे और चाहते थे कि हमारा देश और विशेषकर हमारे किसान समृद्ध हों। वह अकादमिक रूप से प्रतिभाशाली थे और किसी भी करियर का विकल्प चुन सकते थे, लेकिन 1943 के बंगाल के अकाल से वह इतने द्रवित हुए कि उन्होंने तय कर लिया कि अगर कोई एक चीज, जिसे वह करना चाहेंगे, तो वो है कृषि क्षेत्र का कायाकल्प। बहुत छोटी उम्र में वह डा. नॉर्मन बोरलॉग के संपर्क में आए और उनके काम को गहराई से समझा।

1950 के दशक में, अमरीका ने उन्हें एक फैकल्टी के तौर पर जुडऩे का आग्रह किया, लेकिन उन्होंने इसे अस्वीकार कर दिया, क्योंकि वह भारत में रहकर देश के लिए काम करना चाहते थे। आज हम सभी को दशकों पहले की उन चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों के बारे में विचार करना चाहिए, जिनका प्रो. स्वामीनाथन ने डटकर सामना किया और हमारे देश को आत्मनिर्भरता और आत्मविश्वास के मार्ग पर आगे ले गए। आजादी के बाद पहले दो दशकों में हम कई चुनौतियों का सामना कर रहे थे और उनमें से एक थी-खाद्यान्न की कमी। 1960 के दशक की शुरूआत में भारत अकाल से जूझ रहा था। इसी दौरान, प्रोफैसर स्वामीनाथन की दृढ़ प्रतिबद्धता और दूरदॢशता ने कृषि सैक्टर के एक नए युग की शुरूआत की।

कृषि और गेहूं प्रजनन जैसे विशिष्ट क्षेत्रों में उनके अग्रणी कार्यों से गेहूं उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। ऐसे प्रयासों का ही परिणाम था कि भारत खाद्यान्न की कमी वाले देश से खाद्यान्न में आत्मनिर्भर वाले राष्ट्र के रूप में परिवर्तित हो गया। इस शानदार उपलब्धि की वजह से उन्हें ‘भारतीय हरित क्रांति के जनक’ की उपाधि मिली, जो बिल्कुल सही भी है। हरित क्रांति में भारत की ‘Can do’ की भावना झलकती है, यानी कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं होता। अगर हमारे सामने करोड़ों चुनौतियां हैं, तो उन चुनौतियों पर विजय प्राप्त करने के लिए इनोवेशन की लौ जलाने वाले करोड़ों प्रतिभाशाली लोग भी हैं। हरित क्रांति शुरू होने के 5 दशक बाद, भारतीय कृषि पहले से अधिक आधुनिक और प्रगतिशील हो गई है। लेकिन प्रोफैसर स्वामीनाथन द्वारा रखी गई नींव को कभी भुलाया नहीं जा सकता।

प्रो. स्वामीनाथन के साथ मेरी व्यक्तिगत बातचीत का दायरा बहुत व्यापक था। इसकी शुरूआत 2001 में मेरे गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में कार्यभार संभालने के बाद हुई। उन दिनों, गुजरात आज की तरह अपने कृषि सामथ्र्य के लिए नहीं जाना जाता था। हर कुछ साल पर पडऩे वाले सूखे, तबाही लाने वाले चक्रवात और भूकंप ने राज्य की विकास यात्रा को बुरी तरह प्रभावित किया था। उसी दौर में हमने सॉइल हैल्थ कार्ड की पहल की थी। हमारी कोशिश थी कि हमारे किसानों को मिट्टी को बेहतर ढंग से समझने और समस्या आने पर उसका समाधान करने में मदद मिले।इसी योजना के सिलसिले में मेरी मुलाकात प्रोफैसर स्वामीनाथन से हुई।

उन्होंने इस योजना की सराहना की और इसके लिए अपने बहुमूल्य सुझाव भी सांझा किए। मेरे मुख्यमंत्री रहने के दौरान और उसके बाद जब मैंने प्रधानमंत्री का पद संभाला, तब भी हमारी बातचीत चलती रही। मैं उनसे 2016 में इंटरनैशनल एग्रो-बायोडायवॢसटी कांग्रेस में मिला और अगले वर्ष 2017 में मैंने उनके द्वारा लिखित दो-भाग वाली पुस्तक शृंखला लांच की।‘कुरल’ ग्रंथ के मुताबिक किसान वो धुरी हैं, जिसके चारों तरफ पूरी दुनिया घूमती है। ये किसान ही हैं, जो सब का भरण-पोषण करते हैं।

प्रो. स्वामीनाथन इस सिद्धांत को अच्छी तरह समझते थे। बहुत से लोग उन्हें ‘कृषि वैज्ञानिक’ कहते हैं, यानी कृषि के एक वैज्ञानिक, लेकिन मेरा हमेशा से ये मानना रहा है कि उनके व्यक्तित्व का विस्तार इससे कहीं ज्यादा था। वह एक सच्चे ‘किसान वैज्ञानिक’ थे, यानी किसानों के वैज्ञानिक। उनके दिल में एक किसान बसता था। उनके कार्यों की सफलता उनकी अकादमिक उत्कृष्टता तक ही सीमित नहीं है; ये लैब के बाहर, खेतों और मैदानों में स्पष्ट रूप से दिखती है। उन्होंने ह्यूमन एडवांसमैंट और ईकोलॉजिकल सस्टेनेबिलिटी के बीच संतुलन पर जोर देते हुए हमेशा सस्टेनेबल एग्रीकल्चर की वकालत की।

यहां मैं विशेष तौर पर यह भी कहूंगा कि प्रो. स्वामीनाथन ने खासकर छोटे किसानों के जीवन को बेहतर बनाने और उन तक इनोवेशन का लाभ पहुंचाने पर बहुत जोर दिया। वह विशेष रूप से महिला किसानों के जीवन को बेहतर बनाने के प्रति समॢपत थे। प्रोफैसर एम.एस. स्वामीनाथन के व्यक्तित्व का एक और पहलू भी है, जो बेहद उल्लेखनीय है। वह इनोवेशन और मैंटोरशिप को बहुत बढ़ावा देते थे। प्रोफैसर स्वामीनाथन एक संस्थान निर्माता भी थे। उन्हें कई ऐसे केन्द्रों की स्थापना का श्रेय जाता है जहां आज वाइब्रेंट रिसर्च हो रही है। मैं प्रो. स्वामीनाथन को श्रद्धांजलि देने के लिए फिर से ‘कुरल’ ग्रंथ को उद्धृत करूंगा। उसमें लिखा है, ‘‘यदि योजना बनाने वालों में दृढ़ता हो, तो वे वही परिणाम हासिल करेंगे, जो वे चाहते हैं।’’- नरेन्द्र मोदी, प्रधानमंत्री


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