कृषि क्रांति में स्वामीनाथन का योगदान

punjabkesari.in Saturday, Sep 30, 2023 - 04:57 AM (IST)

जीवन में कुछ पल ऐसे होते हैं जो हमेशा के लिए यादगार बन जाते हैं। यह किसी व्यक्ति से मुलाकात हो सकती है, गंभीर विषय पर चर्चा हो सकती है, नए दृष्टिकोण का सूत्रपात हो सकता है या फिर समस्या का समाधान हो सकता है और अनेक प्रश्नों का उत्तर भी हो सकता है। 

यादों के झरोखे से : दूरदर्शन से कुछ वर्ष पहले मेघालय और नागालैंड में हो रहे वन विनाश और वन संरक्षण पर 4 एपिसोड की सीरीज बनाने का आदेश मिला तो उसके लिए रिसर्च शुरू की। मेरे मित्र शरद दत्त ने इसके लिए भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान में कार्यरत श्री और अब स्व. आर.डी. शर्मा का नाम सुझाया। वह इसके लिए सहर्ष राजी हो गए क्योंकि इस विषय में उनकी रुचि थी और उन्होंने इसका गहन अध्ययन किया था। वह विस्तार से बातचीत करने के लिए डाक्टर एम.एस. स्वामीनाथन से समय तय कर उनके पास ले गए। मेरे लिए यह बहुत महत्वपूर्ण क्षण था। 

स्वामीनाथन जी तब 80 वर्ष की आयु के आसपास रहे होंगे। उनसे मिलने का उत्साह तो था ही  लेकिन जब उन्हें देखा तो वे युवा जैसे लग रहे थे। एकदम शांत प्रकृति, अद्भुत ऊर्जा, सौम्य व्यक्तित्व और चेहरे पर दूसरे को मोहित कर देने वाली मुस्कान। पहली भेंट और ऐसा अनुभव कि मानो जानते पहले से थे पर मिले अब हैं। विषय पर चर्चा हुई और उन्होंने इस सीरीज के लिए परामर्शदाता बनना स्वीकार कर लिया। उसके बाद उन्होंने पूरे विस्तार से समझाना शुरू किया कि असली समस्या क्या है? इन राज्यों में जंगल क्यों नष्ट हो रहे हैं और यह जानते हुए भी कि इससे कभी पूरा न होने वाला नुक्सान हो रहा है, इन क्षेत्रों के निवासी इसके लिए विवश क्यों हैं ? 

कहने लगे कि इस समस्या से निपटने के लिए उन्होंने सरकार को एक फुलप्रूफ योजना दी है लेकिन उसे बिना स्थानीय आबादी के सहयोग के पूरा नहीं किया जा सकता। परंपरा यह थी कि सदियों से खेती के लिए जंगल काटकर मैदान तैयार करने का काम होता था। इसके लिए आग लगाई जाती थी और इस तरह जमीन को समतल कर खेती की जाती थी। पहले जंगल काटने की जरूरत 40-50 साल बाद पड़ती थी और तब तक वे फिर से पनप जाते थे। जनसंख्या बढऩे  से खेतीबाड़ी पर असर पड़ा और वन विनाश की अवधि 2-3 साल की हो गई। परिणाम यह हुआ कि जमीन बंजर, कम उपज देने वालीहोती गई और किसान के लिए खेती करना नुक्सानदायक होने लगा। 

अधिकतर आबादी आदिवासी होने और दूर-दराज बसी होने से उन तक सरकारी योजनाओं और खेती के नए तरीकों की जानकारी पहुंचा तथा उन्हें समझाना बहुत कठिन काम था। स्वामीनाथन जी ने इसके लिए जो योजना बनाई थी उसमें अधिक उपज देने वाले बीजों, रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल, जैविक और सीढ़ीदार खेती करना और इन क्षेत्रों की महिलाओं का खेती करने में अपना योगदान देना प्रमुख था। मेरी सीरीज के सफल निर्माण में उनकी सलाह और मार्गदर्शन का बहुत बड़ा योगदान रहा और जब यह सीरीज उन्होंने देखी तो बहुत प्रसन्न हुए। दूरदर्शन पर इसका प्रसारण बहुत सराहा गया और फिल्में काफी चॢचत हुईं। यह फिल्में मेरे यू-टयूब चैनल बीकेपी मीडिया विजन पर देखी जा सकती हैं। 

कृषि क्रांति के जन्मदाता : डा. स्वामीनाथन का सबसे बड़ा योगदान देश में हरित क्रांति का सूत्रपात करना था। उनसे इसके बारे में चर्चा हुई और यह सुनकर अचंभा-सा हुआ कि देश को भुखमरी की समस्या से निकालने में उनकी कितनी बड़ी और महत्वपूर्ण भूमिका थी। देश पर अनाज की कमी का संकट था। तब प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के आह्वान पर नागरिक उपवास भी कर रहे थे। ऐसे में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित डा. बोरलॉग के साथ मिलकर डा. स्वामीनाथन ने खेतीबाड़ी में जो आमूल-चूल परिवर्तन किया, उससे देश न केवल आत्मनिर्भर हुआ बल्कि इतना अधिक उत्पादन होने लगा कि हम निर्यात भी करने लगे। 

उन्होंने नए बीजों और रासायनिक उर्वरकों के इस्तेमाल से किसान को खुशहाल बना दिया। पंजाब में तो इन तकनीकों के इस्तेमाल से जो संपन्नता की लहर चली वह आज तक कायम है। पंजाब और आसपास के राज्य इससे बहुत लाभान्वित हुए। कहने लगे कि यह उस समय की आवश्यकता थी लेकिन आज वे आर्गेनिक खेती को प्राथमिकता देते हैं। इसके लिए उनके द्वारा स्थापित फाऊंडेशन बहुत प्रशंसनीय कार्य कर रही है। उनकी पुत्री सौम्या इसके माध्यम से उनके सपनों को पूरा कर रही हैं। 

आज वे हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उन्होंने जो विरासत छोड़ी है वह अनंतकाल तक जीवित रहेगी। इसका एक उदाहरण यह है कि एम.एस.पी. को लेकर स्वामीनाथन रिपोर्ट का ही हवाला दिया जाता है। उनका बनाया फार्मूला पूरे रूप में अपनाया जाए तो कृषि संबंधित बहुत -सी समस्याओं का हल तुरंत हो सकता है। वह महिलाओं को खेतीबाड़ी करने और आवश्यक संसाधन जुटाने का प्रशिक्षण देने में हमेशा प्रयासरत रहे। उनके बनाए अनेक महिला स्व सहायता समूह इसका प्रमाण हैं। उन्होंने स्त्रियों को घर संभालने के साथ-साथ खेतीबाड़ी की बारीकियां समझाने के लिए प्रशिक्षण शालाएं स्थापित कीं। डा. एम.एस. स्वामीनाथन का निधन अपूरणीय क्षति है लेकिन उन्होंने जिन सपनों को संजोया उन्हें पूरा करने के प्रति प्रयत्न करते रहना उन्हें वास्तविक श्रद्धांजलि होगी। उनकी स्मृति को शत-शत नमन।-पूरन चंद सरीन


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