कोरोना वायरस को लेकर चीन पर शक गहराता जा रहा

Wednesday, Jun 16, 2021 - 03:20 AM (IST)

पहले दुनिया दबी जुबान में चीन पर भयानक महामारी कोरोना वायरस फैलाने का आरोप लगा रही थी लेकिन अब पूरी दुनिया यह बात खुलकर कहने लगी है कि यह महामारी चीन ने ही फैलाई है। इस बात ने तब और ज्यादा जोर पकड़ा जब अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने यह कहा कि उन्हें 90 दिनों में पूरी रिपोर्ट चाहिए। दरअसल चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी के एक वैज्ञानिक के बारे में रिपोर्ट निकल कर सामने आ रही है कि उसने कोरोना वैक्सीन का पेटेंट रजिस्ट्रेशन कराने के लिए 24 फरवरी 2020 को एप्लीकेशन फाइल की थी। 

इस मिलिट्री वैज्ञानिक का नाम त्सोऊ यूसेन था, लेकिन सेना के इस वैज्ञानिक  की मई महीने में मौत हो गई, जैसा कि हम सभी जानते हैं कि चीन का राज जब दुनिया के सामने फाश होने लगता है तो वह उस व्यक्ति को गायब कर देता है जिससे वह पूरा मामला दब जाए। वैसे चीन अपने किसी भी ऊंचे ओहदेदार की मौत पर सरकारी तौर-तरीके से श्रद्धांजलि देता है और उस खबर को अपने मीडिया में जगह देता है लेकिन यहां पर त्सोऊ यूसेन की मौत पर चीन ने कोई श्रद्धांजलि सभा, सरकारी स मान जैसा कोई भी कार्यक्रम नहीं रखा, चीन के कुछ मीडिया, अखबारों में सिर्फ एक छोटी-सी खबर छपी कि उस वैज्ञानिक की मौत हो गई। 

चीन आज भी अपने राज छुपाने के लिए वही सारे तरीके अपनाता रहा है जैसा कि शीत युद्ध के दौरान अमरीका और रूस अपनाते थे। त्सोऊ यूसेन के बारे में बताया जाता है कि इनका संबंध वुहान लैबोरेटरी से भी था और चीन में ‘बैट लेडी’ के साथ भी इनका समीकरण अच्छा है। (वुहान इंस्टीच्यूट ऑफ वायरोलॉजी में काम करने वाली वायरोलॉजिस्ट जिसका नाम शी त्सांगली है के बारे में कहा जाता है कि उसने चमगादड़ों पर शोध कर उनसे कोरोना वायरस को वुहान लैब में विकसित किया था।) अभी हाल ही में चीन ने उसे स मानित भी किया है। 

चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइ स में छपी खबर के अनुसार बैट लेडी को चीन सरकार ने चाइना एकैडमी ऑफ साइंसेज की एडवांस्ड वर्कर का स मान दिया है। शी त्सांगली के साथ चाइना एकैडमी ऑफ साइंसेज के बीस अन्य वैज्ञानिकों को भी वर्ष 2021 में बीजिंग में हुए एक वाॢषक स मेलन में स मानित किया गया।
इस बात से चीन का खेल आसानी से समझा जा सकता है कि चीन पैसे कमाने के लिए नीचता की किस हद तक गिर सकता है, पहले वायरस भेजकर दुनिया भर में तबाही मचाई और फिर उस वायरस का एंटीडोट या वैक्सीन बनाकर पहले पेटेंट करवाना और फिर उस वैक्सीन को दुनिया भर के बाजारों में बेचकर मोटी कमाई करना। 

इस पूरे घटनाक्रम में चौंकाने वाली बात यह है कि पैसे कमाने के लिए चीन ने दुनिया भर में करोड़ों अरबों लोगों की जान-माल के साथ खेलना तक शुरू कर दिया है। पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्र प ने कहा था कि कोरोना वायरस की वुहान लैब वुहान इंस्टीच्यूट ऑफ वायरोलॉजी से निकला है जिसने पूरी दुनिया में तबाही मचाई और कई लोगों को मौत की नींद सुला दिया। इस लैब में चीन द्वारा अलग-अलग पैथोजेन जिसमें बैक्टीरिया, वायरस और फंगस की जांच की जाती है जो इंसानों को संक्रमित कर सकते हैं। 

द ऑस्ट्रेलियन अखबार में एक खबर छपी है कि चीन के वायरस वाले खेल में अमरीकी हाथ की बात भी सामने आ रही है। इस अखबार के अनुसार चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी के वैज्ञानिकों को पैसे चीन के साथ-साथ अमरीका से भी दिए गए थे और इसमें डाक्टर फाउची का नाम शामिल है। अमरीका के नैशनल इंस्टीच्यूट ऑफ हैल्थ से चीनी सेना के वैज्ञानिक को पैसे दिए गए थे। 

किसी भी वैक्सीन को बनाने में 8 से 10 साल का समय लगता है लेकिन इस महामारी को देखते हुए पूरे विश्व के वैज्ञानिक बनाने में जुट गए जिससे वैक्सीन साल भर के अंदर बाजार में आ गई लेकिन चीन पर शक इसलिए गहराता जा रहा है क्योंकि बीमारी के महामारी घोषित होने से पहले ही उसने अपनी वैक्सीन को पेटेंट के लिए आवेदन भेजा था, यानी इस वायरस और इससे जुड़ी वैक्सीन पर ल बे समय से काम चल रहा था। 

कोरोना वायरस को लेकर वॉल स्ट्रीट जर्नल में एक रिपोर्ट छपी थी जिसमें इस वायरस के वुहान लैब से निकलने की संभावना की बात पर जोर दिया है, डोनाल्ड ट्र प की सरकार के दौरान विदेश मंत्रालय ने इसकी जांच करने के लिए अमरीका ने कोरोना वायरस को कैलीफोर्निया की लारैंस लिवरमोर नैशनल लैबोरेटरी में परीक्षण के लिए भेजा, इसके जिनोमिक एनालिसिस के बारे में लैबोरेटरी ने बताया है कि ज्यादा संभावना इस बात की है कि वुहान लैब से ही यह वायरस निकला है।

डोनाल्ड ट्रंप ने इस महामारी को लेकर चीन पर 10 खरब डालर का जुर्माना भी लगाया था। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि 90 दिनों के बाद अमरीकी खुफिया विभाग बाइडेन को कैसी रिपोर्ट सौंपता है और उस रिपोर्ट पर आगे क्या कार्रवाई होती है।

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