सर्जिकल स्ट्राइक : मोदी सरकार ने दशकों पुरानी ‘गहरी नींद’ से भारत को जगाया

Wednesday, Feb 19, 2020 - 03:15 AM (IST)

राष्ट्र मौन, स्तब्ध और अवाक् रहा। कुछ भयानक हुआ था, जिसने हर भारतीय को झकझोर कर रख दिया था। पुलवामा में 40 सी.आर.पी.एफ. कर्मियों की एक बटालियन पर हमला करने का घृणित कार्य वास्तव में मानव जाति के इतिहास में राज्य प्रायोजित आतंकवाद का सबसे निंदनीय उदाहरण है। पुलवामा एक ऐसी नृशंस साजिश थी जो देश विरोधी तत्वों द्वारा तैयार की गई थी और 1989 में आतंकवाद शुरू होने के बाद से यह कश्मीर में भारतीय राज्य पर होने वाले सबसे घातक, भयावह आतंकवादी हमलों में से एक है। 

हालांकि, यह वह दिन भी था जब प्रत्येक भारतीय ने अपने जवानों के बलिदान का सबसे करारा जवाब देने का संकल्प लिया। यह भारतीय विश्वास के पुनरुत्थान का बिन्दू बना, जो दशकों से अपमान को सहता आया था। स्वतंत्रता के बाद से ही भारत अपने आकार, स्थिति और क्षमताओं को लेकर आश्वस्त नहीं रहा था। भारत सरकार अक्सर तथाकथित ‘अंतर्राष्ट्रीय दबाव’ का शिकार हो जाया करती थी। 1962 के भारत-चीन युद्ध के साथ ही भारत का रवैया रक्षात्मक और कमजोर रहा था। 

आत्मविश्वास की कमी और भारत की हल्की-फुल्की छवि 1972 के शिमला समझौते के दौरान अपने चरम पर पहुंच गई। हमारी बहादुर सेना ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी  को एक निर्णायक जीत सौंपी थी, जिसमें 93,000 पाकिस्तानी कैदियों के आत्मसमर्पण के साथ ही भारत पाकिस्तान की जमीन पर काफी अंदर तक घुस गया था। अपने दुश्मन के खिलाफ इतनी निर्णायक जीत के साथ ‘एक मजबूत भारत’ कश्मीर और अन्य मुद्दे को हमेशा के लिए सुलझा सकता था। लेकिन भारत ने ‘अंतर्राष्ट्रीय दबाव’ के आगे घुटने टेक दिए और ऐतिहासिक गलतियों को सुधारने का सुनहरा मौका अपने हाथ से गंवा दिया। 

दशकों की हमारी लापरवाही और हिचकिचाहट को वाजपेयी सरकार के दौरान पोखरण परीक्षणों के माध्यम से इसे कुछ हद तक सही किया गया। हालांकि, यू.पी.ए. सरकार के सत्ता में आने के बाद यह फिर से स्थिति पहले जैसी हो गई। 1972 के बाद सबसे बुरा क्षण 2009 में आया, जब कांग्रेस के तत्कालीन प्रधानमंत्री ने मिस्र में शर्म-अल-शेख में पाकिस्तान के सामने भारत की सामरिक शक्ति को कम कर दिया। तत्कालीन प्रधानमंत्री ने अप्रत्यक्ष रूप से बलूचिस्तान में भारत की भूमिका को लेकर पाकिस्तान द्वारा लगाए गए एक कथित आरोप के साथ अपनी सहमति जताई। 

बालाकोट हमले ने भारत का ही नहीं, विश्व का भी नजरिया बदला
इस तरह के संशय और भ्रमित माहौल के बीच, नरेंद्र मोदी सरकार ने दशकों पुरानी गहरी नींद से भारत को जगाया। सरकार ने पाकिस्तान में काफी अंदर तक घुसकर बालाकोट व उड़ी में आतंकी शिविरों पर मिसाइल व जमीनी हमला किया, जो हमारे शहीदों को एक राष्ट्रीय सलामी थी। इसने न केवल भारतीयों के नजरिए को बदला, बल्कि विश्व का नजरिया भी भारत के प्रति बदलना शुरू हो गया। बालाकोट हमले ने भारत के नए संकल्प और आतंकवाद के खिलाफ एक नए नजरिए का एक नया अध्याय शुरू किया। अभी तक राष्ट्रीय सुरक्षा पर भारत का मुखर दृष्टिकोण, भारतीय क्षेत्र के अंदर कई आतंकवाद-रोधी अभियानों तक सीमित था और सीमा पार से राज्य द्वारा प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ भारतीय राज्य की एक रक्षात्मक मुद्रा ही रही थी। लेकिन बालाकोट के माध्यम से, भारत संकोच और अवरोधों के दायरे से बाहर निकलकर सामने आया। भारत ने न केवल हमारे वीर योद्धाओं के खून का बदला लिया, बल्कि हमारे पड़ोसी के सामने भी यह ऐलान कर दिया कि अगर राज्य प्रायोजित आतंकवाद जारी रहता है तो अब भारत अपने संप्रभु क्षेत्र के भीतर किसी हमले को बर्दाश्त नहीं करेगा। 

एक समान रिश्तों का नया अध्याय भी 
विशेषज्ञों का कहना है कि 26 फरवरी 2019 के बाद पड़ोसी देश के अंदर जाकर या अपने क्षेत्र में काऊंटर टैरेरिज्म ऑप्रेशन से संबंधित भारतीय दृष्टिकोण में एक बड़ा रणनीतिक बदलाव महसूस किया जा सकता है। यह न्यू इंडिया की शुरूआत है और वैश्विक शक्तियों के साथ एक समान रिश्तों का नया अध्याय भी है। बालाकोट के कुछ महीनों बाद, भारतीय प्रधानमंत्री को अमरीका के राष्ट्रपति द्वारा आमंत्रित किया गया और इस मुलाकात के दौरान विश्व बिरादरी में भारत के महत्व की एक नई इबारत लिखी गई। यह इतिहास में पहली बार हुआ कि किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने अमरीकी राष्ट्रपति को अमरीकी जनता के सामने अमरीकी धरती पर प्रस्तुत किया। 

तब से, वैश्विक स्तर पर भारत की भूमिका को न केवल अधिक महत्व मिलने लगा, बल्कि यू.एन.एस.सी. के एक स्थायी सदस्य होने के बावजूद भी चीन आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के सरगना और पुलवामा हमले के दोषी मसूद अजहर को अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादियों की सूची में जाने से नहीं रोक पाया। यह महत्वपूर्ण मुद्दों पर अंतर्राष्ट्रीय चिंताओं पर भारत के साथ एकत्रित होती सहमति को दर्शाता है। जलवायु परिवर्तन पर भी, भारत एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में उभरा, जिसने कई अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन बनाए। भारत ने अपने खोए हुए आत्मविश्वास को पुन: पाया है और अपनी ताकत पर जोर देना शुरू किया है, जो दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए एक शुभ संकेत है। शायद बालाकोट हमला भारतीय इतिहास में उस क्षण को चिन्हित करता है, जिसके पश्चात भारत ने अपनी आजादी के 72 साल बाद पहली बार अपनी असली ताकत और आत्मविश्वास को पाया है।-तरुण चुघ (राष्ट्रीय मंत्री, भारतीय जनता पार्टी)

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