सूरत-ए-हाल पंजाब : लाखों फतेहवीर खड़े हैं ‘बोरवैल’ के किनारे

punjabkesari.in Sunday, Jun 16, 2019 - 03:48 AM (IST)

बोरवैल में गिरे दो वर्ष के फतेहवीर को बचाने में सरकारी मशीनरी की नाकामी ने न केवल सरकार को ही शर्मसार किया बल्कि एक प्रतीक के तौर पर उभर कर लाखों उन फतेहवीरों की निशानदेही भी कर दी, जो भविष्य में अंधे बोरवैलों के किनारे खड़े हैं। फतेहवीर भविष्य की पीढ़ी का प्रतीक है और बोरवैल उन संकटों का, जिनका सामना यह पीढ़ी कर रही है। पंजाब के मुख्यमंत्री कै. अमरेन्द्र सिंह ने खुले बोरवैल बंद करवाने के आदेश तो दिए हैं लेकिन जो असल बोरवैल अजगर की तरह हमारी नई पीढ़ी का दम घोंटने के लिए घात लगाए बैठे हैं, उनकी ओर यह कभी ध्यान ही नहीं देते। सरकार का कार्यकाल दो वर्ष पूरे कर चुका है और इनके पास लीडरशिप के अहं के अतिरिक्त कोई अन्य मुद्दा नजर ही नहीं आ रहा। बोरवैल खतरे की ‘बैल’ बजा रहा है लेकिन सरकार ने आंखें मूंद रखी हैं। 

भयानक बीमारियों की भेंट चढ़ते लाखों फतेहवीर 
क्या बच्चों के स्वास्थ्य का ध्यान रखना इस पीढ़ी को कुएं में धक्का देने के बराबर नहीं है? पंजाब, बल्कि पूरे भारत की हालत यह है कि हर रोज डायरिया, मलेरिया, जापानी बुखार, अनीमिया, कुपोषण के कारण हजारों की संख्या में बच्चे मर रहे हैं। मांओं को कुपोषण का शिकार होना पड़ रहा है, स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं, उनके 1500 ग्राम भार वाले बच्चे जन्म लेते ही आंखें मूंद जाते हैं, रोजाना हजारों बच्चे। क्या ये बोरवैल सरकारों को नजर नहीं आते? 

क्या मीडिया इन बीमारियों को बोरवैल नहीं समझता? या सिर्फ टी.आर.पी. बढ़ाना ही मकसद रह गया है। मनोरोगों के एक माहिर डाक्टर बता रहे थे कि इस किस्म की खबर को सैंसेशनल तरीके से पेश किया जाना बच्चों के मनों पर बहुत बुरा असर डालता है। इसलिए खबर को ऐसा न बनाया जाए और बार-बार इतना जोर देकर उस बच्चे को न दिखाया जाए। अन्यथा हम दूसरे बच्चों को मनोवैज्ञानिक तौर पर किसी अन्य किस्म के बोरवैल में गिरा रहे होंगे। 

पंजाब में तो मालवा बैल्ट से बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर ये समाचार भी आए हैं कि कुछ क्षेत्रों में लगातार मंदबुद्धि बच्चे पैदा हो रहे हैं। गांवों के गांव इन बीमारियों की चपेट में हैं। क्या बेरोजगारी कुआं नहीं है, जिसके किनारे हमारा भविष्य खड़ा है, हमारा फतेहवीर खड़ा है? बल्कि गिर ही पड़ा है और सिसक रहा है। रोजगार के मामले को लेकर 18 साल से अधिक उम्र के लगभग एक करोड़ पंजाबी हैं जो रोजगार की तलाश में हैं। फिर इस उम्र की कुल आबादी पंजाब में दो करोड़ के करीब है। इसका अर्थ यह कि 50 प्रतिशत युवा या काम कर सकने वाला पंजाबी भटक रहा है, बोरवैल में गिरा हुआ है। उसे कैसे उभारना है, यह किसी का दृष्टिकोण नहीं। दृष्टिकोण यह है कि मैं बड़ा हूं या वह? मेरा कैप्टन और, किसी अन्य का और। गम्भीरता कहीं पंख लगाकर उड़ गई है। पंजाब इस समय त्राहि-त्राहि कर रहा है।

कालेजों को लगे बैंकों के ताले
क्या हमारे युवाओं को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल रही है? प्रश्न में ही उत्तर है कि यदि उसे रोजगारपरक तथा गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल रही हो तो वह पंख लगाकर विदेशों की ओर न उड़ जाए। उसे सही शिक्षा नहीं मिल रही। हम उसके समय के बराबर की शिक्षा अपने विद्यार्थी को नहीं दे सके। इसलिए हमारे कालेज उजड़े पड़े हैं, बंद हो गए हैं। कुछ कालेजों को बैंक वालों ने ताले जड़ दिए हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार केवल मोगा जिला में ही 7 से अधिक कालेजों को बैंकों ने ताले जड़ दिए हैं क्योंकि इन कालेजों ने उनसे बड़े-बड़े कर्जे लिए हुए थे। इस सूरत में हमारी भविष्य की पीढ़ी, हमारे फतेहवीरों के सामने बोरवैल नहीं है तो क्या है? यह सिसक नहीं रही तो और क्या कर रही है? 

हमारी सरकारी मशीनरी केवल फतेहवीर को बोर से निकालने के लिए पांच दिन नहीं लगा रही, इन सभी फतेहवीरों को निकालने के लिए न तो हमारे पास साधन हैं और न ही किसी नेता में इच्छाशक्ति दिखाई देती है। ये पांच दिन एक प्रतीक के तौर पर देखे जा रहे हैं कि सरकार के पास इस पीढ़ी के बचाव के लिए कोई भी साधन नहीं हैं, इच्छा ही नहीं है। वोटों के बहाने किसानों को न तो समझाया गया और न ही रोका गया कि उन्होंने गेहूं की पराली के 50 प्रतिशत खेतों को आग लगाकर जला दिया। क्या हम यह अपनी भविष्य की पीढ़ी के साथ खिलवाड़ नहीं कर रहे? चूंकि सामने चुनाव हैं, पंजाब के मुख्यमंत्री ने विशेष बयान दिया कि किसान इस बार 20 जून की बजाय एक सप्ताह पहले ही धान की बिजाई शुरू कर सकते हैं। कृषि विशेषज्ञों का जो पहले सुझाव था, क्या वह गलत था? यदि गलत था तो इतने वर्षों तक ध्यान क्यों नहीं रखा गया? फिर यदि अगेती बिजाई से भूमिगत पानी को नुक्सान हो रहा है तो हम अपने इन फतेहवीरों को बोरवैल में नहीं गिरा रहे तो और क्या कर रहे हैं? 

अच्छे काम की शुरूआत खुद से 
हमारी भविष्य की पीढ़ी के सामने बहुत संकट हैं। हमें किसी नए दृष्टिकोण की जरूरत है और इच्छाशक्ति की भी। हमें अपने ब्रेन-ड्रेन को रोकना चाहिए। पंजाब युवाओं का राज्य है। यह कहीं बुढ़ापे का सहारा या बुढ़ापे का अकेलापन बंटाने वाला बनकर ही न रह जाए। इसलिए हमारी सरकारों को ऐसे कार्यक्रम लेकर आने चाहिएं, ऐसी शिक्षा नीति की जरूरत है जो रोजगारपरक हो। बच्चे का प्राथमिक विकास कुपोषण का शिकार होकर न रह जाए। मांएं कुपोषण की शिकार होकर मृत बच्चे पैदा न करें। 

फिर यदि यह पंजाब की हालत है, जो खुद को खुशहाल कहने की डींगें भी मारता है तो बाकी देश की हालत क्या होगी? सरकार के साथ-साथ लोगों की जवाबदेही भी जरूरी है। हमने भी यदि सामाजिक तौर पर अनैतिकता के बोरवैल नंगे रखे हुए हैं तो इस पीढ़ी को कोई अच्छी शिक्षा नहीं दे रहे। हमें अपने कत्र्तव्य पहचानते हुए नई पीढ़ी का मार्गदर्शन करना चाहिए। तभी राज्य को, देश को और समाज को विकास के मार्ग पर चलाया जा सकेगा। अच्छाई का कभी बीजनाश नहीं होता, इसलिए हमें ये कार्य इसी उम्मीद के साथ जल्दी से जल्दी शुरू कर देने चाहिएं।-देसराज काली(हरफ-हकीकी) 
 


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