रेप के दोषियों के माफी मामले में सुप्रीमकोर्ट ले संज्ञान

punjabkesari.in Thursday, Aug 18, 2022 - 04:27 AM (IST)

आजकल सोशल मीडिया और इलैक्ट्रॉनिक मीडिया पर चौबीसों घंटे एक छोटा वीडियो चलता नजर आ रहा है जिसमें दर्शाया गया है कि कुछ लोग व्यक्तियों के समूह को माला पहना रहे हैं और उन्हें मिठाइयां बांट रहे हैं। उनमें से एक व्यक्ति एक वृद्ध व्यक्ति के पांवों को छू रहा है। आमतौर पर यह एक रुटीन वीडियो लगता है जिसमें कुछ व्यक्तियों का सम्मान किया गया है और उनमें से एक व्यक्ति का आशीर्वाद प्राप्त करते दिखाया गया है। मगर यह कोई साधारण वीडियो नहीं।

सम्मानित व्यक्ति कोई वीरतापूर्ण कार्य करके या फिर अपने जीवन में कोई महान कार्य कर नहीं लौट रहे। ये लोग तो गैंग रेप और हत्या के दोषी हैं जिन्हें 75वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर क्षमा कर रिहा किया गया है। हम अपने नागरिकों द्वारा नैतिक मूल्यों में कमी और अमानवीय कार्य के बारे में रोजाना देखते हैं। यह विशेष वीडियो हिट होता दिखाई पड़ता है। आरोपी व्यक्तियों का स्वागत करने और सार्वजनिक तौर पर उन्हें सम्मानित करने का कार्य निश्चित तौर पर प्रत्येक शिक्षित व्यक्ति की आत्मा को चोट पहुंचाएगा। 

इन 11 व्यक्तियों और शायद कुछ अन्य ने 6 माह की गर्भवती बिलकिस बानो का दुष्कर्म करने का जघन्य अपराध किया था। इन लोगों ने उसकी 3 वर्षीय बच्ची की हत्या भी कर दी थी। बिलकिस बानो के साथ अन्य पारिवारिक सदस्य जिसमें उसकी मां, बहन शामिल थी, का भी दुष्कर्म किया गया और उसके सामने ही हत्या कर दी गई। यह घटना 2002 में गुजरात के गोधरा में कुछ हिंदू श्रद्धालुओं को ले जा रही गाड़ी में हुए कत्लेआम के बाद हुई थी। यह दुष्कर्म और हत्यारोपी उस समय 21 वर्षीय बिलकिस बानो के पड़ोसी थे और परिवार की तरह वहां रह रहे थे। दुष्कर्म के आरोपियों में से एक बिलकिस बानो के पिता की तरह था मगर उन्होंने पीड़ितों पर कोई दया नहीं दिखाई। 

यह एक दानवों का समूह था जिनका स्वागत मिठाइयां बांट कर किया गया और उन्हें माला पहनाई गई। उनका सम्मान इस तरह किया गया जैसे वे लोग कोई राजनीतिक कैदी हों या फिर किसी युद्ध में विजयी होकर लौटे हों। ये लोग किसी भी प्रकार से दुष्कर्म के आरोपी नहीं लगते। सार्वजनिक तौर पर ऐसे आरोपियों को सम्मानित करना दर्शाता है कि हम अभी भी 2002 के पागलपन से लौटे नहीं हैं। जबकि यह कृत्य घिनौना था और लोगों के मनों में अभी भी बैठा हुआ है, वहीं राज्य सरकार का यह बर्ताव बेहद निंदनीय है। स्वतंत्रता दिवस पर इन्हें क्षमा कर रिहा किया गया है और ऐसा भारत सरकार द्वारा विभिन्न हालातों के अंतर्गत आरोपियों को रिहा करने के दिशा-निर्देशों के आने के बाद हुआ है। हालांकि हालात स्पष्ट तौर पर उल्लेख करते हैं कि हत्या और दुष्कर्म जैसे गंभीर अपराधों में ऐसे लोग क्षमा के हकदार नहीं होते। 

गुजरात सरकार ने कहा है कि सुप्रीमकोर्ट ने सरकार को ऐसा करने के निर्देश दिए हैं। यह अद्र्धसत्य है। आरोपियों में से एक के आवेदन पर सुप्रीमकोर्ट ने मामले को राज्य सरकार को सौंपा था और उसने राज्य सरकार द्वारा नियुक्त एक कमेटी द्वारा क्षमा के निर्णय पर सुप्रीमकोर्ट ने कोई निर्देश नहीं दिया। विडम्बना देखिए कि हत्या तथा गैंगरेप के आरोपियों को रिहा करने का निर्णय एक दिन बाद आया जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लाल किले के अपने भाषण के दौरान महिला सशक्तिकरण की जरूरत पर बल दिया। मोदी ने नारी शक्ति के बारे में बात की और इस बात पर भी जोर दिया कि किस तरह से देश को आगे बढ़ाया जा सकता है। 

गुजरात से बिलकिस बानो केस की जांच और कानूनी प्रक्रिया  को लेकर निश्चित तौर पर सुप्रीमकोर्ट प्रशंसा की हकदार है। पीड़िता ने आरोप लगाया था कि उसे धमकी मिल रही है इसलिए यह मामला महाराष्ट्र में शिफ्ट कर दिया जाए। मुम्बई में सी.बी.आई. की विशेष अदालत ने 11 व्यक्तियों पर आरोप सिद्ध कर उन्हें जेल भेजा था। इसके बाद हाईकोर्ट द्वारा उनके आरोपों को सही ठहराया गया था। बाद में सुप्रीमकोर्ट ने पीड़िता को 50 लाख रुपए का मुआवजा देने के लिए कहा था।

उसी सुप्रीमकोर्ट को जिसने एक बार एक बहादुर महिला का पक्ष लिया था जोकि बुरी तरह से प्रभावित हुई थी, अब उसे फिर से इस मामले में दखलअंदाजी कर इस अन्याय को रोकना चाहिए। ऐसी क्षमा एक गलत  संकेत देती है और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के वायदे के साथ विश्वासघात है। अपराधियों को सम्मानित करना और समाज के एक वर्ग द्वारा इस कार्य का बेशर्म होकर पक्ष लेना दर्शाता है कि नफरत और साम्प्रदायिकता का जहर अभी भी कम नहीं हुआ है बल्कि यह जहर समय के साथ-साथ और भी फैलता गया है।-विपिन पब्बी
 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News