सुनक की प्रतिक्रिया मोदी के बिल्कुल विपरीत थी

punjabkesari.in Friday, Jul 12, 2024 - 05:30 AM (IST)

पिछले सप्ताह यूनाइटेड किंगडम में संसद के लिए हुए चुनावों में ऋषि सुनक और उनकी कंजर्वेटिव पार्टी हार गई। हार के बाद भी वह विनम्र थे। उन्होंने कहा, ‘‘मैं आपका गुस्सा समझ सकता हूं। मैं कई अच्छे, मेहनती उम्मीदवारों की हार की जिम्मेदारी लेता हूं।’’ अपेक्षित परिणाम घोषित होने के तुरंत बाद उन्होंने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। अगले दिन उन्होंने कंजर्वेटिव पार्टी के नेता पद से भी इस्तीफा दे दिया, जिससे पार्टी में शीर्ष पद के लिए अन्य महत्वाकांक्षी राजनेताओं के लिए मैदान खाली हो गया। मुझे यकीन है कि सोचने और महसूस करने वाले भारतीयों की नजर और कम से कम मेरी नजर में ऋषि का कद और कई पायदान ऊपर चला गया। मेरे मन की आंखों में मैंने हार पर उनकी प्रतिक्रिया की तुलना हमारे अपने लोकप्रिय प्रधानमंत्री की प्रतिक्रिया से की, जब उनकी पार्टी ने लोकसभा में अपनी पिछली 303 सीटों में से 60 सीटें खो दी थीं। 

मोदी ने इस बार 400 सीटें जीतने का दावा किया था। उन्होंने देश भर में कई बुनियादी ढांचा परियोजनाओं का उद्घाटन किया, अपने भ्रमणशील उत्साह में देश के कोने-कोने का भ्रमण किया, अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर का उद्घाटन अकेले ही किया। उनके सारे प्रयास व्यर्थ गए। उन्होंने उत्तर प्रदेश का अपना गढ़ खो दिया और आश्चर्य की बात यह है कि वह फैजाबाद सीट अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी से हार गए। मोदी ने बिना पलक झपकाए अपना प्रिय तीसरा कार्यकाल जारी रखा। उनके लिए यह हमेशा की तरह काम था। गौमांस खाने वालों और मवेशियों का व्यापार करने वालों की लिंचिंग के साथ-साथ विभिन्न अपराधों के आरोपी मुसलमानों के घरों और दुकानों को गिराना भाजपा शासित राज्यों में जारी रहा। 

उन्होंने लोकसभा चुनावों में अपने खराब प्रदर्शन पर कोई निराशा नहीं जताई और न ही अपनी पार्टी के सदस्यों को इस बात के लिए कोई स्पष्टीकरण देने की जरूरत समझी। इसे उनकी व्यक्तिगत विफलता ही कहा जा सकता है क्योंकि भाजपा ने उनके नाम पर चुनाव लड़ा था। ऋषि सुनक भारतीय मूल के हैं। उनके परिवार की जड़ें पंजाब में हैं। उनकी पत्नी अक्षता मूॢत, इंफोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति की बेटी हैं। उनकी जड़ें दक्षिण भारतीय राज्य कर्नाटक में हैं। वे नरेंद्र मोदी और लाखों भारतीयों की ही तरह हैं। फिर भी, अपने करियर में एक झटके पर सुनक की प्रतिक्रिया मोदी के बिल्कुल विपरीत थी। ऋषि सुनक एक धार्मिक हिंदू हैं। यह स्पष्ट है कि वह अपने धर्म के सार का पालन करते हैं। वह विनम्र और पश्चातापी थे। उन्होंने हार के लिए अपनी जिम्मेदारी स्वीकार की। आर.एस.एस. को उनके व्यक्तित्व और व्यवहार के इस पहलू पर टिप्पणी करनी चाहिए जैसे उसने मोदी का नाम लिए बिना की थी। 

आखिरकार, दुनिया के सभी महान धर्मों की मूल शिक्षाएं समान हैं। वे सभी विनम्रता सिखाते हैं और अहंकार को अस्वीकार करते हैं। वे झूठ को अस्वीकार करते हैं। वे बिना किसी पुरस्कार की अपेक्षा के करुणा और सेवा का उपदेश देते हैं। फिर, हमारे ‘देसी’ राजनेता हमारे अपने रिश्तेदारों से अलग क्यों हैं जो दूसरे देशों में चले गए हैं और वहां उन्होंने अविश्वसनीय मान्यता प्राप्त की है? ऋषि सुनक उस देश के प्रधानमंत्री बने जिसने हम पर 2 शताब्दियों या उससे अधिक समय तक शासन किया। कमला हैरिस, जिनकी मां का परिवार तमिलनाडु से अमरीका चला गया था, आज दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश की उप-राष्ट्रपति हैं। 

पश्चिम में बेहतर जीवन स्तर की तलाश करने वाले भारतीयों के अलावा, दुनिया के छोटे देशों में भी भारतीय मूल के नागरिक हैं। उनके पूर्वजों को वैस्ट इंडीज, मॉरीशस और फिजी में ब्रिटिश शासित उपनिवेशों में कपास और गन्ने के खेतों में काम करने के लिए मजदूर के रूप में भर्ती किया गया था। सर सेवसागर रामगुलाम से शुरू होकर, मॉरीशस के प्रधानमंत्री हमेशा भारतीय मूल के रहे हैं। सर विद्याधर सूरज प्रसाद नायपॉल, जिनका मूल बिहार में है, विशेष रूप से बिहार के एक गांव के दुबे परिवार में, आज अंग्रेजी भाषा के महान लेखकों में से एक के रूप में उन्हें स्वीकार किया जाता है। उनके परिवार को 2 या अधिक शताब्दियों पहले वैस्ट इंडीज में स्थानांतरित कर दिया गया था। उन्होंने ‘ए हाऊस फॉर मिस्टर बिस्वास’, ‘ऐन एरिया ऑफ डार्कनैस’, ‘इंडिया-ए वाऊंडेड सिविलाइजेशन’  तथा अन्य अपनी विपुल रचनाओं के लिए साहित्य का नोबेल पुरस्कार जीता। 

सबसे पहले उन्हें मुस्लिम फोबिया को त्यागना चाहिए।  उन्हें ई.डी. और सी.बी.आई. जैसी केंद्रीय जांच एजैंसियों के उत्साह को नियंत्रित करना चाहिए ताकि वे केवल विपक्षी राजनेताओं और उनके शासन के आलोचकों का पीछा न करें।  उनकी पार्टी में संदिग्ध नेताओं की भरमार है, जो अपनी अलमारी में कंकाल छिपाए हुए हैं। अगर इसे जल्दी ठीक नहीं किया गया तो मोदी की छवि को पहले राष्ट्रीय और फिर अंतर्राष्ट्रीय  स्तर पर नुकसान पहुंचेगा। उन्हें कृषि कानूनों के प्रति अपनी कमियों पर विचार करना चाहिए, जिनके बारे में कई लोगों ने कहा था कि वे अच्छे कानून थे लेकिन किसानों की लॉबी को ठीक से नहीं समझाया गया। अगर नरेंद्र मोदी चाहते हैं कि आने वाली पीढिय़ां उन्हें याद रखें, तो उन्हें कम से कम आर.एस.एस. के सरसंघचालक की आवाज सुननी चाहिए, भले ही वह उन आम भारतीयों की आवाज को खारिज कर दें, जिन्होंने उन्हें वोट नहीं दिया।-जूलियो रिबैरो (पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी)
 


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