बंगाल की ऐसी डरावनी तस्वीर चिंताजनक

Thursday, Apr 11, 2024 - 05:51 AM (IST)

यह स्वतंत्र भारत के इतिहास का पहला अवसर है, जब किसी राजनीतिक दल के सांसदों ने चुनाव आयोग का दरवाजा इसलिए खटखटाया कि केंद्रीय एजैंसियों सी.बी.आई., ई.डी. और आयकर विभाग के प्रमुखों को बदला जाए। चुनाव अभियानों के बीच चुनाव आयोग के हाथों कानून व्यवस्था से लेकर अन्य प्रशासनिक मशीनरी आती है, किंतु संविधान और कानून उनमें सीमाएं तय करता है। चुनाव की दृष्टि से किसी अधिकारी की भूमिका संदिग्ध हुई तो ही उसे काम करने से आयोग रोक सकता है, उसकी जगह दूसरे की प्रतिनियुक्ति कर सकता है। यह भी सामान्यत:राज्यों के अधिकारियों तक सीमित रहा है।

सभी विपक्षी दल इस विषय को चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा बनाने की कोशिश कर रहे हैं कि ये जांच एजैंसियां नरेंद्र मोदी सरकार के निर्देश पर विपक्षी दलों के विरुद्ध ही कार्रवाइयां कर रही हैं। यानी चुनाव आयोग द्वारा उनके प्रमुख नियुक्त हो जाएं तो ये निष्पक्ष होकर काम करेंगे। वास्तव में इन पार्टियों ने अपने आक्रामक बयानों से समर्थकों और कार्यकत्र्ताओं के मन में यह बात बैठा दी है कि ये विभाग सरकार के इशारे पर विपक्षी नेताओं के विरुद्ध कार्रवाइयां करते हैं, छापे मारते हैं, जेल में डालते हैं और सबको समाप्त करना चाहते हैं। इसी का परिणाम है कि विपक्षी पार्टियों के समर्थक भी इन एजैंसियों के विरुद्ध आक्रामक हैं। पिछले 6 अप्रैल को पश्चिम बंगाल के मेदिनीपुर जिले के भूपतिनगर में करीब दो वर्ष पहले हुए एक विस्फोट के सिलसिले में छापा मारने गई एन.आई.ए. की टीम पर हमला इसी की परिणति है। 

3 माह पूर्व 5 जनवरी को संदेशखाली में राशन घोटाले के आरोपी तृणमूल नेता शाहजहां शेख के घर छापेमारी के लिए केंद्रीय बल के साथ पहुंची ई.डी. की टीम पर भीषण हमला किया गया। ई.डी. के अधिकारी बुरी तरह घायल हुए, उन्हें जान बचाने के लिए तब तक भागना पड़ा जब तक कि हमलावरों ने खदेडऩा बंद नहीं किया। एन.आई.ए. आतंकवाद के विरुद्ध जांच और कार्रवाई करती है। इसे भी केेंद्रीय सशस्त्र बलों की टीम के साथ भूपतिनगर जाना पड़ा, क्योंकि स्थानीय पुलिस सहयोग नहीं कर रही है। 

लोकसभा चुनाव को देखते हुए ममता और पूरी पार्टी ज्यादा आक्रामक है। ममता ने एन.आई.ए. पर ही हमला करने तथा महिलाओं से छेड़छाड़ तक का आरोप लगा दिया। पुलिस ने महिलाओं से शिकायत लेकर एन.आई.ए. के अधिकारियों के विरुद्ध छेड़छाड़ की प्राथमिकी दर्ज कर ली। इससे पहले वहां ई.डी., आयकर और सी.बी.आई. अधिकारियों के विरुद्ध भी पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज की है। पश्चिम बंगाल चुनाव का दौरा करने वाले जानते हैं कि केंद्रीय एजैंसियों के छापे को तृणमूल कांग्रेस ने अगर बड़ा मुद्दा बनाया है तो मुख्य विपक्षी भाजपा के लिए भी यह उतना ही बड़ा मुद्दा है।

स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी सभा में तृणमूल कांग्रेस शासन में हुए भ्रष्टाचार के विरुद्ध कार्रवाई में मिले नोटों के बंडलों की चर्चा करते हुए घोषणा करते हैं कि दीदी भ्रष्टाचारियों को बचा रही हैं और कार्रवाई करने वाले अधिकारियों पर हमले करवाती हैं। प. बंगाल में वामपंथी पाॢटयों तथा कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी सहित कई नेता इन कार्रवाइयों के समर्थन में आवाज लगाते हैं। ये भी ममता बनर्जी सरकार के भ्रष्टाचार के विरुद्ध मोर्चाबंदी करते हैं। इनके कार्यकत्र्ताओं के विरुद्ध भी हिंसा हुई है। इन मामलों पर ममता, उनकी सरकार और पार्टी को प्रदेश में किसी दल का समर्थन नहीं है।

ममता स्वयं केंद्रीय एजैंसियों के विरुद्ध मुख्यमंत्री रहते सड़क पर उतर चुकी हैं। फरवरी, 2019 में शारदा चिटफंड मामले में तत्कालीन कोलकाता पुलिस आयुक्त राजीव कुमार से पूछताछ करने के लिए सी.बी.आई. की टीम उनके आवास पर पहुंची थी तो ममता सी.बी.आई. के खिलाफ कोलकाता के धर्मतल्ला मैट्रो चैनल के पास धरने पर बैठ गई थीं। बंगाल में बी.एस.एफ. सबसे ज्यादा हमले का शिकार हुई है। ऐसी अनेक घटनाएं  हो चुकी हैं। केंद्रीय एजैंसियों का विरोध दूसरे राज्यों में भी हुआ लेकिन प. बंगाल इस मायने में सबसे डरावना प्रदेश बना हुआ है।

कलकत्ता उच्च न्यायालय द्वारा अनेक बार सरकार और प्रशासन की निंदा करने के बावजूद परिवर्तन नहीं आया। संदेशखाली घटना को भी पहले ममता और उनकी सरकार ने नकारा। पुलिस ने बयान दिया कि शाहजहां शेख या उनके साथियों पर किसी महिला ने यौन उत्पीडऩ का आरोप लगाया ही नहीं है। वर्ष 2022 में पूर्व मेदिनीपुर जिले के भूपतिनगर में तृणमूल नेता के घर विस्फोट हुआ था जिसमें तीन लोगों के परखच्चे उड़ गए थे और दो घायल फरार हो गए थे। एन.आई.ए. को जांच का आदेश कलकत्ता उच्च न्यायालय ने दिया था। आरोपी लगातार सम्मन के बावजूद उपस्थित नहीं हो रहे थे। तभी एन.आई.ए. को वहां छापा मारना पड़ा। ममता ने इसे पटाखा विस्फोट बताया था। इस बार हमले पर उन्होंने कहा कि लोगों ने वही किया जो करना चाहिए था। यह मुख्यमंत्री द्वारा सीधे-सीधे हमले का समर्थन और भविष्य के हमले के लिए उकसाना है। संदेशखाली में ई.डी. के विरुद्ध भी उसी तरह के आरोप लगाकर स्थानीय थाने में मामला दर्ज किया गया जैसे एन.आई.ए. की टीम पर अभी किया गया है।

निश्चित रूप से पश्चिम बंगाल के लोकसभा चुनाव पर इन सारी बातों का असर होगा। संदेशखाली बशीरहाट लोकसभा के अंतर्गत आता है। भाजपा ने वहां की पीड़ित महिलाओं के लिए संघर्ष करने वाली रेखा पात्रा को उम्मीदवार बनाया है, जिसे ममता ने बाहरी बता दिया। यानी वह बंगाली नहीं बोलती है तो बाहरी है। वहां से ममता ने हाजी नुरुल इस्लाम को उम्मीदवार बनाया है, जो एक बार सांसद रह चुके हैं। उन पर वर्ष 2010 में भीषण दंगे कराने का आरोप लगा था।

सच कहा जाए तो ममता ने अपनी आक्रामकता से ही बंगाल को इस हालत में पहुंचा दिया है कि लोग केंद्रीय एजैंसियों पर हमले करते हैं, न्यायालय के आदेशों की अवहेलना करते हैं और पुलिस प्रशासन तृणमूल समर्थकों-कार्यकत्र्ताओं के सामने विवश है या उन्हें सहयोग करती है। संदेशखाली संसदीय क्षेत्र में है , जहां 46.3 प्रतिशत मुस्लिम हैं और वे परिणाम निर्धारित करते हैं। अनुसूचित जाति की संख्या लगभग 25 प्रतिशत है। इसलिए चुनाव परिणाम के बारे में कहना मुश्किल है। लेकिन प. बंगाल में भाजपा तृणमूल को इस बार 2019 से ज्यादा कड़ी टक्कर दे रही है, यह साफ है। -अवधेश कुमार

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