‘परीक्षाओं के तनाव में विद्यार्थी’

Friday, Mar 12, 2021 - 03:17 AM (IST)

आज की व्यस्त जिंदगी में प्रत्येक व्यक्ति तनाव ग्रस्त है। खुशियां तथा अपनापन लोगों के जीवन से पंख लगा कर कहीं उड़ गया है। यह समस्या केवल बड़ों की  ही नहीं है  बल्कि आज का बचपन भी तनाव से ग्रस्त है। जैसे ही परीक्षाओं का समय नजदीक आता है तो हम सबके दिमाग में अलग-अलग विचार आने आरंभ हो जाते हैं। जैसे-पता नहीं पेपर कैसे आएंगे, जो प्रश्न याद किए हैं वे आएंगे या नहीं, आने वाली परीक्षा में कितने प्रतिशत नंबर आएंगे, मैं कहीं अकेला ही फेल न हो जाऊं आदि मन में डर, परेशानी, उदासी, चिड़चिड़ापन तथा पता नहीं अन्य कई ख्याल घर बना कर बैठ जाते हैं। आज के विद्यार्थी परीक्षा के समय तनाव का शिकार हो रहे हैं। परीक्षाएं एक ऐसा डर है जो घर बना कर उनके दिलों में बैठ गया है, जिसको दूर करना बहुत जरूरी है। 

कोविड के बाद हालात और भी बदल गए हैं। सरकार के दिशा निर्देशों के पश्चात 1 फरवरी को सभी बच्चों के लिए स्कूल खोल दिए गए लेकिन ऑनलाइन पढ़ाई के पश्चात बच्चों के लिए कक्षा में अध्यापक के सामने बैठकर पढऩा अब उतना आसान नहीं लग रहा जितना 10 मास पहले था। बच्चों में अध्यापक को सुनने की शक्ति समाप्त हो गई है। आज के समय की जटिल शिक्षा प्रणाली एवं मूल्यांकन विधि ने बच्चों के मन में परीक्षा का खौफ बना दिया है। वे खुद को असुरक्षित महसूस करते हैं। इस गंभीर विषय के प्रति आज बड़ी संजीदगी से विचार करने की आवश्यकता है। 

इस दौर में अपने विद्याॢथयों को परीक्षा के तनाव से मुक्त कर सही रास्ते पर लाने के लिए सही उपदेश देने की आवश्यकता है। बच्चों के मन में अपने शैक्षणिक  वर्ष की मेहनत के फल को लेकर अजीबो-गरीब अनेक परिस्थितियां सामने आती हैं, जिनमें से उसे निश्चित ही गुजरना पड़ता है। मनोवैज्ञानिक  इस तनाव को कम करने के लिए हल भी बताते हैं। यह तनाव, यह डर अधिक पढऩे वाले बच्चों के मन में भी होता है। अधिक पढऩे वाले विद्यार्थियों का यह हाल होता है कि कहीं कुछ रह न जाए। वह सोचते हैं कि उन्हें अधिक से अधिक समय मिले तथा वे अधिक से अधिक नंबर प्राप्त कर सकें। माता-पिता की ओर से भी विद्यार्थी पर दबाव बनाया जाता है कि अधिक अंक आने चाहिएं। कई बार हमारे माता-पिता हमारी किसी होशियार मित्र या किसी रिश्तेदार से तुलना करते हुए भी पढऩे के लिए दबाव बनाते हैं जिस कारण भी विद्यार्थी तनाव का शिकार हो रहे हैं। 

अब प्रश्न यह उठता है कि इस तनाव को कम कैसे किया जाए अथवा इस तनाव से कैसे बचा जाए? बिना मेहनत किए व्यक्ति सफल नहीं हो सकता तथा बाद में पछता कर समय को दोष देता है। यदि हम सारा साल मन लगाकर पूरे ध्यान से पढ़ाई नहीं करेंगे तो हमारे मन में कम अंक लेने अथवा फेल होने का भय बना रहेगा। यहां मार्गदर्शक, अध्यापक तथा अभिभावकों का संयुक्त रूप से कत्र्तव्य बनता है कि बच्चों के  एक अच्छे आदर्श तथा शोधकत्र्ता के रूप में मददगार बनें ताकि वे डर से चिंता मुक्त होकर अपने उद्देश्य की प्राप्ति कर सकें।

बच्चों को नैतिक शिक्षा दी जाए ताकि विद्यार्थी अध्यापक तथा अपने से बड़ों का सम्मान करना सीखें। अभिभावक अधिक से अधिक समय बच्चों के साथ बिताएं तथा उनके साथ दोस्तों जैसा व्यवहार करें। अभिभावक बच्चों के सामने 100 प्रतिशत अथवा 99 प्रतिशत वाली शर्त न रखें। वे अपने बच्चों की दूसरे बच्चों के साथ तुलना न करें। थोड़ा-थोड़ा पढऩे की आदत डाली जाए। कुछ समय के अंतराल के पश्चात पढ़ी हुई चीजों को दोबारा दोहराया जाए। 

इन तरीकों को अपनाकर हम निश्चित ही बच्चों के मन से परीक्षा के डर को कम करने में मदद कर सकते हैं। परीक्षा के बोझ को मन पर हावी करके बच्चे सफलता की सीढ़ी नहीं चढ़ सकते। इसलिए जरूरी है कि उन्हें योजनाबद्ध तरीके से समय की महत्ता को पहचान कर समय सारिणी (टाइम टेबल) बनाकर परीक्षा की तैयारी के लिए मेहनत करनी चाहिए ताकि अच्छे परिणाम सामने आ सकें तथा हमारी परीक्षा की तैयारी  केवल खानापूर्ति बन कर न रह जाए। 

हमें आवश्यकता है हमारे विद्याॢथयों में पूरा विश्वास भरने की, उनको सही ढंग से परीक्षा के लिए तैयार होने में मदद करने की, तभी वे परीक्षा के डर को मन से दूर कर अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए आगे आएंगे तथा सफलता के मुकाम पर पहुंच सकेंगे। आएं मिलकर कोशिश जारी रखें।-प्रि. डा. मोहन लाल शर्मा
 

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