छात्रों को किफायती मैडीकल कॉलेज दरकार हैं
punjabkesari.in Monday, Jul 15, 2024 - 05:51 AM (IST)
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने विवादों से घिरी मैडीकल प्रवेश परीक्षा ‘नीट-यू.जी.’ 2024 को रद्द करने की अर्जी पर सुनवाई करते हुए सख्त रूप अपनाया है। माननीय सी.जे.आई. चंद्रचूड़ जी ने कहा, ‘‘पेपर लीक पर विवाद नहीं किया जा सकता। हम इसके परिणामों पर भी विचार कर रहे हैं। हम एक आदर्श दुनिया में नहीं रहते हैं, लेकिन दोबारा परीक्षा पर निर्णय लेने से पहले हमें हर पहलू पर गौर करना होगा क्योंकि हम जानते हैं कि हम 23 लाख छात्रों के भविष्य की बात कर रहे हैं।’’
माननीय सुप्रीम कोर्ट की प्रवेश परीक्षाओं को लेकर टिप्पणी अत्यंत संजीदा है और यह हमारे छात्रों के भविष्य को लेकर ङ्क्षचताओं की अभिव्यक्ति भी करती नजर आ रही है। प्रवेश परीक्षाओं के पेपर लीक होने के कारण छात्रों और अभिभावकों का विश्वास क्यों डोल रहा है इससे जुड़े कुछ तथ्य विचारणीय हैं। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की भारत रोजगार रिपोर्ट 2024 के अनुसार, देश की युवा आबादी (15-29 वर्ष की आयु) में बेरोजगारों की संख्या 83 प्रतिशत है और उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे अधिक आबादी वाले राज्यों के बेरोजगारों की संख्या ‘बहुत खराब’ है। संयोग से ये राज्य पेपर लीक के मामले में सबसे अधिक संवेदनशील हैं। बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे ङ्क्षहदी भाषी राज्यों में पेपर लीक की बढ़ती समस्या काफी हद तक स्थिर आर्थिक माहौल का प्रतिबिंब है, जहां रोजगार के अवसर सीमित हैं।
देश के दक्षिणी और पश्चिमी हिस्से के राज्यों की तुलना में इन राज्यों में कोई समृद्ध औद्योगिक क्षेत्र नहीं है, जहां निजी क्षेत्र रोजगार प्रदान करने में आगे आ सकता है। इन राज्यों में पेपर लीक के मूल में इनकी कमजोर अर्थव्यवस्था है, जो पर्याप्त गुणवत्तापूर्ण रोजग़ार के अवसर पैदा करने में विफल हो रही है, जिससे सरकारी नौकरियों की मांग बढ़ रही है। पिछले 5 साल में उत्तर प्रदेश से पेपर लीक की 8, राजस्थान और महाराष्ट्र से करीब 7-7 और बिहार से पेपर लीक की 6 खबरें सामने आई हैं, जिसमें 2023 के कांस्टेबल और शिक्षक भर्ती परीक्षा भी शामिल हैं। गुजरात और मध्य प्रदेश में करीब 4 मामले सामने आए हैं।
पेपर लीक कांड का एक कारण देश में मैडीकल कॉलेज कम होना भी है। देश में मैडीकल शिक्षा की आपूर्ति की बात करें तो इस वक्त मैडीकल शिक्षा जैसे स्ट्रीम पर बहुत ज्यादा बोझ है क्योंकि अन्य विकल्प जो नए जमाने की स्किल प्रदान कर सकते हैं और युवाओं को डिजिटल मार्कीटिंग और हॉस्पिटैलिटी जैसे नए उद्योगों में रोजगार योग्य बना सकते हैं, जो अभी तक पर्याप्त संख्या में नहीं खुले हैं। नीट जैसे मामलों का पैदा होना इसी मांग और आपूर्ति में फासले के कारण भी है।
आजादी के बाद से ही सरकारी कॉलेजों में एम.बी.बी.एस. सीटों के लिए विशेष रूप से अभूतपूर्व मांग रही है। इसलिए, जब कथित पेपर लीक का मुद्दा सामने आया है तो , तो इसने भारत में मैडीकल एजुकेशन के सामने आने वाली चुनौतियों और एन.टी.ए. के भीतर के मुद्दों की ओर ध्यान आकॢषत करना तर्क संगत है सरकारी डेटा पिछले एक दशक में मैडीकल कॉलेजों और एम.बी.बी.एस. सीटों दोनों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि दर्शाता है। एक रिपोर्ट के अनुसार मैडीकल कॉलेज 2014 से पहले 387 से बढ़कर वर्तमान में 706 हो गए हैं, जबकि एम.बी.बी.एस. सीटें 51,348 से बढ़कर 1,08,940 हो गई हैं। इस विस्तार के बावजूद, नीट एस्पिरेंट्स की संख्या लगातार उपलब्ध सीटों की संख्या से अधिक रही है, जिसमें 2021 में आवेदकों की संख्या 16.14 लाख से बढ़कर इस साल 23.33 लाख हो गई है, जो मांग और आपूर्ति के बीच लगातार अंतर को दर्शाता है।
दूसरी समस्या देश में किफायती निजी मैडीकल एजुकेशन की कमी है, जो छात्रों को नीट परीक्षाएं बार-बार देने के लिए मजबूर करती है नीट के हर सत्र में 30 प्रतिशत उम्मीदवार दोबारा आते हैं, क्योंकि 95 प्रतिशत माता-पिता निजी कॉलेजों में मैडीकल एजुकेशन का खर्च नहीं उठा सकते हैं। आप सरकारी कॉलेजों में 5 लाख रुपए में एम.बी.बी.एस. पूरा कर सकते हैं, जबकि निजी कॉलेजों में फीस 1 करोड़ रुपए तक हो सकती है। क्यों न राज्य सरकारों को अपने राज्यों में सरकारी और किफायती निजी मैडीकल कॉलेजों की संख्या बढ़ाने की अनुमति दी जाए? इससे छात्रों का थर्ड क्लास देशों में डाक्टरी की शिक्षा लेने जाना तो कम होगा!
मैडीकल कॉलेजों का असमान वितरण भारत में मैडीकल कॉलेज शहरी क्षेत्रों में केंद्रित हैं जो ग्रामीण क्षेत्रों में एक शून्य उत्पन्न करता है। निजी मैडीकल कॉलेजों का अधिक शुल्क, सरकारी संस्थान शुल्क और शिक्षा गुणवत्ता के मामले में अधिक किफायती हैं। भारत में कई मैडीकल कॉलेजों का पाठ्यक्रम पुराना है और वर्तमान चिकित्सा पद्धतियों के अनुरूप नहीं है।-डा. वरिन्द्र भाटिया