बढ़ते भ्रष्टाचार के विरुद्ध मोदी सरकार का कड़ा रुख

Monday, May 22, 2017 - 11:19 PM (IST)

भारत में राजनेताओं द्वारा किए जा रहे भ्रष्टाचार के विरुद्ध कदम उठाए जाने लगे हैं। मैसर्ज लालू एंड परिवार, चिदम्बरम और उनके पुत्र कार्ति, कांग्रेस की सोनिया के दामाद वाड्रा तथा आम आदमी पार्टी के केजरीवाल के विरुद्ध भ्रष्टाचार के मामले एक-एक कर सामने आ रहे हैं। 

हमारे नेतागण इसे राजनीतिक विद्वेष, शरारतपूर्ण हमला और आधारहीन आरोप बता रहे हैं तथा जब वे इन मामलों में फंस गए हैं तो वे इन आरोपों से इंकार कर रहे हैं क्योंकि आरोपों से इंकार करना ही उनका एकमात्र बचाव रह गया है। इन राजनेताओं ने भयावह लूटपाट की है। पूर्व केन्द्रीय वित्त मंत्री और उनके पुत्र कार्ति का ही मामला लें। काॢत के विरुद्ध एयरसैल-मैक्सिस सौदे में सी.बी.आई. और प्रवर्तन निदेशालय की जांच चल रही है जिसमें कार्ति को कथित रूप से 2 लाख डालर की रिश्वत मिली। 

इसके अलावा उनके पिता के अधीन विदेशी निवेश संवद्र्धन बोर्ड में लंबित फाइलों के बारे में भी रिश्वत लेने के आरोप हैं क्योंकि इन कम्पनियों की फाइलें इस बोर्ड के पास लंबित थीं और इस संबंध में आई.एन.एक्स. मीडिया का मामला सामने आया है जिसमें उन्हें 3.5 करोड़ रुपए की रिश्वत दी गई है। उनके निवास सहित मुम्बई, चेन्नई, दिल्ली में 14 जगहों पर छापे मारे गए। सी.बी.आई. को अनेक अन्य संदिग्ध भूमि सौदों का भी पता लगा है। इस पर चिदम्बरम की स्वाभाविक प्रतिक्रिया थी, ‘‘सरकार मेरी आवाज दबाना चाहती है’’ और कांग्रेस की प्रतिक्रिया है ‘‘बदला भाजपा के डी.एन.ए. में है।’’ 

राजद के लालू विवादों में घिरे रहते हैं। फिलहाल उच्चतम न्यायालय ने चारा घोटाले में 5 मामलों में से एक मामले को फिर से खोल दिया है। किन्तु आयकर विभाग ने दिल्ली और उसके आसपास के क्षेत्रों में 22 जगहों पर छापे मारे तथा कथित रूप से उनकी एक हजार करोड़ रुपए से अधिक की बेनामी संपत्ति का पता चला है जिसमें उनकी बेटी मीसा के नाम 7 और 2 एकड़ के 2 फार्म हाऊस तथा अन्य बेटियों के नाम पॉश कालोनियों में आवास का पता चला है। उनका द्वारका में रायल ट्यूलिप होटल्स के मालिकों से भी संबंध है। उनके दो पुत्र बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी और कैबिनेट मंत्री तेजप्रताप पटना में एक भूखंड तथा एक मकान की संदिग्ध बिक्री से धनी बन गए हैं जो उन्हें एक व्यापारी ने उपहार में दिया है। उनका एक निर्माणाधीन मॉल भी विवादों में है जिस पर पर्यावरण मंत्रालय ने रोक लगा दी है। 

किन्तु लालू इन आरोपों को फासीवादी भाजपा द्वारा की गई बदले की कार्रवाई बता रहे हैं और कह रहे हैं कि इन आरोपों के बावजूद वह मजबूत होकर उभरेंगे। वह इस बात पर निर्भर कर रहे हैं कि बिहार में जद (यू)-राजद गठबंधन में उनका अच्छा प्रभाव है और नीतीश को गठबंधन तोडऩे की चुनौती दे रहे हैं। उनका मानना है कि उनकी छवि खराब करने के किसी भी प्रयास से उनके समर्थक उनके साथ और जुड़ेंगे। 

दिल्ली में उभरती ‘आप’ के आका मुख्यमंत्री केजरीवाल के विरुद्ध बर्खास्त किए गए दिल्ली के मंत्री कपिल मिश्रा ने आरोप लगाया है कि उन्होंने हवाला के जरिए पार्टी के लिए चंदा प्राप्त किया है तथा रिश्वत ली है और अपने रिश्तेदारों के लिए अनेक सौदे कराए। ‘आप’ ने इन आरोपों का खंडन किया है और मिश्रा को भाजपा का एजैंट बताया। इसी तरह कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद वाड्रा ने हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री हुड्डा के साथ मिलकर संदिग्ध भूमि सौदे किए हैं। बसपा की सुप्रीमो मायावती के भाई ने नोटबंदी के दौरान 104 करोड़ रुपए नकद जमा किए हैं। वस्तुत: वर्ष 2017 में हमारे नेतागणों के भ्रष्टाचार के मामले आए दिन सामने आते जा रहे हैं। 

प्रश्न उठता है कि एक दिन भी काम किए बिना किस प्रकार एक चरवाहे, एक वकील के लड़के, कृत्रिम ज्वैलरी के एक छोटे-से निर्यातक, एक पूर्व अध्यापक और सामाजिक कार्यकत्र्ता ने इतनी भारी संपत्ति जुटाई, कई एकड़ भूमि खरीदी और अनेक विलासितापूर्ण वस्तुएं खरीदीं। इस बात का पता लगाने के लिए किसी रॉकेट साइंस की आवश्यकता नहीं है कि यह पैसा कहां से आया। घोटालों के माध्यम  से यह पैसा जुटाया गया जिसके चलते लूट, रिश्वत और सौदे हमारी प्रणाली के आधार बन गए हैं जिसमें कुछ हजार करोड़ रुपए के घोटाले नैतिकता का चारा नहीं बन सकते। ये नेता इसे अपने कार्य का असूचीबद्ध लाभ बताते हैं। 

किन्तु लगता है अब ऐसा नहीं होगा। हमारे प्रधानमंत्री मोदी ने अपने 56 इंच के सीने को फैला दिया है और वह काले धन और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए कदम उठा रहे हैं। उन्होंने नेताओं को संदेश दिया है कि वे भ्रष्टाचार के लिए जिम्मेदारी से बच नहीं सकते हैं जिसके चलते भारत की जड़ें खोखली हो रही हैं तथा देश में ईमानदारी और मेहनत की बजाय धन-बल को बढ़ावा मिल रहा है। राजग सरकार के 3 साल के कार्यकाल में अब तक कोई घोटाला सामने नहीं आया है। किन्तु एक राजनेता के रूप में यह इतना आसान नहीं है और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना तब तक संभव नहीं है जब तक नमो इनके 3 मुख्य आधारों राजनेताओं, राजनीतिक दलों के वित्त पोषण और चुनावी सुधार के लिए कदम नहीं उठाते हैं।

जब कोई पार्टी केन्द्र या किसी राज्य में सत्ता में होती है तो उसे यकायक अधिक चंदा कैसे मिलने लग जाता है। क्या यह उद्योगपतियों, दलालों तथा बिचौलियों द्वारा लेन-देन का सौदा नहीं होता है? साथ ही राजनीतिक दल चुनावों पर भारी राशि खर्च करते हैं किन्तु चुनाव प्रचार चलाने का अर्थशास्त्र कभी पारदर्शी ढंग से सामने नहीं आता है क्योंकि चुनावों का उपयोग नेताओं, उनके भावी चुनावों तथा उनकी पार्टियों के लिए भारी धन संपत्ति जोडऩे के लिए किया जाता है। 

राजनीति की तरह चुनाव भी धंधा बन गए हैं और व्यापारियों की तरह राजनेता भी चुनाव के व्यापार में आ गए हैं तथा वे इस व्यापार में किसी तरह का नियंत्रण और विनियमन नहीं चाहते हैं। पार्टियों को उद्योगपतियों से पैसा मिलता है और सत्ता में आने के बाद उन्हें बड़े-बड़े ठेके दिए जाते हैं और उन ठेकों की राशि में रिश्वत भी शामिल होती है। उम्मीदवार रिश्वत लेकर काम कराकर चुनाव के लिए पैसे जुटाते हैं। वे एक वैंचर कैपटेलिस्ट की तरह काम करते हैं और यदि वे एक बार जीत जाते हैं तो कम से कम दस गुणा लाभ लेकर ही मानते हैं। 

इसीलिए विपक्ष में रहते हुए कोई भी पार्टी चुनाव सुधार के लिए कितना भी चिल्लाए किन्तु जब वह सत्ता में आती है तो इस दिशा में ईमानदारी से कदम नहीं उठाती है। इसलिए चुनाव सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए जाने चाहिएं जो 1991 से लटके पड़े हुए हैं। हर सरकार चुनाव सुधार का वायदा करती है किन्तु समय के साथ उन्हें भुला देती है। आज प्रत्येक उम्मीदवार चुनावों में 70 लाख रुपए की सीमा की बजाय 50 करोड़ से अधिक खर्च करता है और इस हिसाब से उसे लोकसभा की 545 सीटों के लिए प्रत्येक पार्टी से 27250 करोड़ रुपए चाहिएं और यदि प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में 10 उम्मीदवार हों तो यह राशि 272500 करोड़ रुपए बनती है। क्या हम यह उम्मीद करें कि यह राशि चैक द्वारा एकत्रित की जाएगी और यदि ऐसा होता है तो भारत की समानान्तर अर्थव्यवस्था का क्या होगा? 

चुनाव सुधार के मामले में हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि जिन लोगों के विरुद्ध आरोप पत्र दायर हो गए हैं वे चुनाव में खड़े न हों। वर्तमान में केवल उन्हीं लोगों को चुनाव में खड़े होने से रोका जाता है जिन पर दोष सिद्ध हो जाते हैं। हमारे देश में मुकद्दमों की धीमी गति पर्याप्त सबूतों के अभाव में जांच दलों पर राजनीतिक दबाव और निर्णय देने में न्यायालयों द्वारा लिए जाने वाले समय को देखते हुए बहुत कम लोग चुनाव लडऩे से अयोग्य घोषित किए जाते हैं। इसके अलावा चुनावों में धन, बल और बाहु बल का भी प्रयोग होता है। साथ ही राजनीतिक दलों का प्रशासन और स्वरूप नैतिकता तथा जनता के दबाव के आधार पर बनाया जाना चाहिए। राजनीतिक नैतिकता और जवाबदेही सुशासन और राजनीतिक स्थिरता के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। वास्तविक लोकतंत्र में झूठ और धोखाधड़ी के लिए कोई स्थान नहीं है। लोगों को सच्चाई जानने और दोषी लोगों को दंडित करने का हक है। 

इस संबंध में भारत इंडोनेशिया के भ्रष्टाचार उन्मूलन आयोग से सबक ले सकता है। इंडोनेशिया में इस आयोग का गठन राष्ट्रपति सुहार्तो के 30 वर्ष के भ्रष्टशासन के विरुद्ध जनता की प्रतिक्रिया के रूप में हुआ। 5 वर्ष के कार्यकाल में आयोग ने मंत्रियों, सांसदों, केन्द्रीय बैंक के अध्यक्ष, राज्यपाल, पुलिस अधिकारियों सहित 100 से अधिक उच्च अधिकारियों को दंडित किया है। भ्रष्टाचार के लिए गठित न्यायालयों में आयोग ने प्रत्येक मामले को जीता तथा उच्चतम न्यायालय ने इन न्यायालयों के निर्णयों को वैध ठहराया और इस प्रकार विश्व में इंडोनेशिया की छवि में सुधार हुआ। 

भारत में भी मोदी सरकार ने खुल्लमखुल्ला भ्रष्टाचार और राजनीतिक घूसखोरी को समाप्त करने के लिए एक शुरूआत कर दी है। समय आ गया है कि हमारे नेता पैसा हैं तो पावर है कि भुलावे की गहरी नींद से जागें क्योंकि अब भारत और इसकी जनता चुप नहीं बैठेगी। भारत में भी भ्रष्टाचार को समाप्त करने तथा जवाबदेही और ईमानदार तथा सत्यनिष्ठ शासन की स्थापना के लिए बिगुल बज गया है। अब देखें इसके क्या परिणाम सामने आते हैं।

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