सख्त कानून व जागरूकता जनसंख्या नियंत्रण का आधार
punjabkesari.in Monday, Aug 23, 2021 - 04:36 AM (IST)

भारत एक ऐसा राष्ट्र है, जहां प्राचीन समय से ही मानव जीवन को नियंत्रित व संतुलित रूप से एक सीमित तरीके से जीने की बात कही जाती रही है। सीमित संसाधनों का सीमित समय में व नियंत्रण में सदुपयोग विकास की एक नई गाथा रचता है। भारतीय समाज बहुत लम्बे समय से पूरे विश्व के लिए जीवन जीने की विधि के लिए मार्गदर्शक की भूमिका में रहा है। समाज व राष्ट्र वक्त के साथ चलते-चलते परिवर्तन धारा में प्रवाहित रहता है, जिस कारण समाज में परिवर्तन आना स्वाभाविक होता है, चाहे सकारात्मक हो या फिर नकारात्मक।
सामान्यत: किसी भी कार्य और चीज की जब अति हो जाए तो वह उसे अंत की ओर ही ले जाती है। स्पष्ट है, भारत में भी पिछले एक-दो दशकों से जनसंख्या में अति वृद्धि हुई है तथा आगे भी लगातार होती ही जा रही है।
हमारे भारतीय समाज में आज के वर्तमान समय में जो सब समस्याओं की जड़ प्रतीत हो रही है, वह कोई और नहीं बल्कि जनसंख्या विस्फोट है क्योंकि जितने लोग होंगे उतना ही उपभोग होगा, संसाधनों पर भी उतना ही बोझ बढ़ जाएगा, लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति संतोषजनक नहीं होगी।
जल हो, अन्न, पैट्रोल-डीजल, रोजगार या अन्य मानव सेवाएं, सब पर जनसंख्या वृद्धि से अत्यधिक भार पडऩा स्वाभाविक ही है, जिसके परिणामस्वरूप एक संकट की स्थिति का उद्भव हो जाता है जोकि लूट खसूट से प्रारम्भ होकर प्राकृतिक संतुलन में गिरावट, आतंक, कृषि योग्य भूमि की कमी, महंगाई, भ्रष्टाचार, मारा-मारी, रोजगार की कमी, संसाधनों पर बोझ तथा मानव निर्मित संकट के रूप में सामने आता है, जोकि प्रकृति के लिए भी हानिकारक है और समस्त मानव समाज के लिए भी। इसलिए सबके लिए महत्वपूर्ण है कि जनसंख्या को नियंत्रित करके एक सुखी समाज व राष्ट्र की कल्पना करें। समाज के सुखद भविष्य के लिए परिवार नियोजन वर्तमान समय की सबसे बड़ी आवश्यकता महसूस की जा रही है।
‘हम दो हमारे दो’ व ‘शेर का बच्चा एक ही अच्छा’ जैसी अनेक जागरूक धारणाएं समाज में लोगों द्वारा दी जाने लगी हैं लेकिन समाज का एक बड़ा वर्ग अभी भी जनसंख्या विस्फोट से अनजान है। इस प्रकार जानबूझकर अनजान बनना आने वाले समय में संकट का संकेत है, जिसके लिए सबको अभी से तैयार रहना होगा क्योंकि बाद में संभलने का मौका नहीं मिलने वाला।
गौरतलब है कि देश में आखिरी बार जनगणना 2011 में हुई थी। इस एक दशक में देश में बहुत कुछ बदल गया है। 2011 की जनगणना के अंतिम आंकड़ों के मुताबिक, भारत की आबादी 1.21 अरब यानी 121 करोड़ थी, जो अमरीका, इंडोनेशिया, ब्राजील, पाकिस्तान और बंगलादेश जैसे देशों की कुल आबादी से भी अधिक है। इन आंकड़ों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि वर्तमान समय में जनसंख्या वृद्धि दर कहां होगी।
जनसंख्या को नियंत्रित करना आज के दौर की सबसे बड़ी चुनौती है। बढ़ती हुई जनसंख्या देश की आॢथक स्थिति तो बिगाड़ती ही है, बेरोजगारी जैसी समस्याओं को भी जन्म देती है। इसके नियंत्रण के लिए सरकार को जागरूकता के साथ-साथ कानून भी बनाना होगा। हालांकि देशवासियों को कानून की बजाय स्वयं आगे आकर विवेक का इस्तेमाल कर जनसंख्या नियंत्रण में सहयोग करना चाहिए। यह भी देशभक्ति से कम नहीं। भारत में गरीबी, अशिक्षा और जातीय राजनीति की वजह से जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने का कोई फायदा नजर नहीं आता, लोगों को जागरूक और शिक्षित करके ही इस मसले का हल निकाला जा सकता है।
भारत के तकरीबन हर परिवार में लोगों की संतान के तौर पर पहली पसंद लड़का ही होता है, इस स्थिति में जनसंख्या नियंत्रण कानून से लड़कियों को गर्भ में ही मारने की घटनाएं बढऩे का खतरा बढ़ जाता है जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने से पहले सरकार को इसके दुष्प्रभावों को लेकर लोगों में व्यापक जागरूकता पैदा करने की आवश्यकता है। विशेषज्ञों की मानें तो जनसंख्या नियंत्रण कानून से जनसांख्यिकीय विकार पैदा होने का खतरा बढ़ सकता है।
हालांकि सरकार समय-समय पर परिवार नियोजन के विषय में अनेक जागरूकता शिविरों का आयोजन करती आई है लेकिन अब इस विषय पर देश में एक सख्त कानून की आवश्यकता भी महसूस की जाती है ताकि नैतिकता के साथ-साथ व्यक्ति कानून में रहकर अपना परिवार नियोजन करे तथा राष्ट्र व समाज के विकास में अपना श्रेष्ठ योगदान दे। लेकिन महत्वपूर्ण यह है कि यह योगदान तभी संभव हो सकता है जब राष्ट्र व समाज में जनसंख्या को नियंत्रित करने के विषय को सकारात्मकता के साथ अपनाकर इस पर गहनता व शोध के साथ कार्य किया जाए।
यह भारत है, यहां लोग तब तक नहीं मानते जब तक उन्हें सुविधाओं से वंचित न किया जाए। इसलिए जनसंख्या नियंत्रण कानून को सख्ती से अपनाकर तेजी से बढ़ती जनसंख्या पर सीमित समय में अंकुश लगाया जा सकता है। संभवत: अगर समाज को जनसंख्या वृद्धि के घातक परिणामों के बारे में जागरूक किया जाए तो वे स्वयं ही जनसंख्या नियंत्रण के कार्य में अपना विशेष योगदान अवश्य देंगे।-प्रो. मनोज डोगरा