प्रार्थना की ताकत

Tuesday, Jul 03, 2018 - 03:07 AM (IST)

जैसे ही मैंने मुम्बई में अपने घर से कुछ मील दूर एक दुखद विमान हादसे बारे सुना तो मेरे विचार एक अन्य हादसे की ओर चले गए जिसमें मेेरे फाइटर पायलट अंकल शामिल थे। वह भारतीय वायुसेना से एक बहुत वरिष्ठ अधिकारी के तौर पर सेवानिवृत्त हुए थे मगर वह हादसा तब हुआ था जब वह बहुत युवा थे। 

जब मैं 6 वर्ष का था तो मेरी दादी ने मुझे बताया था कि ‘‘उनके विमान ने आग पकड़ ली थी! मगर परियों ने उन्हें विमान से बाहर उठा लिया और सुरक्षित नीचे ले आईं।’’ ‘‘क्यों?’’ मैंने पूछा था, ‘‘बहुत से पायलट मारे जाते हैं, क्यों केवल उन्हीं को बचाया गया?’’ ‘‘क्योंकि मैं हमेशा उनके लिए प्रार्थना करती रहती थी।’’ मेरी दादी ने मुझे बताया। यह वही दादी थीं जिन्होंने मुझे सिखाया था कि जिस किसी चीज की भी मुझे जरूरत हो, उसके लिए प्रार्थना करो और परमात्मा वह चीज मुझे दे देंगे। ‘‘मगर बॉब हमेशा अपने दिमाग में यह तस्वीर रखना कि परमात्मा उस प्रार्थना का उत्तर दे रहे हैं।’’ 

कई साल बाद जब मैं 20 वर्ष का हो चुका था, मारुति-800 भारतीय सड़कों पर अपना बड़ा प्रभाव छोड़ रही थी। मैंने अपनी दादी के शब्दों को याद किया तथा अपने कांपते हाथों से एक पत्रिका से लाल रंग की चमकती मारुति-800 की एक तस्वीर काटी और अपनी मेज पर शीशे के नीचे रख ली। मैं उसे देखते हुए सारा दिन उसके लिए प्रार्थना करता रहता और 6 महीने बाद मेरी प्रार्थना सुन ली गई मगर अंतर सिर्फ यह था कि मुझे सफेद रंग पर संतोष करना पड़ा। 

ये केवल भौतिक वस्तुएं नहीं थीं, मैंने मन में तस्वीर बनाने तथा प्रार्थना की ताकत को हर कहीं इस्तेमाल किया। ऐसे भी दिन थे जब मेरी बेटियों में से कोई किसी न किसी दिन मुझे स्कूल से फोन करती थी, ‘‘डैड, मेरी टांगें बहुत दुख रही हैं, कृपया आकर मुझे ले जाएं।’’ मैं अपने घुटनों के बल बैठता और प्रार्थना करता कि मुझे मेरा बच्चा दुख में दिखाई न दे तथा फिर अपनी कार में सवार होता। मैं टाटा एस्टेट की लम्बी दूरी तय करके उसके स्कूल तक पहुंचता और पाता कि वह गेट पर खड़ी मुस्कुरा रही है, ‘‘डैडी, दर्द अचानक गायब हो गया है।’’ लोग बताते हैं कि 2000 वर्षों से भी अधिक समय पूर्व युवा जीसस बीमार लोगों का उपचार करते थे और जो लोग मर जाते थे उनमें जीवन डालते थे। ‘‘यदि आपको सरसों के दाने के बराबर भी जरा सा विश्वास है तो आप भी प्रार्थना करके अपने लिए कुछ मांग सकते हो।’’ 

लगभग दो दशक पूर्व एक अन्य युवा व्यक्ति, जो एक अनाथालय शुरू करना चाहता था, चंदे के लिए मेरे घर आता था और जब वह जाने लगता तो बोलता, ‘‘कृपया मेरे लिए प्रार्थना करें।’’ एक दिन मेरे सब्र का बांध टूट गया और मैंने उससे पूछा, ‘‘प्रार्थना किस लिए?’’ ‘‘मेरे बनने वाले अनाथालय के लिए’’ उसने कहा। ‘‘तुम इसे कितना बड़ा देखना चाहते हो?’’ मैंने पूछा। ‘‘मुझे नहीं पता।’’ वह धीरे से बोला। ‘‘जितना बड़ा तुम चाहते हो, उसकी एक तस्वीर मन में बनाओ और फिर उस तस्वीर के साथ परमात्मा की प्रार्थना करो और देखो कि यह कैसे सम्भव होता है।’’ मैंने उससे कहा, ‘‘तस्वीर बनाओ, प्रार्थना करो और सम्भव बनाओ।’’ उसने मेरी बात सुनी और अब उसके पास आनंद आश्रम नामक इमारतों का एक विशाल समूह है जिसमें 100 से अधिक लड़के रहते हैं और उसमें एक वृद्ध आश्रम भी है। कल का दुखद विमान हादसा एक अन्य हादसे की यादें ले आया और एक विश्वसनीय परमात्मा के लिए विचारों को और मजबूत कर दिया...!-राबर्ट क्लीमैंट्स

Pardeep

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