भारत के लिए चीन की ओर से ‘रणनीतिक सबक’

Wednesday, Nov 14, 2018 - 04:42 AM (IST)

पूर्व विदेश सचिव श्याम सरन ने एक दिलचस्प खुलासा किया है कि प्रधानमंत्रियों वाजपेयी तथा मनमोहन सिंह की विदेश नीतियां मुख्य रूप से सामान्य बुनियादी नियमों पर आधारित थीं। इनमें से सर्वाधिक उल्लेखनीय रणनीतिक स्वायत्तता के लिए हमारी स्थायी उदासीनता रही है, जो भारत को विश्व में उसका सही स्थान दिला सकती थी। 

‘वसुधैव कुुटुम्बकम’ के साथ हमारे भावनात्मक जुड़ाव के बावजूद वर्तमान में वैश्वीकरण का रुझान नहीं है और दुनिया राष्ट्रवाद की पुनरावृत्ति की ओर तेजी से अग्रसर हो रही है। इस रुझान को ब्रेग्जिट ने ङ्क्षचगारी दी और ट्रम्प के ‘अमरीका फस्र्ट’ ने इसे और प्रोत्साहित किया है, जो वायरल हो गया दिखाई देता है। हमारे लिए विशेष तौर पर सर्वाधिक चिंताजनक ‘चीन का आक्रामक उत्थान’ है, जो डेंग के ‘अपनी क्षमताओं को छुपाओ तथा अपने समय की प्रतीक्षा करो’ दृष्टिकोण से अलग होने का निर्णय करता दिखाई देता है। 

स्वाभाविक है कि यह प्रश्र हमें परेशान करता है कि क्या और भी डोकलाम होंगे? चिंता का एक अन्य विषय चीन द्वारा आॢथक आधिपत्य के एक हथियार के तौर पर ‘संचार’ का इस्तेमाल करना जिसके लिए वह बी.आर.आई. और हमारे संदर्भ में सी.पी.ई.सी. के माध्यम से गति पकड़ रहा है, जिसमें उसकी सहायता चीनी सहायता प्राप्त ग्वादर, हम्बनटोटा तथा क्यौकप्यू बंदरगाहें कर रही हैं। गलियारों के युद्ध में डरने की कोई जरूरत नहीं क्योंकि लाभकारी परियोजनाओं को तो ध्वस्त होना ही है तथा छद्म बस्तीवाद को कुछ समय बाद स्थानीय लोगों के विरोध का सामना करना पड़ेगा। तुर्की से ईरान तथा अफगानिस्तान तक फैला मध्य-पूर्व सत्ता के खेल का मैदान बना रहा है, जिसमें पाकिस्तान ने कश्मीर तक अपने पांव पसारने का बार-बार मगर असफल प्रयास किया है। 

यह दलदल 3 प्रमुख समस्याओं का कारण बनती है-इस्लामिक आतंकवाद, तेल की बढ़ती कीमतें तथा न्यूक्लियर बम सहित शिया-सुन्नी सर्वोच्चता के लिए प्रतिस्पर्धा की ललक। जहां चीन रणनीतिक सीढ़ी चढ़ रहा है, वहीं अमरीका व्यापार युद्धों तथा हिन्द-प्रशांत के पुनर्संतुलन की वैकल्पिक रणनीतिक धुरी के माध्यम से ड्रैगन को छकाते हुए शीर्ष पर पहुंचना चाहता है। सार्क के कोमा में जाने तथा चीन द्वारा पाकिस्तान को नई चालें इस्तेमाल करने के लिए प्रोत्साहित करने से भारत खुद को कुछ हद तक अपने पड़ोस के साथ तालमेल में नहीं पाता। यहां तक कि इन अशांत समयों (आर्थिक तथा रणनीतिक दोनों) में भारत प्रगति करते हुए अपने सही रास्ते पर है यद्यपि कुछ धीमी गति से। आंतरिक तौर पर यहां यह भावना पाई जाती है कि हमारी नीतियां, जिनकी अवधारणा काफी भारी-भरकम है, को सर्वोत्तम तरीके से संचालित नहीं किया जा रहा। बाहरी तौर पर हिन्द-प्रशांत तथा अफगानिस्तान में अगुवा बनने के लिए विश्व की नजरें हम पर हैं। 

डेंग के दौर का दृष्टिकोण अमल करने के लिए एक अच्छा उदाहरण
अपनी कार्य योजना का इस्तेमाल करने का हमें अधिकार है, फिर भी डेंग के दौर का चीनी दृष्टिकोण अमल करने के लिए एक अच्छा उदाहरण है। चीन पर अपनी अंत:क्रिया में मैंने जिद्दी तथा उपेक्षापूर्ण रुझान देखे जिनमें संदेह से लेकर चीनी वस्तुओं के बहिष्कार जैसे खोखले शब्दाडम्बर शामिल थे और कुछ मामलों में बेहूदा खोखली डींगें भी मारी गईं कि ‘हम ड्रैगन को काबू कर लेंगे’। 

यही समय है कि हमें एहसास होना चाहिए कि चीनी 10 फुट लम्बे नहीं हैं लेकिन वे नेतृत्व करते हैं। हमारे लिए यही सही होगा कि उनकी सफलता की कहानी के आधार पर हम अपनी सोच को सुधारें। दरअसल चीनी, जापानी तथा कोरियन जैसे प्राचीन मॉडल हमारी अपनी नीतियों में और अधिक मूल्य शामिल करने में हमारी मदद कर सकते हैं, जो बस्तीवादी विरासत के एक हिस्से के तौर पर पश्चिमी प्रणाली के ‘क्लोन्ड वर्शन’ हैं। इस समय पहली तथा सबसे महत्वपूर्ण जरूरत अपना ध्यान आर्थिक गतिविधियों में तेजी पर केन्द्रित करना है। भ्रष्टाचार तथा भाई-भतीजावाद को जड़ से समाप्त करने के चीनी अभियान को सुधारे हुए नरम संस्करण के तौर पर यहां दोहराने की जरूरत है। 

एक ऊंचा तथा स्पष्ट संदेश होना चाहिए कि ‘लूटो और भागो’ को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा तथा आर्थिक भगौड़ों की ‘घर वापसी’ को किसी भी कीमत पर सुनिश्चित बनाया जाएगा। ऐसी व्यापक रिपोर्र्टें हैं कि चीन ने महज 3 दशकों में 7 करोड़ लोगों को गरीबी की रेखा से ऊपर उठाया है। हमें ‘अन्त्योदय’ तथा न्यायसंगत विकास को अपने आर्थिक विकास के इंजन बनाने की जरूरत है। वर्तमान में भारत को अपनी सैन्य ताकत को बुनियादी सच ‘वीर भोग्य वसुंधरा’ के मुताबिक बनाना होगा, जैसा कि माओ ने भी स्पष्ट कहा था कि ‘ताकत बंदूक की नली से पैदा होती है’। रूपांतरण, आधुनिकीकरण तथा खोखलापन हमारी सबसे बड़ी सुरक्षा चिंताएं बने रहे हैं, क्या हम उनके लिए बजट तथा समझ पा सकते हैं? शांगरी-ला डायलॉग में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा स्पष्ट रूप से दर्शाए गए समेकित दृष्टिकोण ने बेशक कई पश्चिमी नेताओं को निराश किया मगर यह व्यावहारिक तथा हमारे हितों के लिए उपयुक्त है।-लै. जन. के.जे. सिंह

Pardeep

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