नेतागिरी के लिए सरकारी खजाने का दुरुपयोग बंद हो

punjabkesari.in Saturday, Feb 26, 2022 - 05:16 AM (IST)

दिल्ली में हजारों आंगनबाड़ी कार्यकत्र्ता और हैल्परों के वेतन में 22 फीसदी बढ़ौतरी के बावजूद, केजरीवाल सरकार उन्हें न्यूनतम वेतन का संवैधानिक हक नहीं दे पा रही है। दूसरी तरफ कर्नाटक में भाजपा की सरकार ने विधायकों की सैलरी में एकमुश्त 60 फीसदी की बढ़ौतरी कर दी। सदन को कागज रहित बनाने के उद्देश्य से राजस्थान की कांग्रेस सरकार ने सभी 200 विधायकों को आईफोन-13 बांट दिए। विवाद के बाद बीजेपी विधायकों ने मोबाइल फोन वापस कर दिए।

युवाओं के पास रोजगार नहीं है लेकिन चुनावी फायदे के लिए राजस्थान में सरकारी कर्मचारियों के लिए पैंशन की गारंटी वाली पुरानी स्कीम आ रही है। मंत्रियों के निजी स्टाफ को आजीवन पैंशन की स्कीम के खुलासे के बाद केरल का विकास मॉडल भी डगमगा रहा है। सरकारी अधिकारियों को 20 साल की नौकरी के बाद वी.आर.एस. और अधूरी पैंशन मिलती है। विधायक और सांसद 5 साल या कम समय में ही आजीवन पैंशन के हकदार हो जाते हैं। लेकिन केरल एक कदम आगे है, जहां मंत्रियों के निजी स्टाफ को दो साल की नौकरी के बाद ही पैंशन का हक मिल जाता है। इसकी वजह से सरकारी खजाने पर सालाना अतिरिक्त वित्तीय बोझ पड़ता है। 

सी.ए.जी. की अनुशंसा के बावजूद अन्य राज्य सरकारों ने निजी स्टाफ की न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता का निर्धारण नहीं किया। आम जनता को भले ही नौकरी न मिले, लेकिन केरल के हर मंत्री के पास दो दर्जन से ज्यादा निजी स्टाफ की नियुक्ति का मनमाना अधिकार है। इस अनोखे बिजनैस मॉडल में हर 2 साल में निजी स्टाफ की अदला बदली से सभी को पैंशन का लाभ दिलाया जाता है। उसके बाद उन वर्कर्स से नेताओं के घर और पार्टी कार्यालय में काम कराया जाता है। कंट्रीब्यूटरी पैंशन स्कीम के तहत सरकारी कर्मचारी की मृत्यु के बाद कोई फैमिली पैंशन नहीं है, लेकिन केरल में निजी स्टाफ की फैमिली को पैंशन मिलती है। राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने इस पर जब आपत्ति जाहिर की तो 28 साल पहले कांग्रेस सरकार के समय बनाए गए नियमों का हवाला देते हुए, मामले को सियासी मोड़ दे दिया गया। 

पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी और जगदीप धनकड़, तमिलनाडु में एम.के. स्टालिन और आर्यन रवि, महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे और भगत सिंह कोश्यारी, छतीसगढ़ में भूपेश सिंह बघेल और अनुसूईया उइके के बीच तनातनी की स्टोरी आती रहती हैं। केरल की पिनाराई विजयन सरकार ने भी बहती गंगा में हाथ धोते हुए संघीय व्यवस्था और गवर्नर की भूमिका पर सवाल खड़े कर दिए। उन्होंने केंद्र्र सरकार को पत्र लिखकर कहा है कि संविधान के अनुच्छेद-155 के तहत राज्यपालों की नियुक्ति के पहले राज्य सरकारों से परामर्श करना चाहिए? उनके अनुसार राज्य विधानसभा में प्रस्ताव पारित होने पर राज्यपालों को वापस बुलाने का नियम बनना चाहिए।

राज्यपाल के बारे में गवर्नमैंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935 के कानून के अनुसार भारत के संविधान में व्यवस्था बनी थी। फैडरल सिस्टम में राज्यपालों की जरूरत है या नहीं, इस पर संविधान सभा में लंबी बहस के बाद संवैधानिक व्यवस्था स्थापित हो चुकी है। सुप्रीम कोर्ट ने 1979 के फैसले में कहा था कि राज्यपाल स्वतंत्र संवैधानिक संस्थान है जिसके ऊपर केंद्र सरकार का प्रत्यक्ष नियंत्रण नहीं होना चाहिए। संविधान और सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर केंद्र सरकार ईमानदारी से अमल करे तो राज्यों के साथ बेवजह के अनेक विवाद कम हो जाएंगे। 

आजादी के बाद केरल में कम्युनिस्टों ने पहली गैर-कांग्रेस सरकार बनाई और अभी वहां पर देश की इकलौती कम्युनिस्ट सरकार है। इंदिरा गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद, केरल की कम्युनिस्ट सरकार को बर्खास्त करके पहली बार किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने से अनुच्छेद 356 के दुरुपयोग की शुरूआत हुई थी। लेकिन केरल के गवर्नर आरिफ मोहम्मद खान का ट्रैक रिकॉर्ड भी नायाब और प्रगतिशील रहा है। उन्होंने शाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट का फैसला नहीं मानने पर राजीव गांधी की सरकार से इस्तीफा दे दिया था। उसके बाद तीन तलाक और अब हिजाब पर अपनी बेबाक राय की वजह से वे कट्टरपंथियों के निशाने पर रहते हैं। संविधान के तहत सरकारी खजाने की लूट नहीं हो सकती, जिस पर गवर्नर ने संविधान के दायरे में अपनी बात रखी है। इसलिए पैंशन मामले को अन्य राज्यों में चल रहे गवर्नर विवादों से जोड़ना ठीक नहीं होगा। 

कम्युनिस्ट पार्टी के विधायक और सांसद अपनी सैलरी पार्टी कार्यों के लिए दान करें, यह अच्छी परिपाटी है। लेकिन सरकारी पैंशन पाने वाले पर्सनल स्टाफ को नेताओं के घर और पार्टी ऑफिस में काम करने की इजाजत कैसे मिल सकती है? मंत्रियों के निजी स्टाफ को पैंशन देने का केरल मॉडल कानून, संविधान और नैतिकता तीनों ही लिहाज से गलत है। निजी स्टाफ को पैंशन सरकारी नियमों के माध्यम से दी जा रही है, जबकि इसके लिए विधानसभा से कानून बनना चाहिए। संविधान के अनुसार राज्यपाल को किसी भी स्टाफ की पैंशन रोकने का कोई अधिकार नहीं है। लेकिन गवर्नर की लिखित आपत्ति के बाद तीन दशक पहले शुरू हुई इस गलत परिपाटी को खत्म करने के लिए केरल सरकार को पहल करनी ही चाहिए। यूक्रेन संकट से भारत की सामरिक और आर्थिक चुनौतियां बढ़ गई हैं। इसलिए अब नेतागिरी को चमकाने के लिए राज्यों में सरकारी खजाने की लूट खत्म होनी चाहिए।-विराग गुप्ता(एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट)
 


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