छड़ी एक मुफ्त का सहारा
punjabkesari.in Saturday, Aug 31, 2024 - 05:05 AM (IST)
दिन जब न्यूयार्क में बर्फबारी हो रही थी तो मैंने बाहर एक छोटी लड़की को देखा। वह मेरे सामने फुटपाथ पर चल रही थी, और मैं दंग रह गया! वह ऐसी चाल से चल रही थी कि बाकी सभी लोग पीछे रह गए, और इस शहर में जहां समय एक बड़ा कारक है, वह वास्तव में बहुत कुछ हासिल कर रही थी, क्योंकि स्थिर कदमों के साथ, वह बाकी लोगों से आगे निकल गई। लेकिन जो चीज उसे आगे बढऩे में मदद कर रही थी, वह थी एक छड़ी। उन आधुनिक छडिय़ों में से एक जिसका उपयोग आप ट्रैकिंग या चढ़ाई के लिए करते हैं।
वह एक उद्देश्य के साथ चल रही थी, अच्छी तरह से सोची-समझी छड़ी ने उसकी मदद की। मुझे यकीन नहीं है कि उसे इसकी जरूरत थी। जैसे कि लंगड़ाने का उसमें कोई संकेत नहीं था, हालांकि वह किसी चोट से गुजरी हो सकती थी, जिसमें उसे सहारा चाहिए था, लेकिन एक निश्चित लक्ष्य और दृढ़ संकल्प के साथ वह आगे बढ़ गई और उसने दूसरों को बहुत पीछे छोड़ दिया। और जब मैंने उसे चलते हुए देखा, तो मुझे कई लोगों के बारे में याद आया, जिनके लिए चलने की छड़ी की वकालत की जाती है।
‘मां छड़ी का उपयोग करो, ताकि तुम फिर से न गिरो!’ लेकिन दृढ़ संकल्प और वास्तव में सरासर मूर्खता के साथ, वे छड़ी को अस्वीकार कर देते हैं और झूठे गर्व के साथ आगे बढ़ते हैं, और देखते हैं कि लोग उन्हें देखते हैं और कहते हैं, ‘वाह! क्या दृढ़ता है!’ लेकिन यह केवल बूढ़े और कमजोर लोगों के बारे में नहीं है, हम में से कई लोग हैं, जो तब भी समर्थन से इंकार करते हैं जब हमें छड़ी की आवश्यकता होती है। ‘एक टीम बनाओ और उन्हें आपकी मदद करने दो!’
आपका बॉस कहता है,‘‘नहीं, मुझे अकेले काम करना पसंद है!’’ हम दी गई छड़ी को एक तरफ रख देते हैं, और एक प्रोजैक्ट के माध्यम से लडख़ड़ाते हैं, रेंगते हैं, गिरते हैं, चोट खाते हैं और फिनिशिंग लाइन तक पहुंचते हैं, अगर पहुंचते भी हैं, तो टूटे हुए और लगभग पस्त दिखाई देते हैं।कुछ साल पहले, रोटरी के अध्यक्ष के रूप में मैंने एक ‘वॉकिंग स्टिक’ प्रोजैक्ट शुरू किया था और उन लोगों के लिए वॉकिंग स्टिक खरीदने के लिए पैसे इक_ा किए थे जो झुग्गी-झोंपडिय़ों में रहने वाले लोगों के घरों में गरीब और बूढ़े थे।
एक सामाजिक कार्यकत्र्ता ने मुझे बताया था कि ये बूढ़े लोग दिन भर अपनी पीठ के बल बैठे रहते हैं क्योंकि उनके पास चलने के लिए कोई सहारा नहीं होता। हमने उस दिन बहुत-सी छडिय़ां बांटीं और मुझे यकीन था कि अगले दिन मैं उनमें से बहुतों को पार्क में देखूंगा, जो अपनी नई-नई मिली आजादी का आनंद ले रहे होंगे। बहुत से लोग नहीं आए क्योंकि वे छड़ी के साथ नहीं दिखना चाहते थे। मैं उनके घर नहीं गया, लेकिन मुझे पता है कि वे छडिय़ां कहां पड़ी हैं। अन्य फैंके गए सामान के नीचे अप्रयुक्त, लोगों की नजरों से दूर रखी गई हैं। ‘‘हम लोगों को छड़ी देखने की अनुमति नहीं दे सकते, है न?’’
और फिर मैंने लड़की की दूर की छवि को फिर से देखा, जो आगे बढ़ रही थी, गति अवरोध को तोड़ रही थी, और मैं सॢदयों की ठंड में ज़ोर से हंसा, ‘‘हम कितने मूर्ख हैं कि अपनी छडिय़ों का उपयोग नहीं करते और हमें मुफ्त सहारा दिया गया है!’’ सहारा, जैसे हमारे बच्चों या दोस्तों से मदद, या इससे भी महत्वपूर्ण बात, प्रार्थना नामक एक दिव्य सहारा..! -दूर की कौड़ी, राबर्ट क्लीमैंट्स