अपनी जड़ों से जुड़े रहना अस्तित्व के लिए आवश्यक

Tuesday, Aug 07, 2018 - 03:55 AM (IST)

कांग्रेस पार्टी, जो चर्च द्वारा समर्थित और कम्युनिस्टों के अभारतीय विचारों से प्रभावित है, के कुछ नेता जब अपने क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थों के लिए भारत की अस्मिता पर ही आघात करने वाले वक्तव्य देते हैं, तो आश्चर्य कम, लेकिन पीड़ा अधिक होती है। ये नेता उच्च विद्या प्राप्त हैं। ऐसे में इनकी बातों से पूर्व राष्ट्रपति डा. एस. राधाकृष्णन आयोग की भारतीय शिक्षा पर की गई उस टिप्पणी का स्मरण हो जाता है, जो आयोग ने 1949 में लिखी थी। 

आधुनिक शिक्षा के अभारतीय चरित्र पर डा. एस. राधाकृष्णन ने लिखा है-‘‘एक शताब्दी से अधिक वर्षों से इस देश में चली अपनी शिक्षा प्रणाली की एक प्रमुख और गंभीर शिकायत यह है कि उसने भारत के भूतकाल को अनदेखा किया है और भारत के छात्रों को अपने सांस्कृतिक ज्ञान से वंचित रखा है। इस कारण कुछ लोगों में यह भावना निर्मित हुई है कि हमारी जड़ों का कोई अता-पता नहीं है और उससे भी खराब बात यह मानना है कि हमारी जड़ें हमें ऐसी दुनिया में सीमित कर देती हैं जिसका वर्तमान से कोई संबंध नहीं है।’’ अभी कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने ऐसा ही एक वक्तव्य दिया कि यदि भाजपा फिर से शासन में आती है तो भारत ‘हिंदू पाकिस्तान’ बन जाएगा। 

साम्यवाद जैसे अभारतीय विचारों के कारण उनके प्रभाव के परिणामस्वरूप यह अभारतीयकरण इतना अधिक गहरा हो चुका है कि इसने हमारी सोच ही नहीं, हमारी शब्दावली को भी प्रभावित कर दिया है। हिंदू पाकिस्तान, हिंदू तालिबान, हिंदू आतंकवाद ये सब इसी पूर्णत: अभारतीय सोच की अभिव्यक्ति हैं। इस वक्तव्य की निरर्थकता समझने से पहले यह समझना आवश्यक है कि भारत और हिंदुत्व क्या हैं। अभी हाल ही में नागपुर में भारत के बारे में भारत के पूर्व राष्ट्रपति डा. प्रणव मुखर्जी ने कहा, ‘‘पश्चिम की राज्य आधारित राष्ट्र की अवधारणा से भारत की राष्ट्र की अवधारणा एकदम भिन्न है। पश्चिम में जो राष्ट्र विकसित हुए उनका आधार एक विशिष्ट भूमि, एक विशिष्ट भाषा, एक विशिष्ट रिलीजन और समान शत्रु रहा है, जबकि भारत की राष्ट्रीयता का आधार ‘वसुधैव कुटुम्बकम और सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे संतु निरामया’ का वैश्विक चिंतन रहा है। 

भारत ने सदैव समूचे विश्व को एक परिवार के रूप में देखा है और भारत सभी के सुख और निरामयता की कामना करता रहा है। भारत की यह पहचान मानव समूहों के संगम, उनके आत्मसात्करण और सह-अस्तित्व की लंबी प्रक्रिया से निकल कर बनी है। हम सहिष्णुता से शक्ति पाते हैं, बहुलता का स्वागत करते हैं और विविधता का गुणगान करते हैं। यह शताब्दियों से हमारे सामूहिक चित्त और हमारे मानस का अविभाज्य हिस्सा है। यही हमारी राष्ट्रीय पहचान बनी है।’’ भारत के इस मूलत: उदार, सर्वसमावेशी, सहिष्णु, वैश्विक चिंतन का आधार भारत की अध्यात्म आधारित एकात्म और सर्वांगीण जीवन दृष्टि है। यह बात सारी दुनिया जानती है। डा. राधाकृष्णन ने इसी जीवन दृष्टि को हिंदू जीवन दृष्टि कहा है। 

गुरुदेव रबीन्द्रनाथ ठाकुर ने भी अपने स्वदेशी समाज नामक निबंध में यही बात कही है। वह कहते हैं, ‘‘अनेकता में एकता देखना और विविधता में एक्य प्रस्थापित करना ही भारत का अंतर्निहित धर्म है। भारत विविधता को विरोध नहीं मानता और पराए को दुश्मन नहीं समझता। इसीलिए किसी का त्याग या विध्वंस किए बिना वह अपनी विशाल व्यवस्था में सभी का समावेश करने का मानस रखता है। इसी कारण वह सभी मार्गों को स्वीकार करता है और अपनी-अपनी परिधि में सभी के महत्व को स्वीकार करता है। भारत के इस गुण के कारण ही हम किसी समाज को अपना विरोधी मानकर भयभीत नहीं होंगे। प्रत्येक मतभिन्नता हमें अपना विस्तार करने का अवसर देगी। हिंदू, बौद्ध, मुस्लिम और ईसाई परस्पर लड़ कर भारत में मरेंगे नहीं, यहां वे एक सामंजस्य ही प्राप्त करेंगे। यह सामंजस्य अहिंदू नहीं होगा अपितु वह विशिष्ट भाव से हिंदू होगा। उसके बाह्य अंश चाहे जितने विदेशी हों, पर उनकी अंतर्रात्मा भारत की ही होगी।’’ 

कांग्रेसी नेता भूल जाते हैं कि भारत की इस उदार, सर्वसमावेशी, एकात्म और सर्वांगीण आध्यात्मिक परम्परा को नकार कर ही पाकिस्तान का निर्माण हुआ है। यह शिक्षा द्वारा हो रहे अभारतीयकरण का और साम्यवाद जैसे अभारतीय विचारों से प्रभावित होने का ही परिणाम है। भारत हिंदू रहेगा तो भी पाकिस्तान कतई नहीं होगा। हिंदू को नकारने से ही तो पाकिस्तान का जन्म हुआ है। भारत की एकता, स्वाधीनता, सार्वभौमिकता और अखंडता में भारत का अस्तित्व है और हिंदुत्व के नाम से जानी जाने वाली भारत की अध्यात्म आधारित सांस्कृतिक और वैचारिक विरासत भारत की अस्मिता है। आधुनिक और उच्च शिक्षित होने के बावजूद (या उसके कारण) कांग्रेस के ये नेता अपने क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थ के लिए अपने भारत की अस्मिता को ही नकार रहे हैं। यह घोर आश्चर्य की बात है। क्या वे यह नहीं जानते हैं कि अस्मिता को नकारने के परिणामस्वरूप भारत का अस्तित्व संकट में आ सकता है? भारत का विभाजन इस अस्मिता को नकारने के कारण ही हुआ था। 

वास्तव में जिस उदार, सहिष्णु, वैविध्य का गुणगान करने वाली 5000 वर्ष से भी अधिक पुरानी संस्कृति की बात प्रणव दा ने की और जिस विरासत को डा. राधाकृष्णन और रबीन्द्रनाथ ठाकुर ने हिंदू जीवन दृष्टि कहा, उस विरासत का वारिस तो पाकिस्तान भी है। उस विरासत से अपना नाता काट कर ही वह पाकिस्तान बना है। वह उस विरासत से यदि अपने आपको जोड़ देता है तो अपनी मुस्लिम उपासना पद्धति को बिना छोड़े वह हिंदू बन सकता है। एम.सी. छागला, डा. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम और पाकिस्तान में जन्मे कनाडा निवासी तारिक फतेह जैसे अनेक लोग मुस्लिम होते हुए भी खुद को इस विरासत से जोड़ते हैं। 

इस तरह मुसलमान रहते हुए भी यदि पाकिस्तान इस उदार और सहिष्णु विरासत को स्वीकारता है तो वह हिंदू पाकिस्तान बनेगा अर्थात भारत ही बनेगा। अपना राजकीय अस्तित्व अलग बनाए रखकर भी वह यह काम कर सकता है। यह भारतीय सोच है। नेपाल अलग राज्य होने के बाद भी भारत की इस सांस्कृतिक विरासत से खुद को जोड़ता है। इसलिए भारत का पड़ोसी होने के बावजूद भारत के साथ उसे कोई समस्या नहीं आती है। इन गहरी सांस्कृतिक जड़ों के कारण ही भारत की पहचान बनी है। इन जड़ों से जुड़े रहना मानो अपनी अस्मिता से जुड़े रहना, अपने अस्तित्व के लिए आवश्यक है। 

डाक्टर प्रणव दा ने इसीलिए 5000 वर्ष से बनी भारत की पहचान की बात की, यह बहुत महत्वपूर्ण है। हम गहराई तक अपनी जड़ों से जुड़ेंगे तो ही दुनिया में अपनी पहचान बनाकर टिक सकेंगे। सुप्रसिद्ध कवि प्रसून जोशी की एक कविता में कहा गया है : उखड़े-उखड़े क्यों हो वृक्ष, सूख जाओगे। जितनी गहरी जड़ें तुम्हारी, उतने ही तुम हरियाओगे।-डा. मनमोहन वैद्य सह सरकार्यवाहक, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

Pardeep

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