बाबाओं के सत्संग में भगदड़, कटु सच्चाई

punjabkesari.in Wednesday, Jul 10, 2024 - 05:20 AM (IST)

भारत में भीड़ और कतारें हमेशा जीवन के लिए एक अभिशाप रही हैं। अच्छे समय में भी कतारें चुनौती रही हैं और खराब समय में भी ये जीवन लेने वाली भगदड़ बन गई हैं। 2005 में महाराष्ट्र के एक कस्बे में भगदड़ में 265 भक्तों की मौत हुई और सैंकड़ों घायल हुए। उसके बाद हिमाचल प्रदेश में नैना देवी मंदिर में भगदड़ में 145 लोगों की मौत हुई। 

2008 में राजस्थान के चामुण्डा नगर मंदिर में भगदड़ में 250 लोगों की मौत हुई। 2013 में मध्य प्रदेश के रत्नागढ़ मंदिर में 115 लोगों की मौत हुई। 2015 में उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में कुंभ मेले में भगदड़ में 63 लोगों की मौत हुई। 2022 में जम्मू में वैष्णो देवी मंदिर में भगदड़ में 80 लोगों की मौत हुई और अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश के हाथरस में भगदड़ में 121 लोगों ने जान गंवा दी। इस तरह 20 वर्ष की अवधि में ऐसी बड़ी भगदड़ों में दो हजार से अधिक लोगों की मौत हुई। प्रश्न उठता है कि क्या भीड़ के जीवन का कोई महत्व है? 

हाथरस त्रासदी आध्यात्मिक गुरु भोले बाबा उर्फ सूरजपाल उर्फ नारायण साकार हरि के सत्संग में भक्तों के साथ हुई, जहां पर सत्संग से जाते हुए भोले बाबा की कार से उड़ी धूल के कारण कई लोग भगदड़ की चपेट में आ गए और लाशों का ढेर लग गया। अब तक इस मामले में 6 आयोजकों को गिरफ्तार किया गया है, जबकि बाबा अब तक फरार है। यह एक प्रकार से ‘अब पछताए होत क्या, जब चिडिय़ा चुग गई खेत’ वाला मामला बन गया है। प्रथम सूचना रिपोर्ट के अनुसार इस सत्संग के लिए 80 हजार लोगों की अनुमति दी गई थी, किंतु ढाई लाख से अधिक लोग उपस्थित थे और इसके प्रबंधन के लिए केवल 70 पुलिस कर्मियों की तैनाती की गई थी। भीड़ पर नजर रखने तथा भीड़ प्रबंधन के लिए कोई डिजिटल निगरानी नहीं की गई। आयोजन स्थन पर प्रबंधन और सुविधाएं अस्त-व्यस्त थीं, एंबुलैंस की कोई व्यवस्था नहीं थी। न ही कोई चिकित्सा केन्द्र था। 

रविवार को फिर ऐसी भगदड़ की पुनरावृत्ति हुई, जब ओडिशा के पुरी में भगवान जगन्नाथ के रथ को खींचने के प्रयास में 300 से अधिक लोग घायल हुए। इस दौरान राष्ट्रपति मुर्मू, भाजपा के मुख्यमंत्री, बीजद के पटनायक को वहां से बाहर निकाला गया। कोलकाता में लाखों लोगों की भीड़ के कारण भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा प्रभावित हुई। विडंबना देखिए कि धार्मिक समारोहों में इस तरह की अव्यवस्था धर्म द्वारा आध्यात्मिक रूप से उपलब्ध कराई गई सुरक्षा, एकांतता और सुविधा की विरोधाभासी है। 

प्रश्न उठता है कि इतनी बड़ी भीड़ एकत्र होने की अनुमति कैसे दी जाती है? ऐसे स्थानों पर चिकित्सा सुविधा क्यों नहीं उपलब्ध कराई जाती? जब हाथरस से बाबा भाग गया तो पुलिस कहां थी? उसके विरुद्ध प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज क्यों नहीं की गई? उसके महलनुमा आश्रम की तलाशी लेने के बाद भी वह नहीं मिला। फिर भी उसने यह संदेश भेजा कि यह भगदड़ उसके विरुद्ध एक षड्यंत्र है। प्रशासन ने मुआवजा और जांच की घोषणा की, जैसा कि प्रत्येक दुर्घटना के बाद किया जाता है। अधिकतर राजनेता बाबा के प्रति आकॢषत हैं और उनके पक्के चेले हैं। अनेक नेताओं ने हाथरस का दौरा किया और हाई वोल्टेज दोषारोपण किया। कुछ बाबा को निर्दोष बताते रहे। 

कांग्रेस के राहुल गांधी और सपा के अखिलेश यादव ने भाजपा की सरकार को दोषी बताया और मृतकों के परिवारों को अधिक मुआवजा देने की मांग की। उन्होंने केवल यह मांग की कि दोषी व्यक्तियों के विरुद्ध ठोस कार्रवाई की जाए। भाजपा ने विपक्ष पर आरोप लगाया कि वह शवों पर राजनीति कर रहा है और इस घटना की न्यायिक जांच का आदेश दिया, अर्थात इस मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। भगदड़ के कारण हुई प्रत्येक दुर्घटना के बाद ऐसा ही किया जाता है। 

इस रवैये का कारण यह भी है कि लगभग सभी बाबाओं के राजनीतिक संबंध होते हैं और उनका राजनीतिक दलों से लेन-देन चलता रहता है। उनके माध्यम से नेता अपनी राजनीति को धर्म से जोड़ते हैं, जिसके चलते उनके चेले भ्रमित हो जाते हैं कि वे पहले राजनेता हैं या बाबा हैं क्योंकि वे बाबा के सामने हमेशा अपने अंधविश्वास के कारण झुकते हैं और राजनेता उनसे चुनावी संरक्षण लेते हैं। इसका एक उदाहरण हरियाणा के डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत राम रहीम हैं, जो अपनी दो शिष्याओं के बलात्कार और एक पत्रकार की हत्या के मामले में दोषी साबित हुए हैं, किंतु उन्हें 2017 में जेल भेजने के बाद अब तक 9 बार और पिछले 2 वर्षों में राज्य में चुनाव से ठीक पूर्व 7 बार पैरोल मिल चुकी है। 

प्रश्न उठता है कि ऐसे स्वयंभू बाबाओं में ऐसा क्या है कि लोग उनके अंधभक्त बन जाते हैं और यह विश्वास करते हैं कि उनके पास जादुई शक्ति है जो उनकी बीमारियों का इलाज कर देगी, बुरी आत्माओं को भगा देगी, उनकी स्थिति में सुधार कर देगी और वे तंत्र-मंत्र से उनकी समस्याओं का समाधान कर देंगे। चूंकि आस्था में तर्क का कोई स्थान नहीं है, इसलिए उनकी अंधभक्ति जारी रहती है। चमत्कार करने की कला ने बाबाओं के व्यवसाय को सभी गांवों, शहरों और महानगरों तक पहुंचा दिया है, जहां पर रेडियो और टी.वी. चैनलों को उनके उपदेशों और सत्संगों को प्रसारित करने के लिए पैसा दिया जाता है। इस खेल में शोषण भी होता है। ऐसे बाबाओं और स्वामियों को उनके भक्तों द्वारा कभी भी जवाबदेह नहीं माना जाता और इसलिए आधुनिक बाबा यौन दुराचार, और प्रसिद्धि के प्रति लालायित होते हैं और कुछ लोग अपना राजनीतिक प्रभाव भी स्थापित करते हैं और उद्योगपतियों से भी संबंध बनाते हैं। 

इससे पूर्व एक विवादास्पद बाबा तांत्रिक चंद्रास्वामी हुए, जो पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के कार्यकाल के दौरान सत्ता के प्रभावशाली दलाल थे और पूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर, एलिजाबेथ टेलर और अंडरवल्र्ड डॉन दाऊद इब्राहीम के आध्यात्मिक गुरु भी थे। राजीव गांधी की हत्या के मामले में उनका नाम आने के बाद लोगों का उनसे मोह भंग हुआ। 1996 में लंदन के एक व्यापारी को धोखा देने के मामले में उनको गिरफ्तार किया गया और उसी वर्ष मई में उनकी मृत्यु हो गई। भगवान सत्य साई बाबा के अनुयायियों में अनेक राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और शक्तिशाली लोग रहे हैं। जब 2011 में उनकी मृत्यु हुई तो उनकी संपत्ति 40 हजार करोड़ रुपए से अधिक थी। यह सच है कि उन्होंने अनेक मल्टीस्पैशियलिटी अस्पतालों का निर्माण किया, जहां पर नि:शुल्क उपचार किया जाता था और स्कूल खोले, किंतु उनका जीवन भी गंभीर विवादों से जुड़ा रहा। उन पर फर्जी चमत्कार करने, यौन दुराचार तथा यहां तक कि बाल यौन दुराचार के भी आरोप लगे। 

राजनेता बाबाओं के चेले होते हैं और इसका कारण केवल यह नहीं कि वे बाबाओं में विश्वास करते हैं, अपितु इसलिए भी कि बाबा उन्हें अपने बंधुआ भक्तों के रूप में एक समॢपत वोट बैंक उपलब्ध कराते हैं और इस तरह से वह सत्ता का केन्द्र बन जाते हैं। ऐसे सत्संगों, समारोहों में भीड़ में भगदड़ से निपटने के लिए भी सुस्थापित उपाय हैं। प्रशासन को ऐसे सत्संगों के स्थल के लेआऊट पर ध्यान देना  और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रवेश और निकास किसी भी तरह बाधित न हों। ऐसे स्थानों पर कंट्रोल रूम हों, भीड़ प्रबंधन की लाइव निगरानी हो और स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध हों। 

हमारे नेताओं को ऐसे बाबाओं के समक्ष बिल्कुल नहीं झुकना चाहिए, जो सरकार को मूक दर्शक बना देते हैं, जिसके कारण ऐसे बाबा स्वयं को कानून से ऊपर समझने लगते हैं। इस बात की संभावना नहीं है कि ये बाबा भी अपने प्रभाव को कम करेंगे। लोगों को भी यह समझना चाहिए कि वे फर्जी बाबाओं की पूजा कर रहे हैं जबकि वे भी आम लोगों की तरह क्षणभंगुर हैं। अंतत: यह बात महत्वपूर्ण नहीं है कि बाबा कितना खराब था, अपितु यह बात महत्वपूर्ण है कि उसके भक्तों की पसंद कितनी बुरी थी, जिसके चलते हजारों लोग काल के ग्रास बन गए।-पूनम आई. कौशिश
 


सबसे ज्यादा पढ़े गए