स्टालिन का हिन्दी विरोध मगर भ्रष्टाचार पर चुप्पी
punjabkesari.in Tuesday, Mar 11, 2025 - 05:40 AM (IST)

अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर कर अंग्रेजी को आधिकारिक भाषा घोषित कर दिया। इसके बावजूद कि पूरे अमरीका में ज्यादातर अंग्रेजी ही बोली जाती है। ट्रम्प के अनुसार, यह आदेश राष्ट्रीय एकता, सांझा संस्कृति और सरकारी कार्यों में समरसता लाने में मदद करेगा। अमरीका जैसी सुपर पावर की एक आधिकारिक भाषा हो सकती है पर भारत में ऐसा करना आसान नहीं है। तमिलनाडु की स्टालिन सरकार सिर्फ क्षुद्र स्वार्थों और वोट बैंक की खातिर हिन्दी का विरोध कर रही है, जबकि देश के ज्यादातर राज्यों में हिन्दी न सिर्फ आधिकारिक भाषा है बल्कि सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा भी है। मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन को देश को खोखला करने वाले भ्रष्टाचार के कैंसर की परवाह नहीं, पर देश की एकता, समरसता और अखंडता के लिए जरूरी हिन्दी भाषा की केंद्र सरकार द्वारा लागू की गई राष्ट्रीय नीति का जम कर विरोध कर रहे हैं।
स्टालिन जिस तरह की राजनीति कर रहे हैं उससे लगता है कि तमिलनाडु भारत का हिस्सा नहीं होकर कोई अलग देश है। उन्होंने कहा कि सरकार राष्ट्रीय शिक्षा नीति को राज्य में लागू नहीं करेगी, चाहे केंद्र सरकार इसके बदले 10,000 करोड़ रुपए की आर्थिक सहायता ही क्यों न दे। स्टालिन ने यह भी आरोप लगाया कि केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने समग्र शिक्षा अभियान के तहत मिलने वाली 2,000 करोड़ रुपए की राशि रोकने की धमकी दी थी। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर इसकी शिकायत भी की। केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने स्टालिन के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि तमिलनाडु सरकार राजनीतिक लाभ के लिए हिंदी थोपने का फर्जी नैरेटिव बना रही है।
गौरतलब है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति का जितना विरोध तमिलनाडु की स्टालिन सरकार कर रही है, उतना देश के किसी अन्य राज्य ने नहीं किया। यहां तक कि बात-बात पर केंद्र की भाजपा सरकार से टकराने को तैयार रहने वाली पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी इस मुद्दे पर मुखर नहीं दिखीं। विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग ने 1948-49 में डाक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन की अध्यक्षता वाले आयोग ने हिंदी को केंद्र सरकार के कामकाज की भाषा बनाने की सिफारिश की थी। आयोग की सिफारिश थी कि सरकार के प्रशासनिक, शैक्षणिक और सांस्कृतिक कामकाज अंग्रेजी में किए जाएं। इस आयोग ने कहा था कि प्रदेशों का सरकारी कामकाज क्षेत्रीय भाषाओं में हो।राधाकृष्णन आयोग की यह सिफारिश ही आगे चलकर स्कूली शिक्षा के लिए त्रिभाषा फार्मूला के नाम से मशहूर हुई। इस सिफारिश को राष्ट्रीय शिक्षा आयोग (कोठारी आयोग) ने 1964-66 में स्वीकार किया। इंदिरा गांधी की सरकार की ओर से पारित राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1968 में इसे शामिल किया गया।
सरकार ने प्रस्तावित किया कि माध्यमिक स्तर तक ङ्क्षहदी भाषी राज्यों में छात्र हिंदी और अंग्रेजी के अलावा दक्षिणी भाषाओं में से एक और गैर-हिंदी भाषी राज्यों में क्षेत्रीय भाषा और अंग्रेजी के साथ हिंदी सीखें। राजीव गांधी सरकार में 1986 में बनी राष्ट्रीय शिक्षा नीति और नरेंद्र मोदी सरकार में 2020 में बनी राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भी इसी फार्मूले को रखा गया। लेकिन इसके क्रियान्वयन में लचीलापन लाया गया। पिछली राष्ट्रीय शिक्षा नीति के विपरीत 2020 में बनी नीति में हिंदी का कोई उल्लेख नहीं है। इसमें कहा गया है कि बच्चों द्वारा सीखी जाने वाली तीन भाषाएं राज्यों, क्षेत्रों और निश्चित रूप से स्वयं छात्रों की पसंद होंगी, बशर्ते कि तीन भाषाओं में से कम से कम 2 भारत की मूल भाषाएं हों। यह पहला मौका नहीं है जब तमिलनाडु में हिंदी विरोध की आड़ में राजनीतिक की जा रही है। हिन्दी का विरोध करना तमिलनाडु में वोट बैंक साधने का साधन बन चुका है। स्टालिन की पार्टी द्रविड़ मुनेत्र कडग़म (डी.एम.के.) ही नहीं इससे पहले सत्ता में रहे अन्य क्षेत्रीय दल भी वोटों की खातिर ङ्क्षहदी विरोध के मुद्दे् को भुनाते रहे हैं। तमिलनाडु में हिंदी विरोधी आंदोलनों का इतिहास करीब सौ साल पुराना है।
मौजूदा स्टालिन सरकार हिन्दी का जिस कदर विरोध कर रही है, भ्रष्टाचार के मुद्दों पर कभी उतनी मुखर नहीं रही है। स्टालिन सरकार के कई मंत्री भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे हैं। उच्च शिक्षा मंत्री के, पोनमुडी और उनकी पत्नी पी. विसलाची को आय से अधिक संपत्ति मामले में दोषी ठहराया गया है। आश्चर्य की बात यह है कि मंत्रियों पर लगे संगीन आरोपों के बावजूद मुख्यमंत्री स्टालिन ने एक बार भी भ्रष्टाचार के खिलाफ बयान नहीं दिया, जबकि ङ्क्षहदी का विरोध खूब कर रहे हैं। यह निश्चित है कि ऐसे विरोध देश की एकता-अखंडता के लिए नुकसानदायक हैं। राजनीतिक दल जब तक अपने निहित क्षुद्र स्वार्थों से ऊपर उठकर देश हित के बारे में नहीं सोचेंगे तब तक भाषा और दूसरे ऐसे भावानात्मक मुद्दे् वोट बटोरने का जरिया बने रहेंगे।-योगेन्द्र योगी