चीन से बर्बाद होने के बाद श्रीलंका की चाय नहीं पहुंची ईरान, भारत ने की मदद

punjabkesari.in Friday, Apr 15, 2022 - 06:09 AM (IST)

श्रीलंका आर्थिक तौर पर इस समय बदहाली में है। इसके पीछे चीन का साथ और श्रीलंका के नेताओं के गलत फैसले जिम्मेदार हैं। जिस देश में आॢथक बदहाली के चलते बच्चों की स्कूल की परीक्षाएं तक न हो पा रही हों क्योंकि देश में इतना भी डीजल नहीं बचा है कि परीक्षा की कॉपी और प्रश्नपत्रों को केन्द्र से स्कूलों तक भेजा जा सके, उस देश के निर्यात का क्या हाल होगा, इसके बारे में सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। 

श्रीलंका चाय के निर्यात के लिए जाना जाता है। विश्व में चीन के बाद श्रीलंका दूसरा सबसे बड़ा चाय निर्यातक है। ईरान में श्रीलंका की ऑर्थोडॉक्स क्वालिटी की चाय का निर्यात किया जाता है। ऑर्थोडॉक्स चाय ऐसी चाय होती है जिसमें दानेदार चाय से ज्यादा चाय पौधे की पत्तियां शामिल होती हैं। यह चाय ईरानी लोग बड़ शौक से पीते हैं। ईरान के चाय बाजार का बड़ा हिस्सा श्रीलंका कवर करता था और वहां के बाजारों में 70 प्रतिशत चाय श्रीलंका की होती थी। वहीं भारत सिर्फ 10 प्रतिशत चाय बाजार को कवर कर पाता था। भारत में हर वर्ष 12 करोड़ किलोग्राम ऑर्थोडॉक्स चाय का उत्पादन होता है, वहीं अगर श्रीलंका की बात करें तो वहां पर 30 करोड़ किलोग्राम ऑर्थोडॉक्स चाय का उत्पादन होता है। 

अगर भारत से इस विशेष चाय के निर्यात की बात करें तो प्रति वर्ष  12 करोड़ किलोग्राम का सिर्फ 20 प्रतिशत हिस्सा ही ईरान को निर्यात होता है। वहीं दूसरी तरफ श्रीलंका अपने कुल ऑर्थोडॉक्स चाय उत्पादन का 95 प्रतिशत हिस्सा ईरान को निर्यात करता है। लेकिन इन दिनों श्रीलंका में तेल की कमी के कारण श्रीलंका में बिजली उत्पादन में बहुत कमी आ गई है, जिसका असर चाय उत्पादन पर भी पड़ा है। इस समय श्रीलंका के चाय उत्पादन में 20 प्रतिशत की गिरावट आ चुकी है। 

श्रीलंका की खस्ता आर्थिक हालत के कारण ईरान में ऑर्थोडॉक्स चाय की मांग और उसकी सप्लाई में बड़ा अंतर देखने को मिल रहा है। ईरान में पैदा हुए इस मांग और आपूर्ति के बड़े अंतर को भरने के लिए भारतीय चाय उद्योग जुट गया है। कुछ दशक पहले ईरान के चाय बाजार में भारतीय चाय की हिस्सेदारी 70 प्रतिशत थी, लेकिन ईरान और श्रीलंका के बीच हुए वस्तु विनिमय अनुबंध ने ईरानी बाजार में चाय के समीकरण को पूरी तरह बदल कर रख दिया था। ईरान-श्रीलंका अनुबंध के बाद ईरान के चाय बाजार के बड़े हिस्से पर श्रीलंका की चाय का कब्जा हो गया है। इसमें ईरान पर लगे अमरीकी प्रतिबंधों का भी असर है, जिससे भारतीय चाय की हिस्सेदारी महज 10 प्रतिशत के अंदर सिमट कर रह गई है। 

चीन ने अपने आर्थिक लाभ के लिए श्रीलंका की कमर आर्थिक रूप से तोड़ दी है, जिससे श्रीलंका को उबरने में बहुत समय लगने वाला है। लेकिन इस बार चीनी हस्तक्षेप ने भारतीय चाय निर्यातकों की परोक्ष रूप से मदद कर दी। एक समय वो भी था जब चीन-श्रीलंका गठबंधन के कारण भारत की सुरक्षा को खतरा पैदा हो गया था, क्योंकि श्रीलंका ने चीन को अपने कुछ महत्वपूर्ण बंदरगाहों पर चीन की आवाजाही पर पूरी तरह से छूट दे दी थी। इसके बाद श्रीलंका मङ्क्षहदा राजपक्षे के दौर में चीन की गोद में जाकर बैठ गया था। 

जैसा कि चीन हमेशा किसी भी देश को लूटने से पहले वहां की कुछ परियोजनाओं को जोर-शोर से शुरू करेगा, उसमें कुछ पैसों का निवेश करेगा, इसी बीच उस देश के राजनीतिज्ञों को खरीदने के लिए उन्हें भारी रिश्वत भी देता है। दरअसल चीन की घरेलू राजनीति में भयंकर भ्रष्टाचार फैला हआ है। इससे वहां का व्यापारी जगत भी अछूता नहीं है। 

चीन अपने देश में फैले भ्रष्टाचार की तर्ज पर अपने लक्षित देशों के राजनीतिज्ञों को खरीदने के बाद उस देश की आर्थिक रफ्तार को पूरी तरह अपने कब्जे में ले लेता है। इसके बाद चीन का असल खेल शुरू होता है। जहां पर वो उस देश के उत्पादन, आयात और निर्यात को अपने कब्जे में लेकर लंबे समय तक उस देश का आर्थिक शोषण करता है, जब तक कि वह देश आॢथक तौर पर कंगाल न हो जाए। यही हाल चीन ने श्रीलंका का किया। 

श्रीलंका की आर्थिक दुर्दशा के चलते जहां वर्ष 2020 में भारत ने ईरान को 5 लाख 90 हजार किलोग्राम ऑर्थोडॉक्स चाय का निर्यात किया था, वहीं जनवरी 2022 में यह बढ़ कर 27 लाख किलोग्राम हो गया। इस पूरे चाय व्यापार में सबसे आश्चर्य की बात यह है कि भारतीय ऑर्थोडॉक्स चाय के मूल्य की तुलना में अंतर्राष्ट्रीय बाजार में श्रीलंका की चाय बहुत महंगी बिकती है और यह चाय ईरान समेत पश्चिमी यूरोप, पूर्वी यूरोप, अमरीका, कनाडा और ऑस्ट्रलिया में बहुत ज्यादा बिकती है। वैश्विक बाजार में श्रीलंका ऑर्थोडॉक्स चाय की 47 प्रतिशत मांग पूरी करता है। श्रीलंका का आर्थिक संकट अभी तुरंत रास्ते पर आने वाला नहीं है, ऐसे में भारत ईरान में अपना खोया चाय का बाजार वापस हासिल कर सकता है। 

चीन ने पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में अपना तंत्रजाल बिछाया हुआ है। श्रीलंका को बर्बाद करने से पहले चीन ने मालदीव्स में भारत के खिलाफ माहौल बनाया और मालदीव्स की अर्थव्यवस्था को बर्बाद कर उसे अपने कब्जे में लेने की कोशिश की लेकिन वहां पर चीन का दांव उलटा पड़ा और चीन को मालदीव्स से अपना बोरिया-बिस्तर समेट कर भागना पड़ा। लेकिन चीन अपनी घिनौनी हरकतों से बाज नहीं आया और उसने भारत के उत्तरी पड़ोसी नेपाल में भारत के खिलाफ जहर फैलाना शुरू किया लेकिन भारत ने नेपाल में भी चीन की दाल नहीं गलने दी और उसे नेपाल से भी भागना पड़ा। 

लेकिन चीन ने इसके बाद श्रीलंका की तरफ अपने पैर फैलाने शुरू किए लेकिन यहां से चीन ने जाते-जाते आर्थिक बदहाली के बीज बो दिए, जिससे श्रीलंका की आर्थिक हालत बदतर हो गई। वहीं दूसरी तरफ ईरान के ऊपर लगे प्रतिबंध धीरे-धीरे कम किए जा रहे हैं और ऐसे माहौल में भारत ईरान में अपना निर्यात बढ़ा रहा है। आने वाले समय में भारत ईरान के रास्ते मध्य-एशिया तक अपना व्यापार बढ़ा सकता है।


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News