चीन के हाथों लुटकर खुलीं श्रीलंका की आंखें

punjabkesari.in Wednesday, Jun 01, 2022 - 06:42 AM (IST)

समय के साथ श्रीलंका को अक्ल आ गई है, अब वह चीन के झांसे में नहीं आने वाला। लेकिन श्रीलंका को यह अक्ल अपनी हम्बनटोटा बंदरगाह गंवाने के बाद आई। श्रीलंका को चीन ने इतना बड़ा झटका दिया कि पूरा देश बदहाली की कगार पर पहुंच गया है। श्रीलंका में लोग इस समय दाने-दाने को मोहताज हो गए हैं। वहां हर वस्तु की कमी हो गई है, पूरी अर्थव्यवस्था बैठ गई है।

वैसे 5 वर्ष पहले श्रीलंका की अर्थव्यवस्था 8.1 फीसदी की गति से दौड़ रही थी। इसके बाद चीन की सक्रिय तौर पर श्रीलंका में एंट्री हुई, जो अपनी महत्वाकांक्षी बी.आर.आई. परियोजना लेकर श्रीलंका आया था। लेकिन चीन की कुटिल नीति भारत को घेरने की थी, श्रीलंका में चीन अपना सैन्य बेस बनाकर भारत पर नजर रखना चाहता था। लेकिन इसके अलावा चीन श्रीलंका की जमीन, अर्थव्यवस्था, व्यापारिक बंदरगाह, सब कुछ अपने लिए इस्तेमाल करना चाहता था और अपने इस निहित स्वार्थ के लिए उसने राजपक्षे बंधुओं का सहारा लिया।

जानकारों की मानें तो चीन ने महिंदा राजपक्षे और उनकी पार्टी के कुछ नेताओं को भारी मात्रा में रिश्वत देकर खरीद लिया और इसकी एवज में अपने मन मुताबिक पट्टे, व्यापार और दूसरी मुनाफे वाली वस्तुओं पर अपना कब्जा जमा लिया। पर्यटन, उद्योग, खनन, जहाजरानी, समुद्री संसाधन सब कुछ चीन अपनी झोली में डालता चला गया। 

इसके बाद रही-सही कसर कोरोना और गोटाबाया राजपक्षे की श्रीलंका को दुनिया का पहला जैविक खाद वाला देश बनाने की जिद के आगे श्रीलंका की अर्थव्यवस्था ढहती चली गई। जैविक खाद के चलते श्रीलंका ने अपने देश में रासायनिक खाद के आयात पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया था। यहां पर भी चीन ने श्रीलंका को लूटने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अपने देश में बनी घटिया स्तर की जैविक खाद श्रीलंका को भेजने लगा। इससे श्रीलंका में फसल बर्बाद हो गई। उसका चीन से बेतहाशा कर्ज लेना और उसे न चुका पाने की हालत में आ जाना एक और कील थी, जिसने ताबूत को और मजबूत बना दिया। 

चीन में कभी अपना कर्ज माफ करने की कोई परंपरा नहीं रही। वह अपना कर्ज किसी न किसी तरह से वसूल कर लेता है। कर्ज के बदले में चीन ने श्रीलंका की हम्बनटोटा बंदरगाह को 99 वर्ष के लिए अपने पास गिरवी रख लिया। कोलम्बो में भी चीन अपनी एक बड़ी कॉलोनी बना रहा है, जिसे वह अपने प्रशासन में रखेगा। 

चीन की चाल को या तो श्रीलंकाई शासक वर्ग समझने में असमर्थ रहा या फिर उसने जानते हुए भी अपनी आंखें मूंद लीं। आज श्रीलंका की जो हालत है उससे सारे श्रीलंकाई नागरिक राजपक्षे बंधुओं, शासक वर्ग और चीन से खासा नाराज हैं। सत्ता में थोड़े फेर-बदल के बाद जब चीन की तरफ से अनाज के पैकेट श्रीलंकाई लोगों में बांटे जा रहे थे, तब श्रीलंका ने कहा कि उसे चीन से कोई एहसान नहीं चाहिए और उसने अपने नागरिकों को चीन से कोई भी मदद लेने से मना कर दिया। श्रीलंका के विदेश मंत्रालय ने अपने कर्मचारियों से साफ और खुले शब्दों में कह दिया है कि वे चीन से मिलने वाले अनाज के पैकेट और दूसरे सामान न लें और चीन के विदेश मंत्रालय से इस बात को लेकर अपना विरोध भी जताया। 

यह घटना बताती है कि श्रीलंका की आंखें अब जाकर खुली हैं और उन्हें पता चला है कि चीन ने जो भी निवेश उनके देश में किया, वह सिर्फ अपने फायदे के लिए किया न कि श्रीलंका की तरक्की के लिए। जब श्रीलंका चीन के करीब जा रहा था, तब भारत ने उसे ऐसा करने से मना किया था, लेकिन वह नहीं माना और अपना बड़ा नुक्सान करवा लिया। श्रीलंका किसी और मानवीय संकट में अब न फंसे, इसके लिए भारत मदद को तैयार है और एक बड़ी योजना बना रहा है, जिससे श्रीलंका की हालत में जल्दी सुधार किया जा सके। इस मुद्दे पर दोनों देशों की सरकारें एकमत हैं। अपने देश में खेती को पटरी पर वापस लाने के लिए श्रीलंका ने भारत से यूरिया की मांग की है। 

श्रीलंका ने भारत के एक्सिम बैंक से 20 करोड़ डॉलर के कम अवधि के ऋण के जरिए भारत से अधिक ईंधन लेने को मंजूरी दी है। भारत ने श्रीलंका के लिए जनवरी 2022 से दोनों देशों की मुद्रा में विनिमय को मंजूूरी दी है, आवश्यक वस्तुओं के लिए क्रैडिट लाइन और श्रीलंका को अब किसी नकदी के संकट में फंसने से बचाने के लिए 3 अरब डॉलर की मदद की घोषणा की है। हालांकि भारत पूरी कोशिश कर रहा है कि श्रीलंका को आॢथक संकट से बाहर निकाला जाए, लेकिन हालात बहुत पेचीदा हैं। चीन ने श्रीलंका को इस कदर लूटा है कि उसके लिए वर्तमान आर्थिक संकट से जल्दी बाहर निकलना आसान नहीं होगा।


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