खेलकूद को उद्योग का दर्जा मिले

punjabkesari.in Saturday, Jul 29, 2023 - 04:54 AM (IST)

राष्ट्रीय खेलकूद दिवस सन् 2012 से हर साल 29 अगस्त को मनाने की परंपरा है जिसे इस दिन कुछ सरकारी कार्यक्रम कर निभाया जाता है। ऐसे ही एक समारोह में सन् 2019 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने फिट इंडिया की शुरूआत एक आंदोलन के रूप में की। मन में यही रहा होगा कि देश के सभी नागरिक अर्थात बच्चों से लेकर अधेड़ और बुजुर्ग तक शारीरिक रूप से स्वस्थ रहें। स्कूलों में पहले एक पीरियड इस बात का हुआ करता था कि सभी बच्चों को शारीरिक व्यायाम कराया जाए। 

पी.टी.आई. की कमान में ड्रिल, कसरत और खेलकूद के उपलब्ध साधनों से विद्यार्थियों की सेहत बनाए रखने पर जोर दिया जाता था। इस पीरियड में जाना अनिवार्य था और न जाने का कोई बहाना नहीं चलता था। आज हालत इतनी बदली है कि बच्चे मोबाइल पर खेलते हुए बड़े हो रहे हैं। ए.सी.सी. और एन.सी.सी. में भर्ती होने से सैनिक जैसी भावना और उसी के अनुरूप अनुशासन सिखाया जाता था। यह सब अब हवा हवाई हो गया है।

खेल संगठनों का भ्रष्टाचार : खेलों और उससे जुड़े व्यवसाय जिसमें खिलाडिय़ों को चुनने और विभिन्न स्पर्धाओं में भाग लेने से लेकर खेल सामग्री बनाने के कारखाने स्थापित करने तक को एक उद्योग का दर्जा दिए जाने की बात इसलिए कही जा रही है क्योंकि यही एक रास्ता है जिससे खेलों से जुड़ी समस्याओं का हल कुछ हद तक निकल सकता है। कारण यह भी है कि खेल संगठनों में व्याप्त व्यापक भ्रष्टाचार के किस्से रोज ही सुनाई देते हैं। 

खेलों पर ध्यान देने की बात 50 के दशक में एक संस्था बनाने से शुरू हुई जिसे पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की पहल से आकार मिला। उसके बाद से लेकर आज तक हर खेल का एक संगठन बनाने की होड़ लग गई। आज देश में सैंकड़ों की तादाद में यह चल रहे हैं और इनका एक ही मकसद होता है कि किस प्रकार वाहवाही लूटी जाए, पैसा कमाने के आसान रास्ते निकाले जाएं और नेता बनकर सरकारी हलकों में पैठ बनाई जाए। जितने भी संगठन हैं उन सब पर धन के दुरुपयोग और यौन शोषण तक के आरोप लगते रहे हैं। एशियाई खेलों से लेकर कॉमनवैल्थ खेलों तक पर जिनके आयोजन देश में होते रहे हैं उन सभी पर रिश्वत, घूसखोरी और अनैतिकता की कालिख लग चुकी है। 

सट्टेबाजी के किस्से तो हर किसी की जुबान पर हैं। यहां तक हुआ है कि अंतर्राष्ट्रीय आेलंपिक संघ ने भारतीय ओलंपिक संघ पर भ्रष्टाचार के कारण प्रतिबंध लगा दिया और हमारे खिलाडिय़ों को वैकल्पिक मार्ग से स्पर्धाओं में भाग लेना पड़ा। इन संगठनों के कत्र्ताधत्र्ता जेल की शोभा बढ़ाते रहे हैं और उनके पास अकूत संपत्ति होने के सबूत जगजाहिर हैं। 

खिलाडिय़ों की मजबूरी : खेल और खिलाडिय़ों की दुर्दशा का एक बड़ा कारण यह है कि चाहे जितने भी पदक जीत लाएं, घर का खर्चा चलाने के लिए नौकरी करनी ही पड़ेगी वह भी इस तोहमत के साथ कि मैडल की बदौलत सरकारी नौकरी मिल गई वरना तुम्हारी इस पद पर बैठने की योग्यता ही कहां है! और इस तरह वह खिलाड़ी हमेशा दबाव में रहता है। ध्यान दीजिए कि अगर यह मजबूरी न होती तो क्या खिलाडिय़ों के साथ किसी तरह का अन्याय हो पाता और अपराधी मूंछों पर ताव देता घूमता रहता ? सरकार ने खेल का मैदान बनाने के लिए 50 लाख की रकम तय की लेकिन कितने बने इसका कोई आंकड़ा नहीं है। अव्वल तो इस राशि में बेसिक सुविधाओं वाला खेल परिसर बनना बहुत मुश्किल है और अगर बन भी गया तो वह बहुत दिनों तक टिकेगा नहीं क्योंकि भ्रष्टाचार के चलते उसमें लगने वाली सामग्री का केवल कुछ समय तक ही चल पाना और ढह जाना तय है।

उद्योग का दर्जा क्यों? : अगर उद्योग का दर्जा मिलता है तो खेल परिसर बनाओ, मालिक बनकर उसे चलाओ और फिर जब उसमें लगी रकम निकल आए तो उसे नि:शुल्क आधार पर चलाने के लिए सरकार को सौंप दो। इससे देश भर में एक मजबूत इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा हो जाएगा और खेलों की तरक्की तथा खिलाडिय़ों का कल्याण भी होगा। खेलों से जुड़ी सामग्री का निर्माण करने का बहुत बड़ा व्यवसाय है जिसमें स्थानीय खपत के साथ निर्यात की अपूर्व संभावनाएं हैं। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चीन का इस पर बहुत ज्यादा अधिकार है क्योंकि वह सस्ता सामान बनाकर बेचने में माहिर है। चीन से मुकाबले के लिए उद्योग के रूप में तो प्रतियोगिता की जा सकती है लेकिन एकल व्यापार के रूप में उसके आगे ठहरना संभव नहीं है। 

खेल संस्कृति पनपनी चाहिए : हमारे जितने भी पुराने और नए खेल हैं उन सबका विकास हो, उनके लिए धन और साधन जुटाए जाएं। इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि देहाती इलाकों में पले-बढ़े युवा सभी खेलों में कीर्तिमान स्थापित कर रहे हैं और वह भी बिना किसी या मामूली सुविधा के, उनका उत्साह और साहस ही उनकी सबसे बड़ी पूंजी है। यदि उन्हें भरपूर सुविधाएं मिलें तो वे विश्व में सबसे अधिक पदक जीतने वाले खिलाडिय़ों के बीच शान से सिर उठाकर खड़े हो सकते हैं। अभी तो हम गिनती के खेलों और मुट्ठी भर खिलाडिय़ों के भरोसे अपने मुंह मियां मिट्ठू बन जाते हैं। यदि खेल और खिलाडिय़ों की उन्नति को वास्तविक धरातल पर लाना है तो उसके लिए उसे सरकारी लालफीताशाही से मुक्त करना होगा। ऐसी नीतियां बनानी होंगी कि यह क्षेत्र सभी के लिए आकर्षण का केंद्र बने और यह विश्वास हो कि खेलों में भी करियर बन सकता है। अभी तो क्रिकेट को छोड़कर बाकी सब खेलों को शौकिया आधार पर ही खेलने की परंपरा है।-पूरन चंद सरीन
 


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