निर्णय लेने में ‘तेजी’ हमेशा सही नहीं होती

Monday, Aug 26, 2019 - 02:15 AM (IST)

इस हफ्ते कुछ ऐसी घटनाएं हुईं जिनसे उन लोगों को हैरानी हुई होगी जो यह मान रहे थे कि आॢथक मोर्चे पर भारत अच्छी स्थिति मेें है। स्पष्ट तौर पर अर्थव्यवस्था के कई क्षेत्रों में संकट की स्थिति है और नीति आयोग के चेयरमैन का कहना है कि 2019 में भारत जिन समस्याओं का सामना कर रहा है वे अभूतपूर्व हैं। कारोबार के लिए पैसे की उपलब्धता पिछले 70 वर्षों में निम्रतम स्तर पर है। इसका कारण सिस्टम में विश्वास की कमी है। 

इस वर्ष की पहली तिमाही में जी.डी.पी. विकास दर 6 प्रतिशत से नीचे पहुंच गई है जो दूसरी तिमाही में और कम होने की संभावना है। तब वित्त मंत्री ने कुछ उपायों की घोषणा की जिनमें कुछ माह पहले लिए गए फैसलों को रद्द करना भी शामिल है। उदाहरण के तौर पर इस बजट में निवेशकों पर लगाया गया कर वापस ले लिया गया, सामाजिक उत्तरदायित्व नहीं निभाने पर कम्पनियों को दंडित करने का नया कानून हटा दिया गया, स्टार्ट-अप कम्पनीज पर हाल ही में लगाया गया कर पूरी तरह से खत्म कर दिया गया। इसके अलावा  कारोबारियों को यह भरोसा दिलाने की कोशिश की  गई कि आयकर अधिकारियों द्वारा उन पर सख्ती नहीं की जाएगी तथा उन्हें बेवजह परेशान नहीं किया जाएगा। 

बेशक ये कुछ शब्द हैं और इनमें कुछ और भी शब्द जोड़े जा सकते हैं जो सरकारें कहती हैं और उन्होंने कहा है। ऐसा लगता है कि ये फैसले गलती से लिए गए थे और उनसे नुक्सान हुआ है; अभी यह देखना बाकी है कि इन फैसलों को वापस लेने से क्या संकट समाप्त हो जाएगा। इन बातों का जिक्र करने का मेरा मतलब इस प्रकार है। हम लोग मजबूत और निर्णायक नेतृत्व को अच्छा और वांछनीय समझते हैं। वर्तमान राजनीतिक नेतृत्व जिसके मजबूत और निर्णायक होने का दावा किया जाता है और इस दावे को उनके समर्थकों द्वारा स्वीकार किया जाता है। इस तरह का नेतृत्व हम उनकी कार्रवाई में देख सकते हैं। जैसे कि उन्होंने जम्मू-कश्मीर के संकट, सीमा पर सैन्य कार्रवाई तथा नोटबंदी आदि के मामले में की है। 

निर्णायक नेतृत्व का अर्थ
तो निर्णायक और मजबूत नेतृत्व क्या होता है? यह उन कार्यों को करने की क्षमता है जो कोई दूसरा व्यक्ति उसी स्थिति में करने में हिचकिचाएगा।  यह एक विकल्प चुनने का मामला है जब दोनों तरफ के परिणाम अस्पष्ट हों। निर्णायक होने का यही मतलबहै। हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि किसी मजबूत नेता ने जिस मसले पर निर्णय लिया उसे किसी अन्य व्यक्ति द्वारा अनिर्णय की स्थिति में क्यों छोड़ा गयाअथवा उसका निर्णय अलग तरीके से क्यों किया गया? जब हम इसका परीक्षण इस नजरिए से करते हैं तो मजबूत और निर्णायक नेतृत्व की लोकप्रियता में कमी आती है। जो पहले ताकत और दृढ़ संकल्पप्रतीत होता था वह कुछ हद तक असावधानी नजर आती है। और जिसे नरमी अथवा अनिर्णय समझा जा रहाथा उसे लोग सावधानी के दृष्टिकोण से आंकने लगते हैं। 

विभिन्न मामलों में लिए गए फैसले उस समय अच्छे होते हैं जब उनके परिणाम की समझ होती है तथा उनके परिणाम का पहले आकलन कर लिया जाता है। मेरे कहने का मतलब यह है कि जब हमारे पास विकल्प की स्थिति होती है, तब हमें हमेशा यह पता नहीं होता कि विकल्प बी के मुकाबले विकल्प ए चुनने का क्या होगा? हमारे पास इस बात का आकलन करने की क्षमता होती है कि हमारे सामने क्या संभावनाएं हैं और वे सकारात्मक और नकारात्मक तौर पर  हमें किस तरह से प्रभावित करेंगी। हम यह जानने की भी कोशिश कर सकते हैं कि हमारा काम दूसरों को किस तरह से प्रभावित करेगा और वे इसके प्रति क्या प्रतिक्रिया व्यक्त करेंगे। युद्ध और अर्थव्यवस्था के मामलों में यह काफी पेचीदा होता है और इसे समझना आसान नहीं होता। 

ऐसी परिस्थितियों में निर्णायक होना कोई लाभदायक बात नहीं है। शब्दकोष के अनुसार निर्णायक होने का मतलब है कोई व्यक्ति जो तेजी से और मजबूती से फैसले लेने की क्षमता रखता हो। यहां पर मजबूती का मतलब है जो लोग सावधानी बरतने की सलाह दें उनकी आपत्तियों अथवा चिंताओं को खारिज करते हुए फैसला लेना। 

समान विचारधारा के लोगों से घिरे रहते हैं मजबूत नेता 
मेरे मत में ये दोनों स्थितियां लाभदायक नहीं हैं और मैं नहीं समझता कि नेताओं में यह गुण होना चाहिए। निर्णायक नेता, विशेष तौर पर शक्तिशाली, आमतौर पर ऐसे लोगों से घिरे रहते हैं जो उनका विरोध नहीं करते। ऐसा इसलिए होता है कि जो लोग सावधान और भिन्न दृष्टिकोण वाले होते हैं वे अपने से इतने अलग लोगों के अधीन काम नहीं कर सकते। 

दूसरी तरफ जो लोग समान विचारधारा वाले होते हैं उनके पास असहमत होने का कोई कारण नहीं होता। दूसरी तरफ एहतियात बरतने वाले नेता जो हर बात का मूल्यांकन करते हैं और उस पर सोच विचार करते हैं, उन्हें ऐसे सलाहकार मिल जाते हैं जो अलग विचार पेश कर सकते हैंक्योंकि उन्हें यह पता होता है कि वे बौद्धिक संवाद कर रहे हैं और उनकी बात सुनी जाएगी। निर्णायक क्षमता एक ऐसी चीज है जो प्राथमिक तौर पर ऐसे लोगों में होती है जिन्हें अपनी बात पर पूरा भरोसा होता है। इसका अर्थ यह है कि ये वे लोग होते हैं जो मुख्य तौर पर दिमाग की बजाय जुनून, विश्वास और आस्था के आधार पर कार्य करते हैं। वे किसी चीज के बारे में बहुत गहराई से और मजबूती से महसूस करते हैं और उनके लिए दूसरे दृष्टिकोण को देखना मुश्किल होता है। निर्णायक नेतृत्व की इस समझ को ध्यान में रखते हुए हमें उन बातों का पुन: निरीक्षण करना चाहिए जिनमें हमारा वर्तमान शासन लगा हुआ था। 

और तब हमें उस दिशा में देखना चाहिए जिसमें वित्त मंत्रालय निर्णायक फैसले ले रहा है। निश्चित तौर पर जब कार्पोरेट सैक्टर का मामला हो तो गलतियों को सार्वजनिक तौर पर स्वीकार करना और उन्हें सुधारना आसान हो जाता है। जैसा कि यहां पर हुआ है लेकिन हमें यह समझना होगा कि निर्णायकता से होने वाली गंभीर गलतियां राज्य व्यवस्था के अन्य क्षेत्रों में भी होती हैं जो हमें नुक्सान पहुंचाती हैं।-आकार पटेल

Advertising