बरसी पर विशेषः कुलदीप नैयर की हमें आज भी ‘जरूरत’

punjabkesari.in Sunday, Aug 23, 2020 - 02:34 AM (IST)

हम अपने दादा कुलदीप नैयर के लिए कुछ शब्द कह रहे हैं जिनके समांतर खड़े होने का हम कभी सपना भी नहीं ले सकते। मगर हम यह कह सकते हैं कि उन सिद्धांतों का अनुकरण करें जिनके लिए हमारे दादा जिए। हम में से सभी यह सोच कर अचम्भित हो जाते हैं कि क्या वह सिस्टम तथा सोसाइटी जिसमें हम जीते हैं बेहतरी के लिए इसे बदला जा सकता है? और यदि इस सिस्टम के साथ हम कभी लड़ पाएं तो यह बेहतर बन सकता है। 

हमारे दादा कुलदीप नैयर के जीवन के बारे में इसी तरह से जवाब दिया जा सकता है। उन्होंने हमेशा ही अपने मन की बात कही और सरकारों से कभी नहीं डरे। उनका संबंध किसी राजनीतिक पार्टी से नहीं था, न ही उनका संबंध किसी धार्मिक संगठन से था। वह साधारण व्यक्ति थे। वह ऐसा कह जाते थे जो अन्य नहीं कह सकते थे जिनके बारे में कहा जाना जरूरी था। 

सिस्टम का हिस्सा होने के बिना उन्होंने ऐसा कर दिखाया। अपनी मेज के पीछे बैठ कर उन्होंने यह कर दिखाया। उन्होंने शब्दों की ताकत का इस्तेमाल किया ताकि लोगों को बदला जा सके तथा सिस्टम में बदलाव लाया जा सके। लोग अचम्भित हैं कि क्या ऐसे लोग वास्तव में कोई बदलाव ला सकते हैं? क्या उन्हें अभी भी प्यार तथा उनकी प्रशंसा की जाती है। जिन लोगों ने शोक जताया या आज उन्हें याद करते हैं वह एक वसीयत की तरह हैं जो यह दर्शाता है कि जो लोग सच्चाई के लिए खड़े होते हैं उनकी प्रशंसा हमेशा होती है। 

दादा जी कभी भी सामाजिक पार्टियों में शामिल नहीं हुए। वह तो उन इवैंट में जाना पसंद करते थे जो किसी मकसद के लिए होता था। जीवन के सभी पहलुओं से संबंधित लोगों से वह मुलाकात करना पसंद करते थे।  हालांकि वह डिजिटल वल्र्ड में ज्यादा क्रियाशील नहीं थे और न ही सोशल मीडिया में उनकी कोई रुचि थी। शब्दों के माध्यम से उन्होंने लोगों के जीवन को छूना चाहा। क्रियाओं से ज्यादा शब्द ज्यादा ऊंचा बोलते हैं  और इसका प्रभाव किसी भी क्रिया से ज्यादा होता है। उन्होंने यह प्रमाणित कर दिया कि तलवार से ज्यादा पैन ताकतवर है और यदि पैन का इस्तेमाल जिम्मेदारी से किया जाए तब आपको कभी भी तलवार की जरूरत नहीं पड़ेगी। हालांकि 90 वर्ष से ज्यादा की आयु तक वह लिखते रहे। उनके शब्द नहीं रुके, उनकी अभिव्यक्ति को ढाला नहीं जा सका, वह वही लिखते जो वह सोचते थे। 

उनकी मौत के बाद हम कई कॉलें रिसीव करते हैं। इन्हीं बातों ने हमें छू लिया। पाकिस्तान से भी यह संदेश आता है कि यह पाकिस्तान के लिए बहुत बड़ा नुक्सान है तथा भारत-पाक संबंधों में यह सबसे बड़ा घाटा है। जब आप एक ऐसे देश से ऐसे शब्दों को सुनते हैं  जिससे हमारे संबंध बेहतर नहीं हैं तब आप जानते हो कि दादा निश्चित तौर पर एक वैरी-वैरी स्पैशल पर्सन थे। उन्हें प्रेम किया गया और सीमा पार से भी उनको मान-सम्मान मिला। 

वह शांति तथा सौहार्द के प्रतीक थे जिनकी आज के समय में भी जरूरत है। हमें कुलदीप नैयर जैसे कई लोगों की जरूरत है ताकि हम अपने राष्ट्र को संरक्षित तथा धार्मिक विविधताओं को संभाल कर रखें। दादा ने एक महान जीवन जिया और हमें उनके शानदार जीवन को मनाना है। हालांकि वह वर्तमान तथा पूर्व की सरकारों के कटु आलोचक रहे। निश्चित तौर पर वह अपने देश के लिए एक अद्भुत नागरिक थे। इसके अलावा वह एक अद्भुत पिता तथा एक मोहब्बत करने वाले दादा थे। 

हमें यह आशीर्वाद है कि हमने उनके परिवार में जन्म लिया और हमेें यह कहते हुए गर्व महसूस होता है कि आप हमारे दादा हो। आपके सपने पूरे होंगे। हम आपके पसंदीदा अमृतसरी चने और लाहौर से एक फीरनी खाना पसंद करेंगे। आप उस समय सही थे जब यह कहते थे कि दोनों राष्ट्रों के आर-पार के लोग यही चाहते हैं मगर यह तो बस बाहरी ताकतें हैं जो ऐसा होने नहीं देतीं। 

एक रॉक स्टार रिपोर्टर जिन्हें संपादक होना चाहिए था  
भारत के सबसे महान पत्रकार को अक्सर पछतावा होता था कि संपादक के शीर्षक से उन्हें अलग रखा गया लेकिन वह एक स्तम्भकार, राजनयिक, सांसद और शांति कार्यकत्र्ता के रूप में सबसे ज्यादा प्रसिद्धि पा गए। कुलदीप नैयर एक ऐसे युग में भारतीय पत्रकारिता के पहले रॉक स्टार थे जब किसी भी संपादक को इस तरह वॢणत किया गया। भारत के पूर्व प्रचलित बायलाइन के रूप में नैयर का उदय तब हुआ जब कोई समाचार, टी.वी. तथा चमकदार पत्रिका नहीं थी। वह भारत के सबसे महान स्कूप मैन हैं। 

उन्होंने आपातकाल की समाप्ति के बाद भारतीय पत्रकारिता का पहला स्वर्ण युग शुरू किया। प्री-सैंसरशिप ने लोगों को एक स्वतंत्र प्रैस के मूल्यों के प्रति संवेदनशील बनाया था। यदि इंडियन एक्सप्रैस एमरजैंसी का एक चमकता सितारा था तो कुलदीप नैयर इसका चेहरा थे। इंडियन एक्सप्रैस की दुर्जेय संपादकीय स्टार कास्ट में वह संपादक एस. मलगांवकर और संपादक अजीत भट्टाचार्य के बाद तीसरे स्थान पर रहे।  महज एक रिपोर्टर होने के बावजूद उनकी पहले की किताबों ‘बिटवीन द लाइन्ज’, ‘इंडिया: द क्रिटीकल ईयर्ज’ तथा ‘डिस्टैंट नेबर’ ने उन्हें ऊपर के लोगों की तुलना में अधिक बौद्धिक रूप से उभारा था। 

न्यूज रूम में उनकी उपस्थिति एक बिजली की तरह थी। कुलदीप नैयर को सबसे अच्छी श्रद्धांजलि यही होगी कि उन्होंने रिपोर्टर को भारतीय न्यूज रूम बनाया। इंडियन एक्सप्रैस ने खुद युवा पत्रकारों की एक टीम का निर्माण किया जो बाद में संपादकों की ओर बढ़े। उस दौर में उभरे तीन अन्य युवा संपादकों में अरुण शोरी, अरुण पुरी तथा एम.जे. अकबर शामिल थे। रामनाथ गोयंका के पास संपादकीय प्रतिभा के लिए एक बड़ी नजर थी।  1979 में वह शोरी को पत्रकारिता में लाए। कुलदीप नैयर ने अधिक विविध जीवन को चुना था और इसमें उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। हमारे पत्रकारों के दृष्टिकोण से यह एक नुक्सान है कि उन्होंने इतनी जल्दी हार मान ली। वह भारत के लिए सबसे बेहतरीन रिपोर्टर-संपादक और इसके सबसे प्रभावशाली और व्यावहारिक स्तंभकार के रूप में उभरे थे। 

कुलदीप नैयर ने मुझे तीन महत्वपूर्ण टिप्स दिए। पहला यह कि मुझे एक साप्ताहिक कॉलम शुरू करना चाहिए और उसे बनाए रखना चाहिए। मैंने इसका कत्र्तव्य से पालन किया। दूसरा यह कि मेरे पास दोपहर की झपकी होनी चाहिए। मैं कभी-कभी उदासीन परिणामों के साथ कोशिश करता हूं। तीसरा, कि मैं पत्रकारों की तनख्वाह बहुत अधिक बढ़ा रहा था और उन्हें छोडऩा चाहिए क्योंकि यह उन्हें और अधिक भौतिकवादी बना देगी और अंतत: मालिक  के लिए अस्वीकार्य होगा। मैंने सम्मानपूर्वक इन बातों का ध्यान नहीं दिया।-शेखर गुप्ता


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News