स्पीकर का पद संवैधानिक, इसका राजनीतिक इस्तेमाल गलत

punjabkesari.in Sunday, Feb 26, 2023 - 05:24 AM (IST)

संसद का नया भवन तैयार है, लेकिन 18वीं लोकसभा में पिछले 3.5 साल से उपसभापति का पद खाली है। चीफ जस्टिस चन्द्रचूड़ ने कमैंट किया है कि स्पीकर का पद संवैधानिक है, जिसका सियासी इस्तेमाल गलत है। शिवसेना मामले में राज्यपाल और चुनाव आयोग की भूमिका पर सवाल खड़े हो रहे हैं। लेकिन महाराष्ट्र में शिंदे सरकार के गठन में डिप्टी स्पीकर की महत्वपूर्ण भूमिका उजागर हुई थी।

पिछले साल सियासी उठापटक के दौरान महाराष्ट्र में विधानसभा स्पीकर का पद रिक्त था। इसलिए डिप्टी स्पीकर नरहरि जिरवाल के पास स्पीकर के भी अधिकार थे। बागी विधायकों ने जिरवाल के खिलाफ नो कांफीडैंस मोशन दे दिया। 2016 में नबाम रेबिया मामले में सुप्रीमकोर्ट की संविधान पीठ ने फैसला दिया था कि स्पीकर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लम्बित होने की स्थिति में वह विधायकों की अयोग्यता का फैसला नहीं कर सकते।

सुप्रीमकोर्ट के दखल के बाद अनुच्छेद-181 के तहत डिप्टी स्पीकर ने विधायकों की अयोग्यता का फैसला रोक दिया। उसके बाद एकनाथ शिंदे ने सरकार बनाकर विश्वासमत हासिल करते हुए नए स्पीकर की नियुक्ति करके बाजी अपने पक्ष में कर ली। विपक्ष का डिप्टी स्पीकर-संविधान के तीन बड़े स्तम्भ हैं। कार्यपालिका में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति, न्यायपालिका में चीफ जस्टिस के महत्व को सभी जानते हैं। लेकिन विधायिका में स्पीकर और डिप्टी स्पीकर के महत्व को कमकर आंका जाता है।

स्पीकर की अनुपस्थिति में डिप्टी स्पीकर के पास सारे अधिकार होते हैं। सत्र के दौरान स्पीकर या डिप्टी स्पीकर सदन की अध्यक्षता करते हैं। संसदीय समितियों के गठन में भी स्पीकर और डिप्टी स्पीकर की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इस बारे में संविधान सभा में डा. अम्बेदकर ने कहा था कि स्पीकर और डिप्टी स्पीकर का चयन सदन द्वारा होता है इसलिए उनका त्यागपत्र भी सदन को ही सौंपा जाना चाहिए।

दल-बदल के समय अयोग्यता के निर्धारण में स्पीकर की अनुपस्थिति में डिप्टी स्पीकर की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। इसलिए कई राज्यों में डिप्टी स्पीकर की नियुक्ति सियासी कारणों से नहीं हो रही। स्पीकर का पद बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। इसलिए सत्ता पक्ष या गठबंधन के विधायक या सांसद ही स्पीकर बनते हैं। परम्परा के अनुसार स्पीकर का पद सत्ता पक्ष के पास और डिप्टी स्पीकर का पद विपक्षी पार्टी को मिलता है।

यू.पी.ए.-1 के समय शिरोमणि अकाली दल के चरणजीत सिंह अटवाल और यू.पी.ए.-2 के दौरान भाजपा के करिया मुंडा डिप्टी स्पीकर थे। पिछली लोकसभा में भाजपा सरकार के दौरान अन्ना द्रमुक के थम्मी दुरई डिप्टी स्पीकर थे। लेकिन पंजाब में आप पार्टी की सरकार ने डिप्टी स्पीकर के पद पर सत्ता पक्ष के विधायक को नियुक्त करके संसदीय परंपरा का उल्लंघन किया है। लोकसभा में डिप्टी स्पीकर के रिक्त पद के लिए भाजपा सरकार की जवाबदेही बनती है।

उस नाते झारखंड और राजस्थान में डिप्टी स्पीकर के खाली पद के लिए कांग्रेस और विपक्ष की सरकारें भी जिम्मेदार हैं। 5 राज्यों और लोकसभा में डिप्टी स्पीकर का पद खाली-सन् 1919 के गवर्नमैंट ऑफ इंडिया एक्ट में सदन के प्रैसीडैंट और डिप्टी प्रैसीडैंट के लिए प्रावधान था। आजादी के बाद संविधान में उन पदों को स्पीकर और डिप्टी स्पीकर कहा गया। संविधान के अनुच्छेद-93 और 178 के अनुसार लोकसभा और विधानसभा के गठन के बाद स्पीकर और डिप्टी स्पीकर की जल्द से जल्द नियुक्ति होनी चाहिए।

चुनावों के बाद विधानसभा का गठन और उसके बाद विधायकों का शपथ-ग्रहण होता है। परम्परा के अनुसार प्रथम सत्र के तीसरे दिन लोकसभा में स्पीकर और दूसरे सत्र में डिप्टी स्पीकर का चुनाव हो जाता है। वर्तमान लोकसभा और पांच राज्यों राजस्थान, उत्तराखंड, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और झारखंड की विधानसभा में अभी तक डिप्टी स्पीकर की नियुक्ति नहीं हुई है। इस बारे में दायर पी.आई.एल. पर सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी करके केन्द्र और पांचों राज्य सरकारों से जवाब मांगा है।

संविधान के तहत डिप्टी स्पीकर की नियुक्ति जरूरी है। लेकिन इनके चुनाव के लिए संविधान में समय-सीमा का निर्धारण नहीं किया गया। सन् 1973 में केशवानंद भारती मामले में संविधान पीठ ने शक्तियों के विभाजन का सिद्धांत बनाया था। उसके अनुसार विधायिका के आंतरिक मामलों में अदालतें सामान्यत: हस्तक्षेप नहीं करती हैं। कुछ महीने पहले पीठासीन अधिकारियों का सम्मेलन हुआ था। उसमें लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला समेत राज्यों की विधानसभा के स्पीकर भी शामिल हुए थे।

सम्मेलन में पीठासीन अधिकारियों की कम होती शक्तियों और न्यायिक हस्तक्षेप पर भी चिंता व्यक्त की गई थी। स्पीकर के चुनाव में राष्ट्रपति और राज्यपाल की भूमिका होती है। लेकिन लोकसभा की नियमावली के नियम-8 के तहत डिप्टी स्पीकर के चुनाव को तो स्पीकर ही करा सकते हैं। दो राज्यों मध्यप्रदेश और राजस्थान की विधानसभा का कार्यकाल समाप्त होने की कगार पर है।

अगले साल 2024 में लोकसभा के आम चुनाव होने से 18वीं लोकसभा का सीमित कार्यकाल बचा है। सुप्रीमकोर्ट में जवाब और सुनवाई से विलम्ब हुआ तो शिवसेना विवाद की तर्ज पर डिप्टी स्पीकर की जल्द और अनिवार्य नियुक्ति मामले पर सुप्रीमकोर्ट का फैसला अकादमिक ही रह जाएगा। -विराग गुप्ता (एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट)


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News