हमें जल्द पता चल जाएगा कि मनमोहन सिंह और मोदी में से कौन गलत है

Monday, Dec 12, 2016 - 12:27 AM (IST)

अप्रैल 2014 में आम चुनावों से ऐन पहले भविष्य में प्रधानमंत्री बनने जा रहे व्यक्ति का लेखिका और एक्टिविस्ट मधु किश्वर ने लम्बा-चौड़ा वीडियो साक्षात्कार लिया था। नरेन्द्र मोदी उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री थे। साक्षात्कार में उन्होंनेे खुद के और अपनी कार्यशैली के बारे में जिन बातों की खुलासा किया वे मुझे बहुत दिलचस्प लगीं। साक्षात्कार देखते-देखते मैंने कुछ नोट्स भी लिए। जो कुछ उन्होंने कहा वह इस प्रकार था :

उन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री कार्यालय की कार्य संस्कृति बदल कर रख दी थी। उनके कार्यभार सम्भालने से पहले मुख्यमंत्री 12 बजे ही कार्यालय में दर्शन दिया करते थे लेकिन मोदी सदैव समय के पाबंद थे और पूरे 9.45 तक अपने कार्यालय में पहुंच जाते थे। मैं जानता हूं कि वह समय की पाबंदी का कितना ख्याल रखते हैं और जितनी भी बार मैं उनसे मिला हंू यह मुलाकात एक मिनट भी आगे-पीछे नहीं होती थी।

खुद के बारे में उन्होंने एक महत्वपूर्ण खुलासा किया कि वह वास्तव में काम किस तरह करते हैं। मोदी ने कहा कि वह फाइलें नहीं पढ़ते। उनकी यह बात मुझे काफी असाधारण लगी थी क्योंकि जिस व्यक्ति में निर्णयशीलता का प्रबल गुण होता है उसे तो अपने विषय पर पूरी पकड़ रखने की जरूरत होती है क्योंकि वह और भी बड़े फैसले लेने के लिए उत्सुक होता है।

लेकिन मोदी कहते हैं कि वह किताबों में डूबे रहकर सरकार का कामकाज नहीं चला सकते इसलिए अपने अधिकारियों को कहते हैं कि वे उनके लिए समस्त विषयों का सारांश यानी ‘समरी’ तैयार करें और फिर मौखिक रूप में सारी बात उन्हें बताएं। अफसरों से उम्मीद की जाती है कि वह फाइलों को अच्छी तरह पढ़ें और फिर मोदी को बताएं कि ‘‘मसला क्या है।’

मोदी ने कहा कि वास्तव में मुद्दों के बारे में बिना पढ़े ही अधिकारियों की मौखिक ब्रीङ्क्षफग के आधार पर ही वह इन मुद्दों की बारीकियां समझने की क्षमता रखते हैं। उन्होंने कहा कि वह ऐसा इसलिए कर लेते हैं कि  ‘‘मेरा इतना ग्रासिं्पग था।’’  मोदी ने यह भी खुलासा किया कि वह बहुत अच्छे श्रोता हैं, इसलिए जो भी बात उनके सामने बोली जाती है वह उसे पूरी तरह आत्मसात कर लेते हैं।

जब मैंने उन्हें ये बातें करते हुए सुना तो सोचा कि इस प्रकार तो वह उन अधिकारियों के रहमो-करम पर रह जाएंगे जो जिन पर भरोसा कर रहे हैं क्योंकि वह उन पर निर्भर हो गए हैं इसलिए कोई अधिकारी जितनी बात जानता होगा या जितना अधिक या कम बताना पसंद करता होगा, उसी हिसाब से जानकारी देगा। अपनी कार्यशैली की मोदी ने जिस प्रकार व्याख्या की वह एक जटिल मामला था इसमें शायद दर्जनों नहीं बल्कि सैंकड़ों पृष्ठों की फाइलें केवल मौखिक सारांश में सुकेड़ दी जाती हैं। यह सम्भव है कि समय की कमी के चलते या मुद्दा बहुत अधिक जटिल होने के कारण मौखिक प्रस्तुतिकरण बिल्कुल बचकाना-सा बन कर रह जाए।

इस प्रस्तुतिकरण के आधार पर मोदी फैसला लेते हैं और फिर इसे प्रशासन के माध्यम से कार्यान्वित किया जाता है। ऐसा आभास होता है कि यह कार्यशैली मोदी के मामले में काफी कारगर रही है क्योंकि गुजरात में 12 वर्ष के अपने कार्यकाल दौरान उन्हें बहुत बढिय़ा मुख्यमंत्री के रूप में देखा गया है।

लेकिन फिर भी आजकल मैं फिर से मोदी के इस ढंग से जानकारियां हासिल करने और निर्णय लेने के विषय में सोच रहा हूं। इस ङ्क्षचतन-मनन के लिए मैं इसलिए मजबूर हुआ हूं क्योंकि सुप्रीम कोर्ट नोटबंदी की नीति लागू किए जाने के बारे में बहुत पैने सवाल पूछ रही है। अदालत यह जानना चाहती है कि 8 नवम्बर को जब मोदी ने 500 और 1000 के नोट रद्द किए थे तो क्या नोटबंदी को ठीक ढंग से सुनियोजित किया गया था या फिर यह फैसला यूं ही चालू ढंग से ले लिया गया था?

अदालत यह जानना चाहती है कि सरकार क्यों पैसे की निकासी की सीमाओं की घोषणा कर रही थी, जबकि बैंक नागरिकों को पैसा देने के योग्य ही नहीं थे। ऐसा आभास क्यों हो रहा है कि इस पूरे प्रकरण पर पहले से सोच-विचार नहीं की गई थी?

सरकार को इतने जबरदस्त ढंग से कोने में धकेल दिया गया था कि इसे अपनी स्वतंत्रता जोरदार ढंग से प्रमाणित करनी पड़ी तथा इसने कहा कि वित्तीय नीति अदालतों द्वारा नहीं गढ़ी जा सकती। मेरा मानना है कि इस नुक्ते पर सरकार सही है और उम्मीद करता हंू कि इस टकराव का फैसला सरकार के पक्ष में ही होगा।

फिर से अपने मूल विषय की ओर मुड़ते हुए मैं सोचता हूं कि मोदी की कार्यशैली के कुछ लाभ भी हो सकते हैं। उदाहरण के तौर पर जब मामला जटिल न हो तो त्वरित निर्णय लिए जा सकते हैं। मोदी को नयनाभिराम चीजें बहुत पसंद हैं और वह इनकी परख भी अच्छी तरह कर लेते हैं। मुझे तो यहां तक संदेह है कि ‘मेक इन इंडिया’ का लाजवाब लोगो मोदी ने निजी तौर पर अनुमोदित किया है और इसीलिए इसे अपनाया गया है।

लेकिन जब निर्णय अधीन मुद्दा बहुत व्यापक और जटिल हो तथा फैसले लेने तथा अंतिम रूप में जवाबदेह होने वाले व्यक्ति द्वारा इसे निजी रूप में और पूरी तरह पढऩे की जरूरत हो तो क्या होता है? मुझे संदेह है कि तब सचमुच पंगे वाली स्थिति पैदा हो जाती है क्योंकि हर मामला ‘मौखिक सारांश’ से हल नहीं किया जा सकता।

मोदी का स्टाइल मनमोहन सिंह के पूरी तरह विपरीत है जो कि अपनी अकादिमक रुचियों के कारण छोटे-छोटे निर्णयों का संज्ञान लेने के आदी हैं। मनमोहन सिंह ने लिखा है कि उन्हें डर है कि अगले कुछ महीनों में नोटबंदी बहुत विकराल और विराट त्रासदी का रूप ले सकती है। दूसरी ओर मोदी ने हमें बताया कि जनवरी में हम एक नई और बेहतर दुनिया में कदम रखने वाले हैं। दोनों ही व्यक्ति सही नहीं हो सकते और काफी जल्दी ही हमें पता चल जाएगा कि दोनों में से कौन गलत है। 
 

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