तन्हा जिंदगी गुजारती कुछ महिलाएं
punjabkesari.in Saturday, Mar 11, 2023 - 06:24 AM (IST)
प्रति वर्ष राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश और दुनिया भर की स्त्रियोंं के लिए एक निर्धारित तिथि पर उनके बारे में सोचने और कुछ करने की इच्छा जाहिर करने की परंपरा महिला दिवस के रूप में बनती जा रही है। आम तौर पर इस दिन जो आयोजन किए जाते हैं उनमें ज्यादातर इलीट यानी संभ्रांत और पढ़े-लिखे तथा वे संपन्न वर्ग की महिलाएं जो दान-पुण्य कर अपना दबदबा बनाए रखना चाहती हैं, भाग लेती हैं। भाषण आदि होते हैं और कुछ औरतों जो दीनहीन श्रेणी की होती हैं, उन्हें सिलाई मशीन जैसी चीजें देकर अपने बारे में अखबार में छपना और टी.वी. पर दिखना सुनिश्चित कर वे अपनी दुनिया में लौट जाती हैं।
प्रश्न यह है कि क्या उनका संसार बस इतना-सा ही है ? यह एक खोजपूर्ण तथ्य है कि आंकड़ों के अनुसार दुनिया भर में महिलाओं की औसत आयु पुरुषों से अधिक होती है। उदाहरण के लिए किसी भी घर में देख लीजिए चाहे मेरा हो, दोस्तों और रिश्तेदारों का हो, मां, बहन, दादी, नानी, बुआ, मौसी जैसे रिश्तों के रूप में कोई न कोई महिला अवश्य होगी जो अकेले जीवन व्यतीत कर रही होगी। किसी का पति नहीं रहा होगा तो किसी का बेटा और अगर हैं भी तो वे काम-धंधे, नौकरी, व्यवसाय के कारण कहीं बाहर रहते होंगे। उन्हें कभी फुर्सत मिलती होगी या ध्यान आता होगा तो फोन पर बात कर लेते होंगे या सैर-सपाटे या घूमने-फिरने अथवा मिलने की वास्तविक इच्छा रखते हुए कभी-कभार अकेले या बच्चों के साथ आ जाते होंगे।
ये भी बस घड़ी दो घड़ी अकेली बुजुर्ग महिला के साथ बिताकर और जितने दिन उन्हें रहना है, उसमें दूसरे दोस्तों या मिलने-जुलने वाले लोगों के पास उठने-बैठने चले जाते हैं। मतलब यह कि जिससे मिलने और उसके साथ समय बिताने के लिए आए, उसे बस शक्ल दिखाई और वापसी का टिकट कटा लिया। कुछ लोग इसलिए भी आते होंगे कि जिस जमीन-जायदाद, घर-मकान पर वह अपना हक समझते हैं उसे निपटा दिया जाए और जो महिला है उसके लिए किसी आश्रम आदि की व्यवस्था कर दी जाए ताकि उनके कर्तव्य की पूर्ति हो सके। इन एकाकी जीवन जी रही महिलाओं की आयु की अवधि एक-दो नहीं बल्कि 30 से 50 वर्षों तक की भी हो सकती है।
अब एक दूसरी स्थिति देखते हैं। संयुक्त परिवार में अकेली वृद्ध स्त्री का जीवन कितना एकाकी भरा होता है, इसका अनुमान इस दृश्य को सामने रखकर किया जा सकता है कि उससे बात करने की न बेटों को फुर्सत है और न बहुओं को ज्यादा परवाह है, युवा होते बच्चों की तो बात छोड़ ही दीजिए क्योंकि उनकी दुनिया तो बिल्कुल अलग है। एेसे में अकेलापन क्या होता है, इसका अनुभव केवल तब हो सकता है, जब इस दौर से गुजरना पड़े। कोरोना काल या अकाल मृत्यु के अभिशाप से ग्रस्त ऐसे बहुत से परिवार मिल जाएंगे जिनमें पति और पुत्र दोनों काल का ग्रास बन गए और घर में सास, बहू या बेटी के रूप में स्त्रियां ही बचीं।
घर में मर्द न हो तो हालत यह होती है कि अगर वे समझदार हैं तो कायदे से जीवन की गाड़ी चलने लगती है और अगर अक्ल घास चरने चली गई तो फिर लड़ाई-झगड़ा, कलह से लेकर अपना हक लेने के लिए कोर्ट कचहरी तक की नौबत आ जाती है। एेसे में भाई बंधु और रिश्तेदार आम तौर पर जो सलाह देते हैं वह मिलाने की कम, अलग करने की ज्यादा होती है। मेरा ऐसे बहुत से परिवारों से परिचय है जो पुरुष के न रहने पर लंबी कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं। एक तीसरी स्थिति उन महिलाओं की है जिन्होंने किसी भी कारणवश अकेले जीवन जीने का निर्णय लिया।
उन्हें भी एक उम्र के बाद अकेलापन खटकने लगता है, खासकर तब जब वे नौकरी से रिटायर हो चुकी हों और अब तक जो कमाया उसके बल पर ठीक-ठाक लाइफ स्टाइल जी रही हों, लेकिन एकाकी जीवन की विभीषिका उन पर भी हावी होती है। एेसी अनेकों महिलाएं हैं जो कोई काम न रहने पर मानसिक रूप से असंतुलन का शिकार हो जाती हैं। वे भी कब तक पुरानी यादों के सहारे जीवन जीएं या कितना घूमें या किसी घरेलू काम में मन लगाएं, अकेलेपन का अहसास तो होने ही लगता है।
महिलाओं पर सख्त नजर : व्यापक तौर पर देखा जाए तो किसी भी महिला की आवश्यकताएं बहुत साधारण होती हैं। इनमें सबसे पहले ग्रामीण क्षेत्रों में शौचालय, लड़कियों की शिक्षा और स्वास्थ्य तथा चिकित्सा सुविधाओं का होना, रसोई में धुएं से मुक्ति और सामान्य सुरक्षा का प्रबंध है। यही सब शहरों में भी चाहिए लेकिन उसमें बस इतना और जुड़ जाता है कि वे अपनी रुचि,योग्यता और इच्छा के मुताबिक किसी भी क्षेत्र में कुछ करना चाहती हैं तो उन्हें कड़वे अनुभव नहीं हों और वे अपनी शारीरिक, मानसिक और आर्थिक सुरक्षा के साथ रह सकें।
शहरों में एक बात और देखने को मिलती है कि यहां ऐसी महिलाओं की संख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है जो गांव देहात में अपना पति और परिवार होते हुए भी घरेलू काम करने आती हैं। वे कमाती तो यहां हैं लेकिन उन पर अंकुश पति का ही रहता है, मतलब उनकी बराबर निगरानी रखी जाती है।
समाज और कानून : महिलाओं की अभिव्यक्ति और उन्हें कुछ भी करने की आजादी मिलना एक सामाजिक पक्ष है, लेकिन उनके अधिकारों को सुरक्षित रखने के लिए कानून बनाने और उन पर अमल होना सुनिश्चित करना सरकार का काम है। इसमें समान काम के लिए समान वेतन, पद देते समय उनकी गरिमा बनाए रखना और उनकी सुरक्षा की जवाबदेही वाली व्यवस्था बनाना आता है। -पूरन चंद सरीन
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