‘हिन्दू बनाम हिंदू’ पर कुछ विचार

Tuesday, Jan 23, 2024 - 06:31 AM (IST)

अपने कालजयी लेख ‘हिंदू बनाम हिंदू’ में राममनोहर लोहिया ने भारत के राजनीतिक भविष्य और हिंदू समाज की अंदरूनी कशमकश के बीच रिश्ते की शिनाख्त की थी। भारतीय गणतंत्र के दीर्घकालिक भविष्य की समझ रखने और चिंता करने वाले हर नागरिक को 22 जनवरी के बाद लोहिया के शब्द याद रखने चाहिएं। यह इसलिए भी जरूरी है चूंकि प्रधानमंत्री मोदी यदा कदा बहुत श्रद्धा से राममनोहर लोहिया को याद कर लेते हैं। 

लोहिया के अनुसार ‘भारतीय इतिहास की सबसे बड़ी लड़ाई -- हिंदू धर्म में उदारवाद और कट्टरता की लड़ाई -- पिछले 5 हजार सालों से भी अधिक समय से चल रही है।’ उनकी समझ में भारत के राजनीतिक इतिहास को ङ्क्षहदू  धर्म के इस अंतद्र्वंद्व के चश्मे से समझा जा सकता है। जब हिंदू उदार होता है तो देश स्थिरता हासिल करता है, इसकी अंदरूनी और बाहरी शक्ति का विस्तार होता है। लेकिन जब-जब कट्टरपंथ जीता है, तब-तब भारत की राज्यशक्ति कमजोर हुई है, देश बंटा है, हारा है। 

यहां उदार और कट्टर से लोहिया का आशय केवल दूसरे धर्मावलंबियों के प्रति उदारता या कट्टरता से नहीं है। लोहिया इसके 4 आयाम गिनाते हैं : वर्ण और जाति पर आधारित भेदभाव, नर और नारी में गैर-बराबरी, जन्म के आधार पर संपत्ति के अधिकार को मान्यता और धर्म के भीतर व धर्मों के बीच सहिष्णुता।  लोहिया के शब्दों में : ‘‘उदार और कट्टरपंथी हिंदू के महायुद्ध का बाहरी रूप आजकल यह हो गया है कि मुसलमान के प्रति क्या रुख हो। लेकिन हम एक क्षण के लिए भी यह न भूलें कि यह बाहरी रूप है और बुनियादी झगड़े जो अभी तक हल नहीं हुए, कहीं अधिक निर्णायक हैं।’’ 

इस लेख में लोहिया पूरे भारतीय इतिहास की व्याख्या नहीं करते। उसके लिए उनकी इतिहास चक्र की अवधारणा को देखना होगा। लेकिन आधुनिक काल की व्याख्या करते हुए लोहिया याद दिलाते हैं कि हमारे समय में अगर कोई सबसे उदार हिंदू हुआ था तो वह महात्मा गांधी थे। इसलिए कट्टरपंथी हिंदुओं को सबसे बड़ा खतरा गांधी से लगता था। लोहिया की नजर में गांधी जी की हत्या उदार और कट्टर हिंदू के बीच चल रहे ऐतिहासिक संघर्ष का एक मोड़ था। 

हमारे समय में ‘उदार और कट्टर हिंदू धर्म की लड़ाई अपनी सबसे उलझी हुई स्थिति में पहुंच गई है और संभव है कि उसका अंत भी नजदीक हो। कट्टरपंथी हिंदू अगर सफल हुए तो चाहे उनका उद्देश्य कुछ भी हो, भारतीय राज्य के टुकड़े कर देंगे, न सिर्फ हिंदू-मुस्लिम दृष्टि से बल्कि वर्णों और प्रदेश की दृष्टि से भी।’ मतलब कि भारत की एकता और अखंडता को अगर कोई सबसे बड़ा खतरा है तो वह हिंदू कट्टरपंथियों से है। उनकी समझ और नीयत जो भी हो, चाहे वे अपनी नजर में ईमानदारी से देश को मजबूत कर रहे हों, उसका नतीजा देश की एकता को तोड़ने वाला  होगा। 

उनकी बात समझने में संदेह की गुंजाइश न रह जाए इसलिए वह स्पष्ट कहते हैं : ‘केवल उदार हिंदू ही राज्य को कायम कर सकते हैं। अत: 5 हजार वर्षों से अधिक की लड़ाई अब इस स्थिति में आ गई है कि एक राजनीतिक समुदाय और राज्य के रूप में हिंदुस्तान के लोगों की हस्ती ही इस बात पर निर्भर है कि हिंदू धर्म में उदारता की कट्टरता पर जीत हो।’ 

अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर देश भर में हुए आयोजनों को इस संदर्भ में देखना चाहिए। बेशक, करोड़ों साधारण आस्थावान हिंदुओं के लिए यह उनके आराध्य का भव्य मंदिर बनने का विशेष पर्व था। उनमें से अधिकांश के मन में कोई कट्टरता नहीं रही होगी। लेकिन इसके आयोजकों और प्रायोजकों ने इसके राजनीतिक निहितार्थ के बारे में शक की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ी है। हमें बताया जा रहा है कि यह हिंदू समाज की सदियों से खोई अस्मिता को हासिल करने का उत्सव है। कहा जा रहा है कि एक हजार साल की गुलामी से मुक्त होकर हिंदू अब एक शक्तिमान समुदाय के रूप में उभरे हैं। इसे एक नई राष्ट्रीय भावना के उदय के रूप में पेश किया जा रहा है। 

यह तो इतिहास ही बताएगा कि यह विजय सच्ची है या नहीं। पहली नजर में तो यह हिंदू धर्म को विदेशी ‘रिलीजन’ की तर्ज पर ढालने को कोशिश लगती है, धर्म की विजय की बजाय धर्म पर सत्ता की विजय प्रतीत होती है। जो भी हो, इतना साफ है कि इस विजयघोष का सहिष्णुता से  कोई संबंध नहीं हो सकता। ध्यान से देखें तो इस विजयोत्सव में मर्दानगी, ब्राह्मणवादी जातीय वर्चस्व और पूंजी का खेल  छुपा नहीं है। लोहिया की इतिहास दृष्टि के आलोक में 22 जनवरी का आयोजन नि:संदेह उदार हिंदू पर कट्टरपंथ की विजय है। ऐसे में लोहिया सरीखे इतिहास दृष्टा की चेतावनी को हल्के में नहीं लिया जा सकता। भारत राष्ट्र के एकता और अखंडता की सोच और समझ रखने वाले हर भारतीय के लिए उदार हिंदू धर्म को बचाना आज सबसे बड़ी चुनौती है।-योगेन्द्र यादव
 

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