1965 के भारत-पाक युद्ध के कुछ रोचक तथ्य

punjabkesari.in Sunday, Sep 15, 2024 - 05:59 AM (IST)

1965 के भारत-पाक युद्ध के कई नए अति रोचक रहस्यमयी और हैरतअंगेज तथ्य सामने आए हैं, जिन पर नजरसानी करने से उस समय के विश्व के हालात की जानकारी हासिल की जा सकती है। द्वितीय विश्व युद्ध (1939-1945) में 5 करोड़ लोगों को अपनी कीमती जानें गंवानी पड़ी और भयंकर  तबाही व बर्बादी के बाद युद्ध समाप्त हो गया परंतु विश्व 2 गुटों ( अमरीका और रूस) में बंट गया। इस शीत युद्ध ने विश्व के लिए एक नई मुसीबत खड़ी कर दी। भारत ने गुट निरपेक्ष नीति को अपना लिया जबकि पाकिस्तान बोरिया बिस्तर समेट अमरीका की गोद में जा बैठा और उसका चहेता बन गया तथा  वर्ष 1954-55 में सीटो और सैंटो का सदस्य बन गया। इस तरह उसे ब्रिटेन, तुर्की, ईरान, सऊदी अरब, अमरीका और इंडोनेशिया का समर्थन भी मिल गया। 

भारत के प्रथम प्रधानमंत्री एवं विश्व प्रसिद्ध नेता पंडित जवाहर लाल नेहरू 1964 में इस दुनिया को अलविदा कह गए। उनके स्थान पर लाल बहादुर शास्त्री को प्रधानमंत्री की पदवी पर सुशोभित किया गया। भारत में पिछले कुछ वर्षों से कई प्रदेशों में राजनीतिक आंदोलन चल रहे थे जिसमें जम्मू-कश्मीर में ‘मुए मुकद्दस’ का गुम होना, तमिलनाडु में ङ्क्षहदी विरोधी आंदोलन, पंजाब में पंजाबी सूबा आंदोलन और कुछ ईस्टर्न राज्यों में अलगाववादी आंदोलन चल रहे थे। देश को अनाज की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा था। हकीकत में राष्ट्र बड़ी नाजुक स्थिति से गुजर रहा था। पाकिस्तान में जनरल अयूब खान ने प्रजातांत्रिक सरकार को पांवों तले कुचल दिया और खुद पाकिस्तान का सुप्रीमो बन गया। 1962 की भारत-चीन जंग के बाद पाकिस्तान और चीन में भी नए रिश्ते जन्म लेने लगे। इस तरह जम्मू-कश्मीर पर कब्जा करने के लिए उसकी महत्वाकांक्षा बढऩे लगी। 

पाकिस्तान की अप्रैल 1965 में रण आफ कच्छ में भारतीय सैनिकों के साथ मुठभेड़ हुई जिसमें ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री हैरोल्ड विल्सन ने मध्यस्थता कर लड़ाई तो खत्म करा दी लेकिन ट्रिब्यूनल ने पाकिस्तान को भारत का 910 किलोमीटर का इलाका दे दिया इससे पाकिस्तानी हुकमरानों के हौसले बुलंद हुए और उन्होंने कश्मीर को हड़पने के लिए ‘आप्रेशन जिब्राल्टर’ शुरू किया। 1 अगस्त को 33,000 पाकिस्तानी फौजियों को कश्मीरी लिबास में घाटी में प्रवेश करवा दिया और जबरदस्त जंग शुरू हो गई। भारत के वीर सैनिकों ने पाकिस्तान के 8 किलोमीटर अंदर हाजीपुर दर्रा पर कब्जा कर लिया। यहीं से पाकिस्तान घुसपैठियों को प्रवेश करवाता था। भारत ने कारगिल पर कब्जा कर लिया। भारत और पाकिस्तान के सैनिकों में तिथवाल, उड़ी और पुश में जबरदस्त लड़ाई हुई और घुसपैठियों को कश्मीर से बाहर निकाल दिया गया। ‘आप्रेशन जिब्राल्टर’ बुरी तरह फेल हो गया और कश्मीर जीतने की पाकिस्तान की इच्छाओं पर पानी फिर गया। 

1 सितंबर, 1965 को पाकिस्तान ने ‘आप्रेशन ग्रेंड स्लैम’ शुरू किया ताकि जम्मू में अखनूर पर कब्जा किया जा सके। यह हमला इतना जबरदस्त था कि  इसने भारत सरकार को आश्चर्य में डाल दिया। प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने एयर मार्शल अर्जुन सिंह को अपने घर बुलाया और पूछा कि हम कितने समय में पाकिस्तान पर हवाई हमले कर सकते हैं। उत्तर मिला कि 15 मिनट के अंदर-अंदर। उसी समय छम्ब में जोरदार हवाई हमले शुरू कर दिए गए जिससे आगे बढ़ते पाकिस्तानी सैनिकों को रोक लिया गया। भारत ने 6 सितम्बर 1965 को पंजाब और राजस्थान की अंतर्राष्ट्रीय सीमा को पार करके जोरदार हमला किया। मेजर जनरल निरंजन प्रसाद के नेतृत्व में भारतीय सेना इच्छोगिल नहर तक पहुंच गई। भारत का यह फैसला पाकिस्तानी हुक्मरानों की सोच से ही बाहर था। 

9 सितम्बर को यह हुक्म दिया गया कि भारतीय फौज बाटापुर और डोगराई से पीछे हटकर गोशल दयाल आ जाए। इसी दौरान भारत के बहादुर सैनिकों ने सियालकोट के बहुत सारे इलाकों पर कब्जा कर लिया।युद्ध में स्थिति बदलते देर नहीं लगती। पाकिस्तानी फौज ने जोरदार हमला करके खेमकरण पर कब्जा कर लिया। उनकी योजना ब्यास और हरिके पत्तन के पुल पर कब्जा करके अमृतसर के पूरे क्षेत्र पर कब्जा करने की थी। जनरल जे.एन. चौधरी ने पंजाब में पश्चिमी कमांड के जनरल हरबख्श सिंह को अमृतसर खाली करने के लिए कह दिया परंतु जनरल हरबख्श सिंह अमृतसर को किसी कीमत पर खाली करने को तैयार नहीं थे। उसी रात को भारत ने असल उताड़ में पाकिस्तान के साथ  घमासान लड़ाई की जिसमें पाकिस्तान के 100 टैंक तबाह कर दिए गए और यह स्थान पाकिस्तान के पैटन टैंकों का कब्रिस्तान बन गया। 

अमृतसर को बचाने का श्रेय जनरल हरबख्श सिंह को जाता है जिन्होंने अपनी सूझ-बूझ और कार्य कुशलता से अपनी जिम्मेदारियों को सरअंजाम दिया। अमरीका ने युद्ध के दौरान दबाव डालने के लिए अनाज न देने की धमकी दे दी पर लाल बहादुर शास्त्री ने भारतीयों से अपील करते हुए कहा कि सभी भारतीय सोमवार रात को उपवास रखें ताकि अनाज की कमी को पूरा किया जा सके। और उनके जय-जवान जय-किसान के नारे ने सभी भारतीयों को एक सूत्र में पिरो दिया। इस जंग में हिंद समाचार पत्र समूह के प्रमुख लाला जगत नारायण की भूमिका बड़ी प्रशंसनीय रही। उन्होंने अपने लेखों से लोगों को प्रोत्साहित किया और खुद भी सीमावर्ती क्षेत्रों में जाकर लोगों के हौसले बुलंद करते रहे। 10 जनवरी, 1966 को ताशकंद में भारत पाक का समझौता हो गया। भारत ने जीते हुए इलाके पाकिस्तान को वापस कर दिए। 11 जनवरी को भारत ने अपना लाल सदा के लिए गंवा  दिया। भारतीय अपने शूरवीर सैनिकों की शहादत के लिए हमेशा ऋणी रहेंगे।-प्रो. दरबारी लालपूर्व डिप्टी स्पीकर, पंजाब विधानसभा
 


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