नारी की ‘कोमल भावनाओं’ के प्रतीक कुछ फिल्मी गीत

Tuesday, Sep 10, 2019 - 03:18 AM (IST)

जयशंकर प्रसाद के महाकाव्य ‘कामायनी’ का अध्ययन करते-करते नारी हृदय को समझने का अवसर मिला। नारी त्याग का प्रतीक, पुरुष कुछ पाने का लालची। नारी में समर्पण है तो पुरुष में अकड़े रहने का भाव। स्त्री धरती स्वरूपा विशाल, पुरुष बीज सा लघु। स्त्री-पुरुष मिलें तो सृजन। सृजन का अर्थ विकास, उत्थान, अध्यात्म, विज्ञान, ज्ञान। चांद पाने की भावना, मंगल ग्रह तक घर बनाने का सपना। नारी शरीर मंदिर। इस मंदिर की खुशबू सर्वत्र। पुरुष इस खुशबू पर मंडराता भंवरा। नारी इस भंवरे पर सब कुछ उत्सर्ग करने की भावना। ‘कामायनी’ को पढ़ा तो नारी भाव को आत्मसात किया। 

मैं दे दूं और न फिर कुछ लूं,
बस यही भाव पनपता है।
भुजलता फंसा कर नर तरू से,
झूले से झोंके खाती हूं॥ 

यही भाव जब मैं अपनी आयु में देखी फिल्मों के गीतों में देखता हूं तो मन में ‘कामायनी’ के इन्हीं भावों के दर्शन करता हूं। ऐसे फिल्मी गीत हमारा काव्य शास्त्र है। ऐसे गीतों में नायिका का अल्हड़पन भी देखेंगे, समर्पण भी पाएंगे, विरह रूप भी मिलेगा और उग्रता भी नजर आएगी। हजारों ऐसे गीत लता जी ने गाए हैं जिनमें नायिका के भिन्न-भिन्न रूप हम देख सकते हैं। क्योंकि आज मुझे सिर्फ नारी को ही महत्व देना है, अत: गीत लाखों में, कुछेक ही याद हैं। बुढ़ापे में युवावस्था के सभी गीतों की सिर्फ यादें ही बाकी हैं। वह भी इसलिए कि मुझे नारी की भव्यता का अनुभव है। तो चलूं अमीन सियानी की ‘बिनाका गीत माला-सिलोन’ के नारी सुलभ फिल्मी गीतों की ओर? 

मैं सुनाता हूं फिल्म ‘देवदास’ का गीत। यह दलीप कुमार ‘ट्रैजेडी किंग’ और अपने दौर की खूबसूरत नायिका वैजयंती माला पर फिल्माया नारी भावनाओं से ओत-प्रोत गीत है। नायिका सब कुछ लुटाने को तत्पर, पर नायक अपनी पूर्व प्रेमिका ‘पारो’ को ही नहीं भूल पा रहा। नायिका करे भी क्या? ‘जिसे तू कबूल करले वो दिल कहां से लाऊं? मेरे दिल में तू ही तू है, तेरे दिल में गम ही गम है। जो बहार बनके बरसे वो बहार कहां से लाऊं?’ प्रेमी के लिए प्रेमिका की तड़प का अनुपम उदाहरण। तनिक गुरुदत्त और आशा पारिख पर फिल्माई फिल्म ‘भरोसा’ के गीत को देखें, जिसमें नारी सब कुछ लुटा देना चाहती है। पठानकोट के ‘रमनीक’ सिनेमा में बुधवार को ‘लेडी शो’ में सब सिनेमा प्रेमी औरतों को मैंने रोते देखा जब आशा पारिख गा रही थी: ‘तेरी याद जो भुला दे, वो दिल कहां से लाऊं? रहने दे मुझको अपने कदमों की छांव बनकर, जो यह नहीं गवारा, मुझे खाक में मिला दे।’ 

राजकपूर और नर्गिस की फिल्म ‘चोरी-चोरी’ का गोल्डन गीत आज भी रुला देगा, ‘रसिक बलमा, हाय! दिल क्यों लगाया तोसे, जैसे रोग लगाया। नेहा लगा के हारी, तड़पूं मैं गम की मारी।’ फिल्म ‘पतिता’ में देवानंद और ऊषा किरण का हाल देखिए। ऋतु ने नायिका को तड़पा दिया और वह गाने लगी, ‘झूमती बहार है, कहां हो तुम? प्यार से पुकार लो जहां हो तुम। मेरे लिए आसमान हो तुम।’ मैंने फिल्म ‘अमर’ में शोख नायिका मधुबाला और दिलीप कुमार पर फिल्माए गीत को अभी भी जेहन में दबाए रखा है। सुनाऊं? ‘तेरे सदके बलम न कर कोई गम। यह समां, यह जहां फिर कहां? तू हमको पी ले, जी भर के जी ले। दुनिया का क्या एतबार?’ अरे-अरे मैं तो भूल ही चला था फिल्म ‘बहुरानी’ में माला सिन्हा नायक को सहलाती-सुलाती गा रही है, नायक गुरुदत्त सो रहे हैं और नायिका मधुर कंठ से गा रही है, ‘‘मैं जागूं सारी रैन, सजन तुम सो जाओ, सो जाओ’’। 

सिने प्रेमी दर्शको, मेरी उम्र के नौजवानो, श्रीधर पाठक की एक क्लासिकल फिल्म थी ‘दिल एक मंदिर।’ मीना कुमारी और राजकुमार के लाजवाब अभिनय को सिने दर्शक भुला न पाए होंगे? बीमार नायक के सिरहाने मीना कुमारी प्रकृति से दो-दो हाथ करने को तैयार होकर गा रही है, ‘रुक जा रात, ठहर जा रे चंदा, बीते न मिलन की बेला।’ उसी फिल्म का एक और गीत, ‘हम तेरे प्यार में सारा आलम खो बैठे, जी खो बैठे, तुम कहते हो कि ऐसे प्यार को भूल जाएं। तुम प्यार की सुंदर मूरत हो और प्यार हमारी मूरत है।’ नायिका के समर्पण भाव कमाल का है। चलिए मैं एक धार्मिक फिल्म ‘हरिश्चंद्र तारामती’ का पृथ्वीराज कपूर और जयमाला पर फिल्माए गीतकार भरत व्यास के स्त्री-पुरुष स्वभाव पर लिखे गीत को गुनगुना देता हूं, ‘‘तुम गगन के चंद्रमा हो, मैं धरा की धूल हूं। तुम क्षमा मैं भूल हूं।’’ तनिक औरत का दिल देखो। 

हाय! हाय! फिल्म ‘रेशमा और शेरा’ में चांदनी रात में रेगिस्तान की ठंडी रेत पर सुनील दत्त और वहीदा रहमान पर फिल्माए गीत को याद करें, ‘‘तू चंदा मैं चांदनी, तू तरुवर मैं छांव रे।’’ नायिका स्वयं को छाया और नायक को श्रेष्ठ वृक्ष के रूप में देख रही है। अब चलते हैं एक और फिल्म ‘शगुन’ में नायिका निवेदिता और वहीदा रहमान नायक कमलजीत की व्यथा से व्यथित चैलेंज से उसकी व्यथा दूर करने की बात कर रही हैं, ‘‘मैं देखूं तो सही दुनिया तुम्हें क्योंकर सताती है? तुम अपना रंजोगम अपनी परेशानी मुझे दे दो।’’ धर्मेंद्र और सुप्रिया चौधरी की फिल्म का गीत तो औरत के पुरुष के प्रति समर्पण कर सभी हदें लांघ गया। मेरी उम्र के सभी नौजवानों ने फिल्म ‘आपकी परछाइयां’ देखी होगी? गीत भी गुनगुनाया होगा? ‘अगर मुझसे मोहब्बत है, मुझे अपने सभी गम दे दो। इन आंखों का हर इक आंसू मुझे मेरे सनम दे दो।’ 

फिल्म ‘सन ऑफ इंडिया’ का नायक कमलजीत और नायिका कुमकुम पर फिल्माया उम्दा गीत देखकर आगे चलते हैं, ‘‘दिल तोडऩे वाले तुझे दिल ढूंढ रहा है। तू हमको जो मिल जाए, तो हाल अपना सुनाएं, खुद रोएं और कभी तुझको रुलाएं। वो जख्म दिखाएं जो हमें तूने दिया है।’’ बुरा न मानें तो पंजाबी फिल्म ‘भंगड़ा’ का गीत भी सुन लेते हैं। नायिका निशि को नायक सुंदर से इतनी प्रीत है कि वह शंका में गा उठती है, ‘बत्ती बाल के बनेरे उत्ते रखनियां, गली भुल्ल न जावे माही मेरा।’ तब बिजली तो थी नहीं। प्रेमियों को मिलना भी जरूरी है। सो दीया जला दिया। ए.वी.एम. की एक हल्की-फुल्की फिल्म ‘बरखा’ में नायिका शोभा खोटे नायक अनंत कुमार से कह रही है, ‘तड़पाओगे? तड़पा लो, हम तड़प-तड़प कर भी तुम्हारे गीत गाएंगे। ठुकराओगे? ठुकरा लो, हम ठोकर खाकर भी तुम्हारे दर पे आएंगे।’ 

अनूठा समर्पण है। समय और स्थानाभाव है अन्यथा सैंकड़ों फिल्मी गीत अपने सिने प्रेमियों को सुनाता। चलो एक लास्ट गीत फिल्म ‘पेइंग गैस्ट’ का सुनाकर आप से विदा लेते हैं। देवानंद और नूतन पर फिल्माया गीत है:- ‘चांद फिर निकला, मगर तुम न आए-जला फिर मेरा दिल, करूं क्या मैं हाय?’ उपरोक्त गीतों में नायिकाओं का प्रतिवेदन तो झलकता ही है, साथ ही ये गीत साहित्यिक विद्या पर भी खरे उतरते हैं। अभी मेरे जेहन में नारी समर्पण के बीसियों गीत और याद आ रहे हैं। फिर कभी, आज इतना ही।-मा. मोहन लाल(पूर्व परिवहन मंत्री, पंजाब)

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