कुछ घटनाएं ‘वर्तमान और भविष्य’ के लिए कुछ खास सबक रखती हैं
punjabkesari.in Saturday, Aug 08, 2020 - 02:09 AM (IST)
अगस्त का सही शब्दों में अर्थ आदरणीय तथा प्रभावशाली होता है यानी कि कुछ विशेष। आधुनिक भारत के इतिहास में अगस्त महीने का विशेष स्थान है। स्वतंत्रता संग्राम का स्वाद 15 अगस्त, 1947 को चखा गया। इससे 5 वर्ष पूर्व भारत छोड़ो आंदोलन का बिगुल महात्मा गांधी की 8 अगस्त को दी गई कॉल ‘करो या मरो’ से बजाया गया। इस माह की 5 तारीख को अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण का कार्य शुरू हुआ। ऐसी घटनाएं वर्तमान तथा भविष्य के लिए कुछ खास सबक रखती हैं।
स्वतंत्रता का महत्व
भारतीय स्वतंत्रता केवल ब्रिटिश साम्राज्य का अंत नहीं था। इसने 1000 वर्ष के करीब उस अंधेरे युग से पर्दा हटा दिया जिसकी शुरूआत 1001 में महमूद गजनवी के हमले से शुरू हुई थी। यह ऐसा दौर था जब भारत की अंदरूनी कमजोरियों का फायदा उठाया गया और बाहर से विदेशी हमलावर निरंतर भारत की ओर रुख करते रहे। इसके साथ व्यापारी तथा कालोनियां स्थापित करने वाले लोग भी भारत की ओर आने लगे।
हमारी सामाजिक, सांस्कृतिक तथा आर्थिक भूमि के परिदृश्य को चकनाचूर कर दिया गया तथा कमजोर पड़े लोगों को लूटा गया। हमलावर बेखौफ होकर आते रहे और अपनी इच्छा के अनुसार भारत को लूटते रहे। एक-दूसरे को समझने की शक्ति में कमी थी और इसके साथ-साथ आपस में एकता की भी कमी देखी गई। असंख्य हमलावरों ने हमारे देश को एक नरम लक्ष्य समझा। हालांकि उनके आक्रमण का प्रतिरोध पृथ्वीराज चौहान, महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी, रानी लक्ष्मीबाई, वीरा पांडे कट्टाबोमन, आलूरी, सीतारामां राजू इत्यादि ने किया।
लूटने वालों ने अपनी योजनाओं के हिसाब से लूटा। हालांकि यहां पर मीर जाफर जैसे लोग भी थे। बंटे हुए राष्ट्र ने असहमति तथा बहिष्कार को झेला। कभी सोने की चिडिय़ा कहा जाने वाला भारत गरीबी तथा पिछड़ेपन के समुद्र में सिमट कर रह गया। इस लम्बे अंधेरे युग के दौरान भारत ने अपनी आत्मा तथा अंदरूनी शक्ति को खो दिया। जैसे ही ब्रिटिश साम्राज्यवाद की लूट शुरू हुई तो भारतीयों ने अपने आपको पुन: खोजना शुरू किया। स्वतंत्रता संग्राम ने लोगों को एक धागे में पिरो दिया जिन्होंने अपनी किस्मत आप लिखनी चाही। इसे सही तौर पर भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का नाम दिया गया क्योंकि राष्ट्रीयता का जोर पकड़ा गया। एकता की कमी के मूर्खतापूर्ण लम्बे समय में ऐसी बातों को झेला गया। इसके बाद अंत में भारतीय राष्ट्र का जन्म 15 अगस्त 1947 को हुआ। इसी कारण यह कहना उचित ही होगा कि आजादी के लिए लड़ी गई लम्बी लड़ाई देश को सदियों से अंधेरे युग से मुक्ति दिलाना थी, जिसमें सामाजिक एकजुटता की कमी थी।
भारत छोड़ो आंदोलन
स्वतंत्रता संग्राम का यह सबसे परिभाषित करने वाला क्षण था। भारत छोड़ो आंदोलन का प्रस्ताव 8 अगस्त 1942 को अपनाया गया, जिसमें जोर देकर कहा गया कि भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की तत्काल रूप से समाप्ति हो और यह भारत तथा संयुक्त राष्ट्र की सफलता के लिए जरूरी भी था। ब्रिटिश साम्राज्य का चलते रहना भारत को और नीचे धकेल रहा था, जो उसकी तरक्की में एक बाधा थी। भारत छोड़ो आंदोलन के अपने भाषण में महात्मा गांधी ने करो या मरो की आवाज बुलंद की। शांति तथा अहिंसा के दूत जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपना बहुत योगदान दिया, ने इस तरह की भाषा का इस्तेमाल किया जिसने ब्रिटिश साम्राज्य को परेशान कर दिया जोकि पहले से ही द्वितीय विश्व युद्ध के प्रभाव के कारण अपंग हो चुका था। आखिर गांधी जी ने ऐसा क्यों कहा?
1915 में भारत में अपनी वापसी से लेकर गांधी जी ने स्वतंत्रता संग्राम को एक नई राह दिखाई। उन्होंने सच्चाई की ताकत का इस्तेमाल एक हथियार की तरह किया, जिससे कि ब्रिटिश साम्राज्य की आंखों को खोला जा सके। क्रिप्स मिशन भारत में भेजा गया। मगर यह मिशन अपने आप में असफल हो गया क्योंकि इसने देश के लिए तत्काल स्वतंत्रता की मांग को पूरा नहीं किया। गांधी जी को ब्रिटिशर के दिमाग की रचना का सतही पता था। वह जानते थे कि ब्रिटिश साम्राज्य बांटो और राज करो पर आधारित है। गांधी जी ने लोगों को करो या मरो जैसे तीन शब्द दिए। उन्होंने लोगों की सोच में जान फूंक दी, जो ब्रिटिश साम्राज्य की बातों से बेसब्र हो रहे थे। तत्कालीन वायसराय लिनलिथगो ने आंदोलन को दबाने के लिए बल का प्रयोग किया।
सांस्कृतिक तथा आर्थिक पतन
सदियों से लोग विभिन्न रियासतों तथा साम्राज्यों के अधीन रह रहे थे। लोग सांस्कृतिक तथा मूल्यों के तौर-तरीकों से बाध्य थे। मंदिर सांस्कृतिक एकरूपता का एक महत्वपूर्ण स्रोत थे। इस सांस्कृतिक धागे को विदेशी हमलावर तोडऩा चाहते थे। भारत के प्रमुख मंदिरों पर हमले किए गए। उनको लूटा गया तथा उनको ध्वस्त किया गया जिसके नतीजे में उनका अपवित्रीकरण हुआ। महमूद गजनवी ने प्रसिद्ध सोमनाथ मंदिर पर 1001-25 तक हमले किए। अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण को शुरू करने में करीब 500 वर्षों का समय लगा। लम्बे समय तक बंटे रहने की यह कीमत देनी पड़ी। साम्राज्यवाद के समर्थकों का कहना है कि ब्रिटिश शासन से भारत लाभान्वित हुआ। इस सच्चाई से परे कुछ भी नहीं। भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के सभी उपक्रम व्यापारिक तथा प्रशासनिक हितों से प्रेरित थे।
सबक तथा आगे का रास्ता
पिछले 1000 वर्षों के अपमानित अनुभव हमें भविष्य की नई राह दिखाएंगे। पहला सबक यह है कि यदि ‘हम इकट्ठे रहे तो खड़े रहेंगे, बंट गए तो गिर जाएंगे।’ अंदरूनी तथा बाहरी चुनौतियों तथा हमलों के खिलाफ हमें एकजुट होकर लडऩा है। हमें समानता तथा सबके लिए एक जैसे मौकों को तलाशना होगा। हमें प्रत्येक भारतीय को सशक्त बनाना होगा। जैसा कि हम अपने स्वतंत्रता के 75 वर्ष को मनाने के निकट हैं, हमारा मुख्य मोटो ‘प्रदर्शन या तबाह’ होना चाहिए। यह सभी व्यक्तियों तथा संस्थानों पर लागू होता है। अपनी शक्ति को समझें और एक संयुक्त तथा प्रगतिशील भारत का निर्माण करें।-वैंकेया नायडू (माननीय उप राष्ट्रपति)
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