उत्तेजक होते जा रहे हैं कुछ भोजपुरी गाने

punjabkesari.in Sunday, Dec 08, 2024 - 05:51 AM (IST)

देशी संस्कृति की सरेआम धज्जियां उड़ाते अनेक भोजपुरी गानों का चलन आजकल अनेक लोगों के सिर चढ़कर बोल रहा है। कुछ समय पहले पॉपुलर हुए ‘आग लाग जाता...’ अश्लीलता से लबालब एक भोजपुरी गाने के बोल, जिसके आगे के शब्द भी मर्यादित नहीं हैं और हम लिख भी नहीं सकेंगे, ने कामुक लोगों के दिल-दिमाग को बेकाबू कर रखा था। एक लंबे समय से, भोजपुरी में ऐसे ही अनेक काम-वासना से भीगे हुए गाने रिलीज हो रहे हैं। सार्वजनिक मंचों से इनका भौंडे तरीके से प्रदर्शन किया जा रहा है और उस पर अश्लील डांस हो रहे हैं।

क्यों सोशल मीडिया का आकर्षण और मिलियंस व्यूज पाने के लिए इन गानों से जुड़े कलाकार मर्यादा की सभी हदें लांघ रहे हैं। अनेक भोजपुरी गानों के संदर्भ में अब तक चोली, लहंगा, ढोड़ी, चुम्मा-चाटी आदि को लेकर डबल मीनिंग गाने सुनते चले आ रहे थे पर अब खेल, खुले हिसाब का हो गया है। ऐसा क्यों हो गया है? भोजपुरी गानों में अश्लीलता को प्रदर्शित करने के अनेक कारण हैं। लोग फूहड़ता और अश्लीलता देखना पसंद करते हैं इसलिए भोजपुरी गानों में दो-अर्थी शब्दों का प्रयोग किया जाता है। गाने वायरल होने से गाने के स्टार्स को अधिक काम मिलता है। अश्लील गाने जल्दी वायरल हो जाते हैं। रही बात भाषा की तो पूरी दुनिया में 25 करोड़ से ज्यादा लोग भोजपुरी बोलते हैं।

भोजपुरी भाषा की जो मिठास है, वह कोयल की बोली से कम नहीं है लेकिन अश्लील डबल मीनिंग गानों ने भोजपुरी भाषा को कटघरे में खड़ा करने की स्थिति में ला दिया है। इस मामले पर कुछ विचारवान लोगों का मत है कि फिल्म और संगीत ऐसे माध्यम हैं जिनसे लोग आसानी से जुड़ जाते हैं। मनोरंजन के ये मुख्य साधन हैं और आज के समय में ये हर हाथ में उपलब्ध हैं। मोबाइल फोन की क्रांति ने इसे गतिशील बना दिया है। जहां तक शील और अश्लीलता  की बात है तो किसी भी सिक्के के दो पहलू होते हैं। यह खुद पर निर्भर करता है कि किस पहलू से आप ज्यादा परिचित हैं। आज दुनिया की हरेक भाषा में सिनेमा और संगीत है। इसमें भी शील और अश्लील बराबर मात्रा में हैं।

और फिर अपने देश में भी कलात्मक, शास्त्रीय संगीत, राग लय, पारिवारिक पृष्ठभूमि के कथानक के सिनेमा और संगीत को चाहने वाले बहुत हैं। वहीं एक बहुत बड़ा वर्ग सिर्फ वासना और दैहिक सौंदर्य, कानफाड़ू गीतों से भरे सिनेमा और संगीत ही देखना चाहता है और उनके लिए अच्छे सिनेमा संगीत के समानांतर अश्लील संगीत का एक बहुत बड़ा उद्योग खड़ा है। अब बात करते हैं भोजपुरी भाषा की। भोजपुरी लोक संगीत के मामले में बहुत धनी हैं। जन्म से लेकर मृत्यु तक के हरेक संस्कार विध व्यवहार को संगीत में पिरोया है। इसके अलावा भोजपुरिया समाज देवी-देवताओं से भी आत्मीय संबंध बनाते हुए गीतों की रचना करता रहा है, इसके अलावा सामाजिक कुप्रथाओं जैसे दहेज, सती प्रथा, बेमेल विवाह, पारिवारिक कलह पर भी गीत लिखे गए। 

मजदूरों के श्रमिक गीत, खेतिहरों के हल गीत, अनाज पिसने के समय जंतसार गीत और न जाने कितने प्रकार के गीत इस भोजपुरी में हैं जिन्हें बहुत से प्रतिष्ठित लोक कलाकारों ने गाया है। लेकिन यदि दुनिया भोजपुरी को सिर्फ अश्लील गीतों का पर्याय मानती है। ये भी गलत नहीं क्योंकि दुनिया के समक्ष जो आएगा वह वैसा ही समझेगी।  लेकिन कुछ लोग पैसे के पीछे अपनी सभ्यता संस्कृति का गला घोंट रहे हैं अब सोशल मीडिया पर अनेक खुले मंच हैं जहां किसी भी तरह के कचड़े गीत-संगीत को द्विअर्थी शब्दों से पिरोकर अश्लील नृत्य का तड़का लगा परोस दिया जाता है।

पिछले कुछ सालों में इसने भोजपुरी के शील रूप का बलात्कार कर अश्लीलता का तमगा पहना दिया। क्या भोजपुरी संगीत ऐसे ही गानों के बल पर बॉलीवुड और साऊथ की इंडस्ट्री से टक्कर लेगा। क्यों भोजपुरी गायक अश्लीलता की पराकाष्ठा लांघ रहे हैं, जिसे परिवार के साथ देख और सुन भी नहीं सकते क्योंकि कुछ अश्लील भोजपुरी गाने तो काम उत्तेजक दवा वियाग्रा से भी ज्यादा प्रभावी होते जा रहे हैं। इन गानों की बढ़ रही मार्कीट डिमांड के कारण इनके प्रसार को रोकना क्या हमारे बस में है? -डा. वरिन्द्र भाटिया


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